भारत में पिछले कुछ समय से लोकतंत्र और फ्रीडम ऑफ स्पीच को लेकर खूब चर्चा हो रही है. मोदी सरकार को लेकर विपक्षी नेता और बाकी लोग लगातार ये आरोप लगाते आए हैं कि पिछले 7 सालों में बोलने की आजादी पर अंकुश लगा है और लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन नहीं हो रहा. लेकिन अब अमेरिका की एक संस्था फ्रीडम हाउस ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें पॉलिटिकल फ्रीडम और ह्यूमन राइट्स को लेकर तमाम देशों में रिसर्च की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत एक स्वतंत्र देश से आंशिक रूप से स्वतंत्र देश में बदल चुका है और मोदी सरकार के नेतृत्व में देश सत्तावाद की तरफ बढ़ रहा है.
मानवाधिकार संगठनों पर बढ़ रहा है दबाव
फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट 'डेमोक्रेसी अंडर सीज' में कहा है कि साल 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत में नागरिकों की स्वतंत्रता में गिरावट दर्ज की गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की स्थिति में आया ये बदलाव लोकतंत्र और सत्तावाद में होने वाले वैश्विक बदलाव का ही एक हिस्सा है. हालांकि अब तक इस रिपोर्ट को लेकर भारत सरकार की तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
फ्रीडम हाउस की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, साल 2014 के बाद भारत में मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ गया है. पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स को धमकाया जा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि खासतौर पर मुस्लिमों के खिलाफ होने वाले हमले देश में राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता बिगड़ने का कारण है.
‘साल 2014 के बाद आया बदलाव’
बताया गया है कि साल 2019 के बाद से ही भारत की इस गिरती रैंकिंग में काफी तेजी देखी गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2014 में भारत की हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की, इसके 5 साल बाद और ज्यादा बहुमत के साथ मोदी एक बार फिर सत्ता में लौटे. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मोदी सरकार के तहत भारत ने वैश्विक स्तर पर एक लोकतांत्रिक लीडर के तौर पर काम करना छोड़ दिया. सभी के लिए समान अधिकार और समावेश की कीमत पर संकीर्ण हिंदू राष्ट्रवादी हितों को ऊपर उठाने का काम किया गया.
रिपोर्ट में नागरिकता कानून यानी सीएए का भी जिक्र किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ हुई कार्रवाई ने भारत की रेटिंग में हुई गिरावट में अहम योगदान दिया. इसमें सरकार और विरोध करने वालों का तर्क भी बताया गया है.
लॉकडाउन के दौरान परेशान हुए प्रवासी मजदूरों का भी जिक्र
रिपोर्ट में लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासियों के घर लौटने का भी जिक्र किया गया है. कहा गया है कि पिछले साल मार्च में भारत ने अचानक लॉकडाउन का ऐलान किया, जिससे लाखों प्रवासी मजदूर बिना पैसों के शहरों में ही फंस गए. कई लोग पैदल ही सैकड़ों मील चले और इनमें से कई लोगों की दुर्घटना या फिर थकान के चलते मौत हो गई.
अमेरिका में भी लोकतांत्रिक गिरावट
फ्रीडम हाउस की इस रिपोर्ट में चीन को लोकतंत्र और नागरिकों की आजादी के मामले में सबसे बुरा बताया गया है. कोरोना महामारी के दौरान चीन ने अपने ही लोगों के खिलाफ सेंसरशिप अभियान चलाया था. लेकिन हमेशा चीन ने ऐसे आरोपों से इनकार किया. इसके अलावा रिपोर्ट में अमेरिका का भी जिक्र है, जिसमें कहा गया है कि ट्रंप शासन के दौरान अमेरिका में लोकतांत्रिक गिरावट देखी गई.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)