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अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ‘फेक न्यूज’ से बचने लगे हैं लोग: सर्वे

रिसर्च में ये भी सामने आया है कि मीडिया पर से लोगों का भरोसा बहुत कम हो गया है.

Published
भारत
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लोकसभा चुनाव 2019 से पहले लोग फेक न्यूज और गलत जानकारियों को लेकर काफी सचेत हो गए हैें. एक रिसर्च के मुताबिक, लोग इस बात को लेकर चौकन्ने हो गए हैं कि जो खबर या जानकारी उन तक पहुंच रही है वो सही या फेक.

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द क्विंट और रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म ने मिलकर एक रिसर्च किया है, जिसमें सामने आया है कि मीडिया पर से लोगों का भरोसा बहुत कम हो गया है. लोग ये सोचने लगे हैं कि कहीं उनको गलत जानकारी तो नहीं दी जा रही?

भरोसा सिर्फ मीडिया से ही नहीं, बल्कि उन खबरों से भी हुआ है, जिन्हें लोग खुद पढ़ते हैं. लोग ऐसी खबरों की प्रामाणिकता पर भी संदेह कर रहे हैं.

क्या राजनीतिक मत अलग होने से फेक न्यूज पर फर्क पड़ता है?

इस रिसर्च में 1,013 इंटरनेट यूजर्स ने हिस्सा लिया, अलग-अलग राजनीतिक मत होने के बावजूद एक बात सामान्य थी कि सभी फेक न्यूज को लेकर चिंतित थे. रिसर्च में केवल अंग्रेजी भाषा में इंटरनेट चलाने वाले और पुरुषों को ज्यादा रखा गया था. इस वजह से इसे पूरे समाज को लेकर नहीं देखना चाहिए.

ऐसे ही अलग-अलग राजनीतिक मत होने के बावजूद दो तिहाई से ज्यादा प्रतिभागियों का ये मानना है कि ‘खबर चलाने वाले प्लेटफॉर्म या सरकारों को गलत जानकारियों को लेकर कुछ कदम उठाने चाहिए.’
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अखबारों से आगे हैं स्मार्ट फोन, सोशल मीडिया है बेताज बादशाह

इस रिसर्च में पता चला, वैसे तो लोग पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार, रेडियो को छोड़ स्मार्टफोन की ओर जा चुके हैं बल्कि खबरों तक पहुंचने के जरिए भी बदल गए हैं. इंटरनेट और स्मार्टफोन यूजर अब मीडिया वेबसाइटों की जगह 'साइड-डोर' का इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे सोशल मीडिया और सर्च टूल्स.

लेकिन सोशल मीडिया पर भी खबरें पोस्ट की जाती हैं और काफी लोग इस बात को लेकर भी चिंतित रहते हैं कि उनकी राजनीतिक विचारधारा के चलते अगर वो कुछ लिखते हैं तो लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. वहीं कई लोग ये सोचते हैं कि उनके कुछ लिखने से कहीं खबर पोस्ट करने वालों के साथ कोई विवाद न हो जाए.

टिकाऊ बिजनेस मॉडल की है जरूरत

इसी बीच जब बहुत सारे मीडिया ऑनलाइन खबरों की डिमांड को पूरा करने के लिए ऑनलाइन प्लैटफॉर्म की तरफ जा रहे हैं. ऐसे में प्रचारों और बाजार में टिके रहने के लिए बदलाव तो होंगे ही.

रासमस क्लेस नीलसन, आरआईएसजे के डायरेक्टर और रिसर्च के को ऑथर ने कहा, ''उस दौर का अंत हो जाएगा जहां भारतीय मीडिया ये मानकर चलती है कि प्रचार से उनके खर्चे पूरे हो जाएंगे और ये बेहद जरूरी है कि भारतीय न्यूज मीडिया ऑनलाइन न्यूज के लिए कोई नया टिकाऊ बिजनेस मॉडल तैयार करे.''

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