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युद्ध के हालात पर पूर्व सैनिकों के ‘मन की बात’- क्रेडिट न ले सरकार

पूर्व सैनिकों ने युद्ध के हालात और जम्मू-कश्मीर की सच्चाई पर बताया अपना अनुभव

Published
भारत
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पुलवामा हमले के बाद देश के लोगों में गुस्सा था, लेकिन इसके बाद इंडियन एयरफोर्स की तरफ से की गई स्ट्राइक और पाक की तरफ से हुई हरकत से लोगों ने जंग छेड़ने की बात शुरू कर दी. सोशल मीडिया अभी भी इस मुद्दे पर गरम है. जिन लोगों ने युद्ध को केवल किताबों या फिल्मों में देखा है, वो बड़ी गर्मजोशी से पाकिस्तान को ललकार रहे हैं. लेकिन उन लोगों का युद्ध को लेकर क्या कहना है, जो कई साल तक जम्मू-कश्मीर में बारूद के बीच रहकर आए हैं.

हम बात कर रहे हैं उन पूर्व सैनिकों की, जिन्होंने पत्थरबाजों से लेकर आतंकवाद तक को नजदीक से देखा है. जानिए पूर्व सैनिकों का अनुभव और मौजूदा हालात पर उनकी राय.

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'पाकिस्तान से पहले कश्मीर पर दो ध्यान'

कश्मीर में 12 साल तक अलग-अलग जगहों पर सेना की टुकड़ियों को कमांड करने वाले रिटायर्ड ब्रिगेडियर गुरिंदर सिंह का कहना है कि देश को पहले कश्मीर पर ध्यान देने की जरूरत है. उनका कहना है कि पाकिस्तान की तरफ ध्यान देने से पहले हमें कश्मीर पर ध्यान देना चाहिए. आम कश्मीरी हालात का सताया हुआ है, पैसे कमाने के लिए दुकानें खोलनी पड़ती हैं, लेकिन वो किसी न किसी कारण से ज्यादातर बंद ही रहती हैं. उन्होंने कहा:

‘पिछले तीन-चार साल से सीमा पर जवानों के शहीद होने की की घटनाएं बढ़ रही हैं. हर साल सैकड़ों सुरक्षाबल शहीद हो रहे हैं. अभी दो महीने पूरे हुए हैं और आंकड़ा 100 तक पहुंचने वाला है. आज घाटी के लोगों का मनमुटाव चरम पर है. लोग आर-पार की लड़ाई की बात कर रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि उससे समस्या हल नहीं होगी. सरकार पहले कश्मीर मुद्दा सुलझाए.’
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'इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता'

पूर्व सैनिकों के एक सबसे बड़े संगठन वेटरंस इंडिया का कहना है कि आए दिन जो सीमा पर जवान शहीद हो रहे हैं, उस पर अब गंभीर विचार करने की जरूरत है. वेटरंस इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीके मिश्रा ने कहा, ''पूरा देश ये चाहता है कि अब आतंकवाद का खात्मा होना बेहद जरूरी है. अब एक बार हमें चाहे युद्ध ही क्यों न लड़ना पड़े, इसे जड़ से खत्म करना होगा. देश तैयार है, देश की सेना तैयार है. इस मौके को खोना सरकार के लिए उचित नहीं है.''

‘’हम सभी को पता है, जब भी युद्ध होगा, उससे देश के हर फौजी को कष्ट होगा, उसकी छुट्टी भी कैंसिल होगी, उसकी शादी के लिए भी छुट्टी नहीं मिलेगी, परिवार को भी छोड़ना पड़ेगा, क्योंकि एक फौजी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि होता है. राष्ट्र है तो हम हैं.’’
बीके मिश्रा, राष्ट्रीय अध्यक्ष वेटरंस इंडिया
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'जरूरत पड़ने पर फिर से लड़ सकते हैं'

भारतीय सेना से रिटायर्ड कर्नल एचवी शर्मा का कहना है कि बहुत से लोग युद्ध की बात कर रहे हैं, लेकिन बात युद्ध की नहीं है. उन्‍होंने कहा, ''हम कश्मीर के रूप में 70 सालों से जख्म खाए हुए हैं. मैं 30 साल फौज में रहा हूं और कश्मीर में बहुत ऑपरेशन किए हैं. लेकिन अब यह जख्म कैंसर बनता जा रहा है. इसका इलाज जरूरी है. अब इसे झेलना नहीं चाहिए. अभी इंटरनेशनल सपोर्ट भी मिल रहा है और 130 करोड़ की जनता का सपोर्ट भी है. आतंकवाद को हटाने के लिए हर जरूरी कदम उठाने चाहिए. अगर जरूरत पड़ी, तो हम अभी भी लड़ सकते हैं.''

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'सेना का क्रेडिट लिया जा रहा है'

आर्मी से रिटायर्ड हवलदार अशोक कुमार चौहान का कहना है कि आज सेना का क्रेडिट नेता ले रहे हैं. उन्होंने कहा, ''सेना का सम्मान बेहद जरूरी है. हमें देश की गरिमा का खयाल रखना होगा. हमने आतंकी ठिकानों पर हमला किया था, उन्होंने हमारी सेना पर हमला किया है. अगर इसका जवाब नहीं दिया गया, तो हम कायर कहलाएंगे.''

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'पूरी गलती हमारे नेताओं की है'

रिटायर्ड कर्नल पुष्पेंद्र सिंह से बात करने पर उन्होंने कहा कि हम सभी पूर्व सैनिक अभी सीमा पर तैनात जवानों के साथ हैं. उनके मुताबिक, जम्मू कश्मीर में जो हालात बिगड़े हैं, वो हमारे नेताओं की वजह से हैं. उन्होंने कहा:

‘’मैं उरी में 5 साल रहकर आया हूं. तब हम रात को कई बार श्रीनगर से आया करते थे, तब किसी प्रोटेक्शन की जरूरत नहीं थी. पूरी गलती हमारे नेताओं की है. अगर ये लोग ठीक हो जाएं, तो हमारी सारी समस्याओं का हल मिल जाएगा. किसी भी स्ट्राइक का क्रेडिट राजनीतिक पार्टियों को नहीं लेना चाहिए. मैं तो कहता हूं, नेताओं को फौज के बारे में बात ही नहीं करनी चाहिए.’’  
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'नई जनरेशन को मोटिवेशन की जरूरत'

हवलदार महेंद्र कुमार ने कहा, ''मैंने जम्मू-कश्मीर में करीब 12 साल बिताए हैं. वहां की हालात को अच्छी तरह से समझता हूं. नेताओं ने वहां लोगों के दिमाग में कूट-कूटकर भर दिया है कि हम भारतीय नहीं है. वो खुद को एक अलग राज्य मानते हैं. इसका इलाज यही है कि वहां के युवाओं को बताना होगा कि आप इंडिपेंडेंट तो हो सकते हैं, लेकिन उससे आपको नुकसान होगा. रोजगार नहीं मिलेगा, जरूरी सुविधाएं नहीं मिलेंगी. जम्मू-कश्मीर के 4-5 जिलों में ही ये प्रॉब्लम है. सेना को तभी सफलता मिलेगी जब जम्मू-कश्मीर के नागरिक उनका सपोर्ट करेंगे.''

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