भारतीय समाज के जातिगत ढांचे पर "सब बराबर" के विजन से वार करने वाले भीमराव रामजी अंबेडकर की आज जयंती है. बाबा साहेब की तस्वीर अभी भी सुदूर गांव के दलित गर्व से भगवान के बाजू में रखते हैं. अंबेडकर का महत्व सिर्फ एक समाज सुधारक के रूप में नहीं है, जिन्होंने संविधान के माध्यम से दलितों को उनका हक दिलाया था बल्कि वे आधुनिक भारत के पहले दलित एंटरप्रेन्योर में से एक थे.
बाबा साहेब ने आर्थिक और राजनीतिक समानता को सामाजिक समानता की न्यूनतम जरूरत कहा था. ये उन्हीं की दिखाई राह है कि आज दलित बिजनेस में उतर रहे हैं और अच्छा कर रहे हैं. हमने कोशिश की है उन 10 दलित एंटरप्रेन्योर की कहानी आपके सामने लाने की जिन्होंने हर सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को पार पाते हुए अपना विशेष स्थान बनाया है.
1. राजेश सराईया
देश के प्रथम दलित अरबपति माने जाने वाले राजेश सराईया " स्टील मोंट ट्रेडिंग लिमिटेड" के सीईओ हैं .इसका मुख्यालय डस्सेलडोर्फ जर्मनी में है. सीतापुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे राजेश सराईया को 2012 में "प्रवासी भारतीय अवॉर्ड" और 2014 में "पदम श्री" मिल चुका है. इनकी कंपनी के ऑफिस लंदन,कीव, मॉस्को, इस्तानबुल ,दुबई ,मुंबई और तंजानिया में हैं.
2.चंद्रभान प्रसाद
चंद्रभान आजाद भारत के पहले दलित थे जिनका किसी अंग्रेजी अखबार (दि पायनियर) में अपना कॉलम छपता था. वर्तमान में चंद्रभान दलित विमर्श में सबसे प्रसिद्ध और कार्यरत विद्वान हैं. आर्थिक समानता को सामाजिक समानता के लिए जरूरी मानते हुए उन्होंने दलित निर्माताओं के लिए ई-कॉमर्स साइट bydalits.com की शुरुआत की है. वे कहते हैं " दलित मध्यम वर्ग को अंबेडकर की तरह सुंदर ढंग से कपड़े पहनने चाहिए". वर्तमान में वे DICCI में सलाहकार भी है.
3. भगवान गवई
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अत्यंत गरीब दलित परिवार में जन्मे भगवान गवई की कहानी किसी फिल्मी फसाने की तरह है .100-200 की दिहाड़ी मजदूरी करने वाले भगवान गवई आज "सौरभ एनर्जी" के मालिक हैं .अन्य दलित एंटरप्रेन्योर को सहयोग देने के लिए उन्होंने 30 युवा मेधावी दलितों को चुना है और अपनी ' मैत्रीय डेवलपर' नामक दूसरी कंपनी के माध्यम से उनके आइडिया में निवेश कर रहे हैं.
4. सुधीर राजभर
मुंबई में जन्मे कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर राजभर अपने क्रिएटिव एंटरप्राइज "दि चमार स्टूडियो" के माध्यम से दलितों के सामाजिक आंदोलन को फैशन के क्षेत्र में भी आगे बढ़ा रहे हैं. मुंबई के कांदिवली स्लम से आने वाले राजभर ने 2017 में जहांगीर आर्ट गैलरी में भाग लिया और अपने "डार्क होम्स" नामक काम को प्रस्तुत किया.
5. कल्पना सरोज
महाराष्ट्र के विदर्भ में जन्मीं कल्पना सरोज की शादी मात्र 12 साल की उम्र में हो गई. वह पति के परिवार द्वारा घरेलू हिंसा के कारण ससुराल छोड़ मुंबई आकर अपने रिश्तेदार के साथ रहने लगीं. अपनी बचत से छोटे फर्नीचर का कारोबार शुरू किया . 2001 में उन्होंने बंद पड़ी कामिनी ट्यूब्स को खरीदा और उसको मुनाफे वाली कंपनी बना दिया.अभी वो उसकी सीईओ हैं.आज अनुमानतः उनके पास 112 मिलियन डॉलर की निजी संपत्ति है.
6. राजा नायक
दलित परिवार में जन्मे राजा नायक 17 साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई आए. यहां उन्होंने कपड़े बेचे, कोल्हापुरी चप्पलें बेचीं और आज उनका सालाना टर्नओवर 60 करोड़ का है .वर्तमान में वे DICCI( कर्नाटक ) के प्रेसिडेंट हैं .कला निकेतन शिक्षण संस्थान के स्कूल और कॉलेजों के जरिए वो पिछड़े और गरीब तबके के विद्यार्थियों को शिक्षा उपलब्ध कराते हैं.
7. अशोक खाडे
मोची पिता के घर जन्मे अशोक खाडे आज "दास ऑफशोर" के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. अपने गांव से शिक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज गए .पहले सरकारी बंदरगाह पर काम करते हुए कुशलता प्राप्त की और फिर अपनी खुद की कंपनी शुरू की. आज इनकी कंपनी 4500 लोगों को रोजगार दे रही है तथा उसका सालाना टर्नओवर 500 करोड़ का है.
8.मिलिंद कांबले
भारतीय दलितों को एंटरप्रेन्योरशिप के क्षेत्र में सबसे ज्यादा सहायता देने वाली संस्था DICC की स्थापना मिलिंद कांबले ने की है. DICC ने sc-st समुदाय के बीच व्यापार और इनोवेशन के माध्यम से लीडरशिप की कुशलता को बढ़ाने का काम किया है .वर्तमान में इसके 10 हजार से अधिक सदस्य हैं .मिलिंद कांबले को 2013 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया.
9. हरिकिशन पिल्लन
अपनी शिक्षा के लिए हरिकिशन पिल्लन ने रिक्शा चलाया ,पिता को दिल का दौरा पड़ने पर परिवार की देखभाल की और आज 64 वर्षीय हरिकिशन 100 करोड़ के सालाना टर्नओवर वाले व्यवसाय के मालिक हैं. उन्होंने आगरा कैंट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा.
10. डॉ श्याम कुमार
देवबंद के दलित कारखाना मजदूर के घर जन्मे डॉ श्याम कुमार जब मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने गए तब पहली बार उन्होंने नए जूते पहने थे .आज वे उत्तर प्रदेश के हापुड़ में देव नंदिनी हॉस्पिटल चलाते हैं. 100 बेड वाले इस हॉस्पिटल में 36 डॉक्टर और 350 स्टाफ कार्यरत. अब करोड़पति कुमार ने अपना घर एंटी मनु बनवाया है, यानी मनुस्मृति के ठीक उलट.
आज के इन चमकते दलित एंटरप्रेन्योरों के सालों पहले बाबा साहेब ने भी ऐसी ही आर्थिक उन्नति की बात की थी. जातिगत पूर्वाग्रहों और भेदभाव के कारण राजा के यहां मिलिट्री सेक्रेटरी की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने मुंबई के दलाल स्ट्रीट में “स्टॉक एंड शेयर एडवाइजर “ नामक कंसलटेंसी कंपनी खोली थी.
लेकिन फिर उनकी महार जाति की पहचान ने कंपनी को बंद करने पर बाध्य कर दिया. आज भी हालात बहुत नहीं बदले हैं. आजादी के बाद हर सरकार के दावों और 1990 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भी स्टैंड अप इंडिया और मुद्रा योजना जैसे प्लान से भी SC-ST एंटरप्रेन्योरशिप की बहुत मदद नहीं हुई है.
दलितों का प्रतिनिधित्व अभी भी जनसंख्या में उनके हिस्से के अनुपात में बहुत कम है. जाति व्यवस्था आधारित समाज में सामाजिक समानता के लिए आर्थिक समानता जरूरी है. जब दलितों के लिये मूंछ रखना और घोड़ी चढ़ना भी दुष्कर हो तब बाबा साहेब के "सब बराबर" का सपना वास्तविकता से बहुत दूर नजर आता है. जरूरत है ऐसे लाखों एंटरप्रेन्योर की जो आर्थिक विकास के रास्ते दलितों का सामाजिक उत्थान करें.
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