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कोरोनावायरस का खौफ:इतनी तादाद में क्यों चीन जाते हैं भारतीय छात्र?

चीन में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय के लोग रह रहे हैं और उनमें ज्यादातर छात्र हैं.

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चीन में घातक कोरोना वायरस के फैलने और उसके बाद भारतीयों के वुहान छोड़ने के उदाहरणों ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि बहुत बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय के लोग पड़ोसी देश में रह रहे हैं और उनमें ज्यादातर छात्र हैं.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक चीन में 23 हज़ार भारतीय छात्र हैं. यह 2019 का आंकड़ा है. चीन में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे अंतराष्ट्रीय छात्रों में यह बड़ी तादाद है जो केवल दक्षिण कोरिया, थाइलैंड और पाकिस्तान से कम है.

चीन में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय के लोग रह रहे हैं और उनमें ज्यादातर छात्र हैं.

तो ऐसा क्या है जो बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को चीन में पढ़ने के लिए आकर्षित करता है और वे अपने देश या किसी अन्य देश के मुकाबले चीन को प्राथमिकता देते हैं? एक बिल्कुल अलग भाषा बोलने वाले देश में पढ़ाई के क्या-क्या नुकसान सामने आ सकते हैं? और कोरोना वायरस के प्रकोप का क्या असर इन भारतीय छात्रों पर पड़ा है, चाहे वह जगह छोड़ने के रूप में हो या फिर लॉकडाउन की वजह से हो? हम इसे जानने की कोशिश करते हैं.

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मेडिकल की पढ़ाई का आकर्षण

जैसा कि बीजिंग में भारतीय दूतावास ने खुद चिन्हित किया है, “चीन हाल के वर्षों में उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों का पसंदीदा स्थान बन गया है और यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि यहां एडमिशन आसानी से मिल जाता है और ट्यूशन फी सस्ता है.” अनुमानित आंकड़ों को देखें तो 2007 में 700 छात्रों के मुकाबले 2019 में 22 हज़ार छात्रों की मौजूदगी बताती है कि संख्या कई गुना बढ़ गयी है.

और सबसे लोकप्रिय क्षेत्र है चिकित्सा. चीन में पढ़ रहे 90 फीसदी भारतीय विद्यार्थी इसी क्षेत्र से हैं. दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज में एसोसिएट फेलो मधुरिमा नन्दी के मुताबिक, जब चीन ने 2004 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशी छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोले, उसके बाद से ही वहां रुझान बदलने शुरू हो गये थे.

मेडिकल में जाने की इच्छा रखने वाले भारतीय विद्यार्थियों ने चीन का रुख क्यों किया, इसके जवाब में वह बताती हैं, “यह उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प था जो भारत में मेडिकल कॉलेज की सार्वजनिक परीक्षा क्वालिफाई नहीं कर पा रहे थे और जो लोग निजी मेडिकल कॉलेज की महंगी फीस चुकाने में सक्षम नहीं थे. भारत के निजी मेडिकल कॉलेज और अन्य देशों के मुकाबले चीन में पढ़ाई सस्ती है.”

चीन की प्रणाली भी अच्छे तरीके से रेगुलेटेड यानी विनियमित है. हर साल यहां का शिक्षा मंत्रालय अधिकृत संस्थानों की लिस्ट जारी करता है जहां दुनियाभर के छात्र मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी भाषा में करने के लिए नामांकन कर सकते हैं. यह लिस्ट मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर भी उपलब्ध होता है. 2019-20 के लिए जो लिस्ट है उसमें 45 यूनिवर्सिटी/कॉलेज हैं.

नकारात्मक पहलू

मेडिकल एजुकेशन के हब के तौर पर चीन की लोकप्रियता हालांकि कई गुना बढ़ी है, फिर भी यह सबसे बेहतर कतई नहीं है. चीन जैसे देशों से मेडिकल डिग्री ले रहे छात्रों को भारत लौट कर मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना जरूरी होता है जिसे फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट्स एक्जामिनेशन (एफएमजीई) कहा जाता है. मगर, यह टेस्ट चीन में पढ़े भारतीय छात्रों के लिए मुश्किल साबित हुआ है. ‘एक विशेष समय के ऑब्जर्वेशन’ से पता चलता है कि ‘एफएमजीई टेस्ट में फेल हुए ज्यादातर छात्र चीन से’ थे.

नन्दी कहती हैं कि ऐसे निष्कर्ष के बाद भारत और चीन दोनों देशों के मंत्रालयों ने बीते दो वर्षों में क्वालिटी कंट्रोल मानकों को लागू किया है. इसका नतीजा चीन में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या में धीरे-धीरे कमी के रूप में देखने को मिलेगा. नतीजतन कई छात्र अब मेडिकल शिक्षा के लिए फिलीपींस को पसंदीदा देश के तौर पर देख रहे हैं.

“चीन में मेडिकल एजुकेशन ले रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए पाठ्यक्रम, अध्यापन और मूल्यांकन चिंता का विषय रहे हैं. एक बार जब छात्र चीन पहुंच जाते हैं तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है खासकर भाषा की बाधा, पाठ्यक्रम की विषयवस्तु, जिसके बारे में विस्तार से सार्वजनिक मेडिकल कॉलेज की तरह नहीं बताया जाता है और अंग्रेजी में कक्षाएं होने के बावजूद भाषाई दीवार के कारण टीचिंग की क्वालिटी. मूल्यांकन की प्रक्रिया भी बहुत कठोर नहीं होती है.”
-मधुरिमा नन्दी ने द क्विंट को बताया

मेडिसिन के अलावा अलग पढ़ाई की ओर

चीनी उच्च शिक्षा केवल मेडिकल तक सीमित नहीं है. भारतीय छात्रों की यह तादाद छोटी है जो भाषा के अध्ययन और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम को भी चुनती है. आने वाले समय में इनकी संख्या बढ़ सकती है.

बीजिंग की शिंघुआ और शंघाई की तोंग्जी यूनिवर्सिटी में क्रमश: पढ़ाई कर रहीं हरनिध कौर और अनायत अली को अपवाद के तौर पर लिया जा सकता है जो चीन में मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर रहे हैं. सिविल इंजीनियरिंग के पीएचडी छात्र अनायत चीन में पढ़ाई करने की वजह ग्लोबल रैंकिंग में चीनी विश्वविद्यालयों की अच्छी स्थिति बताते हैं. इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी और सुरक्षा की क्वालिटी को शानदार बताते हुए वे क्विन्ट से कहते हैं, “भारत में आईआईटी शीर्ष इंस्टीट्यूट हैं लेकिन अगर हम उनकी तुलना वैश्विक स्तर पर करें तो वे शीर्ष विश्वविद्यालयों में नहीं आते हैं. और, आईआईटी में एडमिशन पाना बहुत मुश्किल काम है क्योंकि बड़ी संख्या में छात्र आवेदन करते हैं और सीटें बहुत कम होती हैं. इसलिए यहां एडमिशन मिलना बहुत मुश्किल होता है. और चीन में एडमिशन लेना बहुत आसान होता है.”

हरनिध के लिए भी चीन का अनुभव कम आश्चर्यजनक नहीं रहा है. वो कहती हैं, “शिक्षक अद्भुत हैं, सहपाठी अद्भुत हैं. उस स्थान पर (यूनिवर्सिटी में) मौजूदगी ही प्रेरणादायी है. वास्तव में यह आपको आगे की ओर ले जाता है...आम तौर पर एक छात्र के लिए जितना जोर वे अच्छी पढ़ाई, अच्छी रिसर्च, समूचे जीवन पर देते हैं वह अविश्वसनीय है.”

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चीन में वायरस के कारण लॉकडाउन के बीच किसी को भी आश्चर्य होगा कि इसने देश में उच्च शिक्षा के माहौल को तात्कालिक तौर पर और लंबी अवधि में भी किस तरह प्रभावित किया है. आखिरकार जैसा कि मधुरिमा नन्दी ध्यान दिलाती हैं, “2004 में जब चीन ने विदेशी छात्रों के लिए अपने शैक्षणिक संस्थानों को खोला था उसके बाद से यह पहला मौका है जब इस स्तर पर महामारी आयी है.” इससे पहले इस स्तर की महामारी 2003 में SARS के रूप में आयी थी. हालांकि वह कहती हैं कि कोरोना वायरस का असर भविष्य में उन छात्रों के फैसलों पर होगा जो चीन में आवेदन करना चाहते हैं लेकिन यह बाधा लम्बे समय तक नहीं रहेगी.

इस बीच वायरस के कारण होने वाली इस गिरावट से उबरने के लिए चीन कितना दृढ़ है इसका प्रमाण यह है कि शिंघुआ यूनिवर्सिटी और तोंग्जी यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन क्लास शुरू की जा चुकी हैं.

शिंघुआ यूनिवर्सिटी के कामकाज की तारीफ करते हुए हरनिध क्विंट से कहती हैं, “हमारे क्लास 17 फरवरी को शुरू हो चुके हैं. हमारी ऑनलाइन क्लास चल रही हैं और एसाइनमेंट दिए जा रहे हैं. हम ग्रुप प्रोजेक्ट कर रहे हैं. उन्होंने वास्तव में यूनिवर्सिटी में अच्छी तकनीक अपनायी है और अविश्वसनीय क्षमता विकसित की है जिससे यह मुमकिन हो सका है.”

इस बात पर कि क्या ऑनलाइन पढ़ाई का कोई बुरा प्रभाव है, वह आगे बताती हैं, “हां, एक तरह से ऑनलाइन क्लासरूम अजीब लगता है. न्यूयॉर्क में सुबह के 3 बज सकते हैं (किसी एक बैचमेट के लिए) और यहां दिन के 12.30 बज रहे होंगे. मानसिक तौर पर भी आप बाहर होते हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि हम एक साथ पढ़ रहे हैं और वास्तव में लौट कर एक साथ जो काम हम करने वाले हैं उसके लिए यह बहुत उपयोगी है.”

अनायत में भी यही आशावाद दिखाई देता है जिन्हें प्रशासन से उम्मीद है कि वे उन्हें एक से दो हफ्ते में बुला लेंगे. पीएचडी छात्र के तौर पर हालांकि वे ऑनलाइन क्लास में शरीक नहीं हुए हैं, वे कहते हैं कि ये क्लास मास्टर्स और बैचलर्स छात्रों के लिए हैं.

वे कहते हैं, “अब तक हमारी पढ़ाई पर बुरा असर नहीं पड़ा है क्योंकि हमारी छुट्टी 17 फरवरी तक है. वे 18 से क्लास शुरू करने की योजना बना रहे थे. लेकिन उन्होंने ऑनलाइन क्लास लेना शुरू कर दिया है...एक बात जो मैं बता सकता हूं वह यह कि जब तकनीक की बात आती है तो चीन वास्तव में इसका उपयोग करने के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ है.”

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