सोचिए की सर्दियों का मौसम आए ही ना! साल के ज्यादातर महीनों में सिर्फ भारी गर्मी पड़े. अब इसका सेहत, खेती और जन-जीवन पर भी असर सोच लीजिए. ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि अगले कुछ दशकों में ऐसे हालात आ सकते हैं. एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, अगर ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से नहीं निपटा गया तो भारत में साल 2070 तक स्थिति ऐसी हो सकती है कि साल के 8 महीनों में भीषण गर्मी ही पड़े. इसका सीधा असर आपके सेहत और रोजमर्रा के कामकाज पर होगा. घरों से निकलना मुश्किल हो जाएगा. साथ ही कई तरह की दूसरी बीमारियां भी पैदा हो सकती हैं.
ये अनुमान क्यों लगाए जा रहे हैं?
ऐसे अनुमान लगाए जाने के पीछे, साइंटिफिक रिसर्च है. इस बार 'वेट-बल्ब टेंपरेचर ' Wet-bulb temperature' की स्टडी की गई और आने वाले दिनों में उसकी बढ़ोतरी के असर को आंका गया. रिसर्चर्स को हासिल हुआ है कि धरती गर्म होने के साथ-साथ ह्यूमिड (Humid) भी होती जा रही है. इन दोनों के एक साथ मापे जाने से ही 'वेट-बल्ब टेंपरेचर' तय किया जाता है . साल 1985 से लेकर 2005 तक ये टेंपरेचर कभी भी 32 डिग्री सेल्सियस (ये अधिकतम है) से ज्यादा नहीं हुआ. हाल के कुछ सालों में इसे बढ़ता देखा गया है, जाहिर तौर पर ये ग्रीन हाउस गैसे के उत्सर्जन के कारण ही हो रहा है. ऐसे में जलवायु में बड़े स्तर पर बदलाव भी दिख रहे हैं.
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में तापमान 80 साल के सबसे ऊपरी स्तर पर 47.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. लोग गर्मी से बेहाल हैं, घरों से निकलना मुश्किल हो गया है. ये बदलाव इसी क्लाइमेट चेंज की ही तो देन है.
'वेट-बल्ब टेंपरेचर' के बढ़ने का कैसे होगा असर?
साल 2015 के हीट वेव (Heart Wave )के हालात क्या आपको याद हैं? देश के कई राज्यों में 'लू' के कारण कई मौतों की खबरें आईं थी. ऐसा ही पाकिस्तान में हुआ था जहां रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 3500 लोगों की मौत हो गई थी. य भारत, मध्य एशिया के कुछ देश और चीन में ऐसे 'हिट वेव'कहर मचा जा रहे हैं. ऐसे में रिसर्चर्स ने दावा किया है कि ये साल 2070 तक इन इलाकों में अक्सर देखने को मिलेंगे.
‘वेट-बल्ब टेंपरेचर’ को पैमाने मानते हुए रिसर्चर्स ने बताया कि ज्यादातर क्लाइमेट सेंसिटिव एरिया में भी ये टेंपरेचर अधिकतम 31 डिग्री सेल्सियस ही पहुंच पाता है. इससे ज्यादा होना खतरनाक हो सकता है. 2070 तक ये लेवल ऊपर पहुंच सकता है.
दरअसल, wet-bulb temperature, शरीर की खुद को ठंडा रखने की क्षमता को देखते हुए आंका जाता है. जब इंसान के शरीर से पसीना निकलता है तो उसके स्किन से ताप भी बाहर निकल जाता है. लेकिन जब वेट बल्ब टेंपरेचर, शरीर तक पहुंचता है तो हीट (Heat) शरीर से बाहर ही नहीं निकल पाती. इस दौरान हवा में जो तापमान होता है वो ह्यूमिडिटी के बावजूद भी शरीर के तापमान से ज्यादा होता है. पुराने रिसर्चों के मुताबिक, इस हालत में इंसान 6 घंटे तक जिंदा रह सकता है. या तो उसे ठंडी जगह ढूंढनी पड़ती है या तो उसकी मौत हो जाती है.
ऐसे में रिसर्चर्स दावा करते हैं कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से जल्द से जल्द नहीं निपटा गया तो स्थिति भयंकर हो सकती है. इसका सीधा असर स्वास्थ्य के अलावा फसलों पर होगा. आप सोचिए कि जिस देश के करीब 22.8 मिलियन लोग खेती-किसानी पर गुजर बसर करते हैं उनका क्या होगा. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अगर ऐसे हालात आते हैं तो सबसे ज्यादा असर भारत, मिडिल ईस्ट और चीन में होगा.
(Source: इंडिया स्पेंड)
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