भारत सरकार ने जब से गेहूं के निर्यात ( India wheat export Ban) पर पाबंदी लगाई है तब दुनियाभर में बवाल मचा है. क्योंकि रूस-यूक्रेन की जंग (Russia-Ukraine War) के बाद से वैसे ही गेहूं की कमी इंटरनेशनल मार्केट में चल रही थी. ऐसे में भारत के फैसले के बाद कई देशों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई लेकिन भारत सरकार का तर्क था कि उन्होंने अपने देश में गेहूं की कमी ना हो इसलिए ये फैसला लिया. साथ ही सरकार ने कहा कि इससे बढ़ती महंगाई को रोकने में भी मदद मिलेगी.
इस बीच एक और नया विवाद इसमें पैदा हो गया. क्योंकि कुछ दिन पहले तुर्की ने भारत का गेहूं वापस कर दिया और उसके बाद मिस्र ने भी वही किया. लेकिन इस सब हाहाकार के बीच इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं का रेट कितना हो गया और भारत में गेहूं का अभी क्या भाव है. ये जानना अहम हो जाता है, इसके अलावा ये भी कि भारत के किसान इस फैसले पर क्या सोच रहे हैं.
गेहूं निर्यात पर बैन का असर
इंटरनेशन मार्केट में महंगा हुआ गेहूं
इंटरनेशनल खाद्य पदार्थों की कीमतों पर नजर रखने वाले संगठन (FAO) यानी खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक, इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं के दामों में लगातार चौथे महीने 5.6 फीसदी की वृद्धि हुई है. लेकिन अगर इसी महीने के पिछले साल के रेट से इसकी तुलना करें तो ये 56.2 फीसदी ज्यादा है. खास बात ये है कि अगर गेहूं के दामों में 11 फीसदी की बढ़ोतरी और हुई तो ये 2008 का रिकॉर्ड तोड़ देगा, जब गेहूं अपने उच्चतम रेटों पर पहुंचा था.
भारत पर गेहूं निर्यात बैन का कितना असर?
सरकार ने कई चीजों के निर्या पर बैन लगाते हुए तर्क दिया था कि इससे महंगाई को रोकने में कामयाबी हासिल होगी. जिसको लेकर एक्सपर्ट की राय बंटी हुई है. दरअसल जिस वक्त सरकार ने गेहूं के निर्यात पर बैन लगाया उस वक्त भारत में गेहूं की कीमत 2300 रुपये क्विंटल थी. 13 मई को सरकार ने ये फैसला लिया था. जिसके फौरन बाद 4 से 8 प्रतिशत तक गेहूं सस्ता हो गया. लेकिन एक हफ्ते बाद ही गेहूं की कीमतों में फिर से तेजी आ गई और...
इस महीने के शुरू में केवल एक क्विंटल पर 54 रुपये ही कम हुए थे, लेकिन कमोडिटी इंसाइट्स के मुताबिक- 7 जून को देश में गेहूं का एवरेज रेट 2097 रुपये प्रति क्विंटल था.
गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन अभी लगा रहेगा
केंद्र सरकार गेहूं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध फिलहाल हटाने के मूड में नहीं है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ये साफ किया. रॉयटर्स से बातचीत में उन्होंने कहा कि अभी दुनिया में अस्थिरता का दौर है. अगर ऐसे में हम एक्सपोर्ट बैन को हटा देंगे, तो इसका फायदा काला बाजारी, जमाखोरों और सट्टेबाज़ों को होगा. ये ना तो जरूरतमंद देशों के हित में होगा ना ही गरीब लोगों की मदद कर पाएगा.
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर
दुनिया में गेहूं का एक्सोपोर्ट करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस और यूक्रेन हैं. इसमें से 30 फीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है. रूस-यूक्रेन युद्ध से ना सिर्फ गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ा, बल्कि एक्सपोर्ट पूरी तरह से बंद हो गया.
यूक्रेन के पोर्ट पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही अनाजों के स्टोर युद्ध में तबाह हो गए हैं. रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश खरीदते हैं. जबकि, यूक्रेन का गेहूं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया में जाता था. अब इन दोनों देशों से सप्लाई बंद है और फिलहाल दोनों देशों के बीच समझौते के कोई आसार भी नजर नहीं आ रहे हैं.
किसानों को कितना नुकसान?
जब सरकार ने गेहूं के निर्यात पर बैन लगाया था तब भारत कृषक समाज जैसे कई किसान संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई थी. उनका कहना था कि फसल की पैदावार कम होने के कारण पहले से ही किसान घाटे का सामना कर रहा है ऐसे में उन्हें इंटरनेशनल मार्केट की महंगाई का भी फायदा नहीं मिलेगा तो नुकसान होगा. जिस वक्त सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई थी उस वक्त देश में गेहूं का रेट 2300 रुपये क्विंटल था लेकिन अब यही रेट 2100 रुपये क्विंटल से भी कम हो गया है.
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