अमेरिकी थिंक टैंक (America's Think Tank) प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research centre) की जारी हुई एक रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर (Fertility Rate) में बड़ी गिरावट की वजह से देश की धार्मिक संरचना में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुए हैं.
'भारत की धार्मिक संरचना' (Religious Composition of India) शीर्षक वाली रिपोर्ट में भारत की आबादी के धार्मिक स्वरूप को बताया गया है, 1951 और 2011 के बीच यह कैसे बदल गया और बदलाव की क्या-क्या वजहें रहीं.
देश की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर कहा गया है कि हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, जैन और बौद्धों के बीच विकास दर में गिरावट आई है, धार्मिक अल्पसंख्यकों में तो यह गिरावट और भी ज्यादा स्पष्ट है, जिसने पहले के दशकों में हिंदुओं को भी पीछे छोड़ दिया था.
भारत की आजादी के बाद से जनसंख्या के आंकड़ों को देखते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि फर्टिलिटी रेट में भारी गिरावट से पहले, भारत एक ऐसे रास्ते पर था, जिससे पता चल रहा था कि कुल आबादी बहुत ज्यादा हो जाती, साथ ही धार्मिक आबादी के वितरण में भी बड़ा बदलाव होता.
लेकिन समय के साथ जन्म दर (Birth Rates) में स्थिरता का मतलब है कि विभाजन के बाद से धार्मिक संरचना भी काफी हद तक स्थिर रही है.
भारत के धार्मिक समूहों में जन्म दर के बीच का अंतर घट रहा
अगर साल 1951 और 1961 के बीच मुस्लिम आबादी का, भारत की 21.6% की समग्र दर से 11% अंक ज्यादा विस्तार हुआ है तो यह अंतर पिछले दशकों में काफी कम हो गया है.
2001 और 2011 के बीच, मुसलमानों के बीच विकास दर (24.7% ) और भारत की समग्र दर (17.7% ) में अंतर 7 प्रतिशत अंक नीचे था.
रिपोर्ट के मुताबिक मुसलमानों की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि हुई है वहीं हिंदुओं की हिस्सेदारी में गिरावट आई है. 1951 से 2011 के बीच मुसलमानों की आबादी 4.4% बढ़कर 14.2% हो गई, जबकि हिंदुओं की संख्या 4.3% घटकर 79.8% हो गई.
मुसलमानों में अभी भी भारत के प्रमुख धार्मिक समुदायों में सबसे ज्यादा फर्टिलिटी रेट है, इसके बाद हिंदुओं में 2.1 है, भारत के धार्मिक समूहों के बीच जन्म दर में अंतर पिछले दशकों में पहले की तुलना में कम होता जा रहा है.
हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या में मध्यम वृद्धि और गिरावट
कुल मिलाकर, 2001 और 2011 के बीच, राज्यों की धार्मिक संरचना में अपेक्षाकृत कम बदलाव आया, भले ही आबादी लगभग हर राज्य में बढ़ी हो.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में अभी भी बड़ी संख्या में हिंदू बहुसंख्यक हैं, जबकि कुछ छोटे राज्यों में मुस्लिम और ईसाई बहुसंख्यक हैं.
यह हिंदुओं के लिए विशेष रूप से सच था, जिनकी आबादी आम तौर पर स्थिर थी या राज्य की आबादी के हिस्से के रूप में केवल मामूली रूप से गिरावट आई थी. मुसलमानों ने भी, राज्यों के अंदर अपनी जनसंख्या हिस्सेदारी बनाए रखी या 2001 और 2011 के बीच केवल थोड़ी वृद्धि हुई.
उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में, मुसलमानों में 1.8% की वृद्धि हुई और जम्मू-कश्मीर में 1.3% अंकों की वृद्धि हुई. एकमात्र राज्य जिसमें मुस्लिम हिस्सेदारी में गिरावट आई वह मणिपुर था, जिसमें 0.4% की गिरावट आई थी.
माइग्रेशन के बावजूद धार्मिक समूहों का जियोग्राफिक डिस्ट्रिब्यूशन नहीं बदला
वैसे तो माइग्रेशन जनसांख्यिकी को स्थानांतरित करने में योगदान देता है, भारत के मामले में देश में या देश के बाहर लाखों लोगों के माइग्रेशन के बावजूद, धार्मिक समूहों का भौगोलिक वितरण विभाजन के बाद से काफी हद तक स्थिर रहा है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रवासन संख्या समग्र जनसंख्या के सापेक्ष कम है.
फिलहाल में केरल और तमिलनाडु में ईसाइयों की संख्या अभी भी ज्यादा है. लक्षद्वीप के कम आबादी वाले द्वीपसमूह को छोड़कर, जम्मू और कश्मीर मुस्लिम बहुमत वाला एकमात्र स्थान है.
बौद्ध और जैन सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में हैं और सिख पंजाब में, जहां वो बहुसंख्यक हैं, जबकि लगभग हर दूसरे राज्य और क्षेत्रों में हिंदू ही बहुमत है.
धर्मांतरण ने धार्मिक जनसांख्यिकी को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया है
भारत में कई मौकों पर 'लव जिहाद' और शादी की आड़ में हिंदू महिलाओं के अवैध धर्मांतरण के आरोप लगते रहते हैं.
कई बार यह आरोप गलत साबित भी हुए हैं, इस रिपोर्ट इस तथ्य का समर्थन करती है कि धर्म बदलने वाले भारतीयों की संख्या मामूली है और जनसांख्यिकीय परिवर्तन का एक प्रमुख कारक नहीं है.
भारत भर में लगभग 30,000 वयस्कों के 2020 प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण में, बहुत कम लोगों ने संकेत दिया कि उन्होंने बचपन से ही धर्म बदल लिया था.
सर्वे में 99% वयस्कों ने बताया कि अभी भी वह खुद की पहचान हिंदू के रूप में करते हैं, जो बचपन से हिंदू हैं. इसी तरह, मुसलमानों के रूप में पले-बढ़े लोगों में से 97% अभी भी मुसलमान ही हैं और जिन भारतीयों का पालन-पोषण ईसाई के रूप में हुआ, उनमें 94% अभी भी ईसाई हैं.
इसके अलावा, आंकड़ों से संकेत मिलता है कि हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों के भारत छोड़ने की ज्यादा संभावना है, और मुस्लिम-बहुल देशों से भारत में आने वाले अप्रवासी अनुपातहीन रूप से हिंदू हैं.
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