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‘RAW’ में जॉन वो जासूस बने हैं, जिसने पाकिस्तान को कर दिया था पस्त

पर्दे के पीछे रहकर रॉ ने कैसे पाकिस्तान के मंसूबों को नाकाम कर दिया?

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1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हराकर अपनी जीत का बड़ा परचम लहराया था. पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था और पूर्वी पाकिस्तान से अपना कब्जा भी छोड़ दिया था. भारत की इस जीत की वाहवाही पूरी दुनिया में हुई थी. लेकिन शायद भारतीय सेना के लिए पाकिस्तान पर इतनी बड़ी जीत मुमकिन नहीं होती, अगर पर्दे के पीछे रहकर RAW (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) ने उनकी मदद नहीं की होती.

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भारत-पाकिस्तान युद्ध में खुफिया एजेंसी रॉ ने सेना के ऑपरेशन में बहुत बड़ी मदद की थी. लेकिन क्या आपको मालूम है पर्दे के पीछे रहकर रॉ ने कैसे पाकिस्तान के मंसूबों को नाकाम कर दिया? कैसे मुक्तिवाहिनी का गठन कर पाक आर्मी के खिलाफ ऑपेरशन चलाया और किस तरह रॉ की मदद से भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था?

रॉ ने पाक की हरेक हरकत पर रखी नजर

भारत-पाक युद्ध से मात्र तीन साल पहले (1968) ही रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का गठन हुआ था. तीन साल के भीतर रॉ ने दुश्मन देशों में अपने एजेंटों का बड़ा नेटवर्क फैला लिया था. पाकिस्तान में भी सेना से लेकर संसद तक रॉ ने अपने एजेंट का जाल बिछा लिया था. 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) की आम जनता पर अत्याचार काफी बढ़ गया था.

रॉ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि जब मार्च 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान पर मिलिट्री एक्शन लेने की प्लानिंग कर रहा था, तब भारत में बैठे रॉ के चीफ रामेश्वर नाथ काओ को इसकी पूरी जानकारी थी.

रॉ के पूर्व अफसर बी रमन की किताब The Kaoboys & R&AW के मुताबिक, पश्चिम से पूर्वी पाकिस्तान में आईएसआई को जितना कॉल किया जा रहा था, रॉ उन सभी कॉल को ट्रेस कर रहा था. यहां तक कि पश्चिमी पाकिस्तान का एडमिनिस्ट्रेशन जब पूर्वी पाकिस्तान के बड़े लीडर शेख मुजीबुर्रहमान की गिरफ्तारी की बात कर रहे था, तब भी रॉ का एक एजेंट वहां मौजूद था. रॉ ने उनकी हर गतिविधि की जानकारी भारत की सरकार और सेना को दे रही थी. तब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी.

पर्दे के पीछे रहकर रॉ ने कैसे पाकिस्तान के मंसूबों को नाकाम कर दिया?

रॉ ने पाक सेना के मंसूबों को किया नाकाम

पश्चिमी पाकिस्तान की गतिविधियों से रॉ को ये अंदाजा हो गया था कि पूर्वी पाकिस्तान पर कुछ बड़ा एक्शन लिया जाने वाला है. अमेरिका से भारत को कोई मदद नहीं मिल रही थी. ऐसे में रॉ के उस समय के चीफ रामेश्वर नाथ काओ ने पाक के मंसूबों को नाकाम करने की योजना बनाई. इसके तहत सेना और रॉ ने मिलकर मुक्तिवाहिनी का गठन किया. रॉ के चीफ काओ ने खुद मुक्तिवाहिनी का नेतृत्व किया.

मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान की मिलिट्री और हजारों वॉलंटियर को जोड़ा गया. उन लोगों को पश्चिमी पाकिस्तान की सेना से लड़ने की खास ट्रेनिंग दी गई. इसके साथ ही उन्हें हथियार भी दिए गए और उसे चलाने की ट्रेनिंग भी. इस मिशन के तहत हर महीने हजारों लोगों को ट्रेनिंग दी गई. फिर उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में अत्याचारी सेना से लड़ने के लिए भेज दिया गया. रॉ और सेना की मेहनत रंग लाई. मुक्तिवाहिनी चुन-चुनकर पश्चिमी पाकिस्तान की सेना को मार रही थी.

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पाकिस्तान की सेना घुटने टेकने को हुई मजबूर

भारत की दखलअंदाजी और मुक्तिवाहिनी के सामने पाकिस्तान के मंसूबे फेल होने लगे थे. ऐसे में पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला करने की योजना बनाई. लेकिन रॉ को इस योजना की भी खबर लग गई. रॉ ने खबर दी कि 72 घंटों के भीतर पाकिस्तान की वायुसेना भारत पर हमला करेगी. रॉ ने 2 दिसंबर, 1971 तक की डेडलाइन दी थी. इसके बाद वायुसेना एलर्ट पर आ गई. लेकिन हमला नहीं हुआ.

रॉ ने वायुसेना से 24 घंटे और अलर्ट पर रहने के लिए कहा. एक दिन बाद रॉ की खबर सच साबित हुई. 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के फाइटर प्लेन भारत के कई शहरों पर हमला करने आए, लेकिन भारतीय वायुसेना ने उनको उल्टे पांव लौटा दिया. वो भारत का कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचा पाए.

पाकिस्तान के इस हमले के बाद भारत भी खुलकर सामने आ गया था. पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी और दूसरी तरफ भारतीय वायुसेना पाकिस्तान पर भारी पड़ने लगी. 13 दिन तक चले इस घमासान के बाद आखिरकार पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया और पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया. पूर्वी पाकिस्तान को आज हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं.

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