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अदृश्य 'बल्लाकांड..' गवाह, सबूत सब 'आकाश' में खो गए

अदालत ने इंदौर 'बल्लाकांड' के आरोपी तात्कालिक विधायक आकाश विजयवर्गीय और नौ अन्य को दोषमुक्त कर दिया है.

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भारत
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बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों की कहानी भी अजब होती थी. एक दबंग अपने पूरे गैंग के साथ किसी पर जुल्म करता, सब लोग उससे डरते फिर एक दिन वो बीच बजार किसी को पीटत है, सैकड़ों लोग देखते हैं, हमेशा की तरह पुलिस देर से आती है. कुछ पुलिस वाले दबंग से मिले रहते हैं, पुलिस दबंग को कुछ नहीं कर पाती. जो पिटता है वो भी डर से चुप हो जाता. कोई सबूत नहीं, कोई गवाह नहीं और अदालत तो सबूत मांगती है न..

ऐसे भी किसी बड़े बुजुर्ग ने कहा था - फिल्म तो समाज का आईना होती है..

इंदौर (Indore) में जिस नगर निगम के कर्मी की पिटाई का वीडियो पूरे देश ने देखा.. उसपर अदालत का फैसला आया है-  “अभियोजन पक्ष अदालत में आरोप साबित नहीं कर सका. बचाव पक्ष के वकील के मुताबिक, कथित तौर पर हमले के वीडियो की प्रामाणिकता अदालत में साबित नहीं की जा सकी. जिसके चलते अदालत ने उस वक्त के विधायक आकाश विजयवर्गीय (Akash Vijayvargiya) और नौ अन्य को दोषमुक्त कर दिया.

अब आईना इतना साफ होगा तो पूछना तो बनता है जनाब ऐसे कैसे?

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तारीख थी 26 जून 2019. जगह- इंदौर. नगर निगम की टीम गंजी कंपाउंड इलाके में एक जर्जर मकान को तोड़ने पहुंची थी. इस बीच स्थानीय लोगों ने तत्कालीन विधायक आकाश विजयवर्गीय को बुला लिया. आकाश विजयवर्गीय, मौजूदा बीजेपी नेता और मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री कैलाश विजय वर्गीय के बेटे हैं.

  • विधायक जी का एक वीडियो वायरल हुआ.. जिसमें इंदौर निगम के जोनल ऑफिसर धीरेंद्र बायस पर क्रिकेट बैट से हमला होता है. आरोप लगा कि आकाश विजयवर्गीय ने नगर निगम अधिकारी को बल्ले से पीटा.. वीडियो में और भी कई लोग धीरेंद्र बायस को पीटते दिखे..

  • वीडियो में भीड़ है.. पुलिस की वर्दी में भी कुछ लोग हैं.. कुछ लोग बीच बचाव करते दिख रहे हैं..

  • खबरें मीडिया में आईं. निगम अधिकारी ने शिकायत दर्ज कराई.. आकाश और 10 अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 294 (अपमानजनक भाषा), 323 (हमला), 506 (आपराधिक धमकी), 147 (दंगा) और 148 (घातक हथियार से लैस होकर दंगा) के तहत मामला दर्ज किया गया.

  • 26 जून 2019 को विधायक आकाश विजयवर्गीय की गिरफ्तारी हुई. हालांकि स्पेशल कोर्ट से 29 जून को आकाश को जमानत मिल गई और तब से लेकर अब तक यानी 5 साल तक केस चल रहा था. अब सांसदों और विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालत ने आरोपियों को मारपीट और आपराधिक धमकी समेत सभी आरोपों से बरी कर दिया.

ये तो हुई ताजा कहानी.. थोड़ा इस पूरे सीन में ट्विस्ट पर ट्विस्ट को समझते हैं.

जब 2019 में आकाश के कथित 'बल्लेबाजी' का वीडियो सामने आया था तब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. हालांकि सरकार बदलते ही पीड़ित अधिकारी धीरेन्द्र बायस ने अपने बयान बदल दिए.

तब फरवरी 2022 में अधिकारी ने अदालत में कहा कि घटना के वक्त वे मोबाइल पर बात कर रहे थे. उन्हें नहीं पता बल्ला किसने मारा, क्योंकि बल्ला पीछे से चला था. क्रॉस बयान में कहा कि उन्होंने आकाश विजयवर्गीय को बल्ला मारते हुए नहीं देखा था. विजयवर्गीय के हाथ में बल्ला देखकर उन्होंने रिपोर्ट में उनका नाम लिखवा दिया था.

यहां सवाल वही है कि धीरेंद्र बायस को अपने बयान से क्यों पलटना पड़ा? क्या उन्हें सुरक्षा और इंसाफ की गारंटी होती तो बयान से पलटते?

इस पूरे मामले में ट्विस्ट और भी हैं...

  1. अदालत में वीडियो को एडिटेड कहा गया.. तो क्या पुलिस ने इसकी फॉरेंसिक जांच की मांग की? फॉरेंसिक जांच हुई?

  2. कहा गया कि वीडियो किसने बनाया है और किसने शेयर किया पता नहीं.. क्या पुलिस के लिए ये पता लगाना इतना मुश्किल काम था?

  3. कहा गया कि जिस बैट से हमला हुआ था वो आरोपी के पास नहीं मिला.. बल्कि खुले में पड़े बैट की जब्ती दिखाई गई..

  4. किसी भी गवाह ने नहीं कहा कि आकाश ने बल्ला मारा.. तो वीडियो में दिख रहे पुलिस वाले क्या गवाह नहीं बन सकते थे.

अदालत में जिस वीडियो से नजर फेर लिया गया, उसी वीडियो को देखकर शायद देश के प्रधानमंत्री नाराज हो गए थे.. यही नहीं बल्ला कांड में जेल गए विधायक को बेल मिलने के बाद जश्न पर भी नाराज हुए थे.

तब 2019 लोकसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी की संसदीय दल की पहली बैठक में आकाश विजयवर्गीय का नाम लिए बिना पीएम मोदी ने कहा था

“कोई भी हो, किसी का भी बेटा हो... मनमानी नहीं चलेगी. ऐसा घमंड और दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं."

इसके बाद मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में बीजेपी ने अपने मौजूदा विधायक आकाश को टिकट नहीं दिया, हालांकि उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर की एक सीट से मैदान में उतारा था.

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सरकारी कर्मचारी पर हमला: क्या कहता है कानून?

आकाश और 10 और लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 के तहत मामला दर्ज हुआ था.. ये धारा लोक सेवक को ड्यूटी के दौरान हमला करने से जुड़ा था, जिसके लिए दो साल की सजा और फाइन या दोनों लगाया जा सकता था.

वहीं आकाश समेत बाकियों पर लगाई गई और आईपीसी की धारा 323 की बात करें, तो इसके मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को चोट पहुंचाता है, तो उसे एक साल तक की जेल हो सकती है या एक हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

लेकिन अदालत तो सबूत मांगता है.. और सबूत लाए कौन? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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