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भारत के इनफॉर्मल सेक्टर में 7 सालों में 16.45 लाख लोगों की गई नौकरी, असल कारण क्या है?

सरकार ने इस तरह की रिपोर्ट को आखिरी बार 2015-16 में जारी किया था. आप 2015-16 की रिपोर्ट को 2022-23 की रिपोर्ट से तुलना करेंगे तब आपको चौंकाने वाले आंकड़े दिखेंगे.

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भारत
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भारत में पिछले 7 सालों में 16.45 लाख लोगों की नौकरी चली गई है. इतनी बड़ी संख्या में नौकरी खोने वाले लोग इनफॉर्मल सेक्टर के हैं. ये आंकड़े सांख्यिकी मंत्रालय यानी (Ministry of Statistics and Programme Implementation - MoSPI) की एन्युअल सर्वे ऑफ अनइनकॉर्पोरेटेड एंटरप्राइजेज (ASUSE) रिपोर्ट के विश्लेषण करने के बाद सामने आए हैं.

सरकार ने इस तरह की रिपोर्ट को आखिरी बार 2015-16 में जारी किया था. इसके बाद दो रिपोर्ट 2021-22 और 2022-23 को अब जारी किया है. जब आप 2015-16 की रिपोर्ट को 2022-23 की रिपोर्ट से तुलना करेंगे तब आपको ये चौंकाने वाले आंकड़े दिखेंगे.

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इन आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि नौकरियों को झटका लगने के पीछे की वजह नोटबंदी, गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स और कोरोना महामारी है. जाहिर तौर पर महामारी का असर सबसे बड़ा है क्योंकि इस दौरान सरकार ने लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया था. इसके अलावा नोटबंदी और जीएसटी सरकार की अपनी नीतियां हैं जिसकी वजह से असंगठित क्षेत्र में रोजगार को झटका लगा है.

सरकारी डेटा के मुताबिक, इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाले लोगों की संख्या 2015-16 में 11.13 करोड़ थी जो अब 2022-23 में घट कर 10.96 करोड़ रह गई है यानी 16.45 लोग अब इस सेक्टर में नहीं है. वहीं इसी दौरान अनइनकॉर्पोरेटेड एनटरप्राइज की संख्या में 16.56 लाख का इजाफा हुआ है. 2015-16 में इनकी संख्या 6.33 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 6.50 करोड़ हो गई है.

क्या है इनफॉर्मल सेक्टर?

भारत की अर्थव्यवस्था में मूल रूप से दो सेक्टर हैं एक - फॉर्मल सेक्टर और दूसरा इनफॉर्मल या असंगठित क्षेत्र. फॉर्मल सेक्टर में काम कर रहे लोगों पर सरकार का सीधा नियंत्रण होता है, उन्हें सरकार डायरेक्टली या इनडायरेक्टली रेगुलेट कर सकती है. ऐसी कंपनी या बिजनेस को रजिस्टर कराना होता है, टैक्स भरना होता है. फॉर्मल सेक्टर में काम कर रहे लोगों को सामाजिक सुरक्षा जैसे पेंशन मिलना, पीएफ कटना शामिल होता है. इसके उलट इनफॉर्मल सेक्टर होता है.

इनफॉर्मल सेक्टर पर सरकार का सीधा नियंत्रण नहीं होता और इसीलिए ये सेक्टर सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से वंचित होते हैं. जैसे इनफॉर्मल सेक्टर में सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती. इस सेक्टर को किसी सरकारी योजनाओं के तहत लाभ भी नहीं मिलता. जैसे:

  • ऐसे बिजनेस जो रजिस्टर नहीं है (पान/चाय की टपरी)

  • कई व्यापार बिना लाइसेंस के होते हैं

  • जो केवल नगदी में व्यापार करते हैं/टैक्स नहीं भरते

  • जो स्वरोजगार में शामिल हैं या फ्रीलांस काम करते हैं

  • छोटे स्तर के किसान

  • ठेला चलाने वाले, दिहाड़ी पर काम करने वाले

  • लोगों के घरों में काम करने वाले

ऐसा सेक्टर जहां नौकरी का भरोसा नहीं, रेगुलर इनकम का ठिकाना नहीं.

अनइनकॉर्पोरेटेड एनटरप्राइज का क्या मतलब?

ऐसे एनटरप्राइज या बिजनेस जो सरकारी नियमों के तहत रजिस्टर नहीं हैं या सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है, इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है. कर्ज लेने में समस्या आती है. जैसे किसी की हेयर कटिंग की दुकान, टेलरिंग की दुकान, दूध बेचने का काम, आदि.

क्या कहती है रिपोर्ट?

सरकार ने दो रिपोर्ट जारी की 2021-22 और 2022-23:

  • 2022-23 के सर्वे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में इनफॉर्मल सेक्टर का बड़ा हिस्सा है (गांव/शहर दोनों में). इसका मतलब यहां अनइनकॉर्पोरेटेड एनटरप्राइजेज की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 

  • वहीं गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु और पश्चिम बंगाल में अनइनकॉर्पोरेटेड एनटरप्राइजेज की संख्या में कमी आई है.

अब अगर इन आंकड़ों की तुलना 2021-22 से करें तो:

  • उत्तर प्रदेश में अनइनकॉर्पोरेटेड एनटरप्राइजेज की संख्या में 0.84% बढ़ोतरी हुई है

  • महाराष्ट्र में 0.56% की बढ़ोतरी हुई है

  • दिल्ली में 0.79% की बढ़ोतरी हुई

  • पश्चिम बंगाल में 0.27% की कमी आई

अब इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाले वर्कर्स की बात करें:

  • 2021-22 की तुलना में उत्तर प्रदेश में इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाले वर्कर्स की संख्या में 0.27 करोड़ का इजाफा हुआ है.

  • इसी दौरान पश्चिम बंगाल में 0.03% इजाफा हुआ है

  • वहीं महाराष्ट्र में 16.19 लाख का इजाफा हुआ है

ये आंकड़े सकारात्मक है फिर चिंता की बात कहां है? दरअसल सरकार ने इस समय दो रिपोर्ट जारी की जिनकी तुलना में आंकड़े ठीक दिखाई देते हैं लेकिन जब इन्हीं आंकड़ों की तुलना 2015-16 की रिपोर्ट से करें तो आंकड़े चिंताजनक दिखाई देते हैं. नीचे की तस्वीर में देखें.
सरकार ने इस तरह की रिपोर्ट को आखिरी बार 2015-16 में जारी किया था. आप 2015-16 की रिपोर्ट को 2022-23 की रिपोर्ट से तुलना करेंगे तब आपको चौंकाने वाले आंकड़े दिखेंगे.

तस्वीर 1

(फोटो- क्विंट हिंदी)

तस्वीर 1 से पता चलता है कि भारत में 2015-16 में इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वालों की संख्या कितनी थी और 2022-23 में कितनी. जैसे यूपी में 2015-16 में इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाले लोगों की संख्या की 11.13 करोड़ थी जो 2022-23 में घट कर 10.96 करोड़ रह गई. इससे पता चलता है कि 17 लाख के आसापस लोगों की नौकरी अब नहीं रही. इसमें 5 राज्यों के आंकड़े भी बताए गए हैं.

सरकार ने इस तरह की रिपोर्ट को आखिरी बार 2015-16 में जारी किया था. आप 2015-16 की रिपोर्ट को 2022-23 की रिपोर्ट से तुलना करेंगे तब आपको चौंकाने वाले आंकड़े दिखेंगे.

तस्वीर 2

(फोटो- क्विंट हिंदी)

तस्वीर 2 भी तस्वीर 1 की तरह ही आंकड़े पेश करती है और ऐसे बिजनेस के आंकड़े बताती हैं जो इनफॉर्मल सेक्टर के हैं जिन्हें अनइनकॉर्पोरेटेड एंटरप्राइज कहते हैं. इससे पता चलता है कि 2015-16 में ऐसे बिजनेस की संख्या 6.34 करोड़ थी जो बढ़ कर 6.50 करोड़ हो गई है.

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अनइनकॉर्पोरेटेड एंटरप्राइज की संख्या बढ़ने से क्या पता चलता है?

ये तो साफ है व्यापार करने वालों की संख्या बढ़ने से वे खुद को रोजगार के साथ कुछ अन्य लोगों को भी रोजगार देते हैं. इसलिए रोजगार मिलने के आधार पर ये अच्छी बात है. लेकिन ये बात भी ध्यान में रखने वाली है कि इस सेक्टर में सरकारी सुविधाएं नहीं हैं, नौकरी सुरक्षित नहीं रहती है, ना पीएफ जैसी सुविधा और ना ही पेंशन.

अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे अरुण कुमार ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा, "भारत में काम करने वालों में से 90% से ज्यादा लोग इनफॉर्मल सेक्टर में हैं और बहुत ही कम लोग फॉर्मल सेक्टर में काम करते हैं. इसके बावजूज सरकार इनफॉर्मल सेक्टर को बढ़ावा नहीं देती."

सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, इनफॉर्मल सेक्टर का हिस्सा बढ़ा है लेकिन साथ ही लोगों की समस्याएं भी बढ़ी हैं क्योंकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा, जॉब सिक्यॉरिटी और बाकी लाभ नहीं मिल पाते.

"भारत में सरकार को इनफॉर्मल सेक्टर को लाभ देकर बढ़ावा देना चाहिए और इससे फॉर्मल सेक्टर को कोई नुकसान नहीं होगा, इनफॉर्मल सेक्टर को बढ़ावा मिलने से रोजगार पैदा होंगे, उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा, उनके लिए योजनाएं आएंगी तो उन्हें फायदा होगा, आगे मांग पर भी अच्छा असर पड़ेगा, मांग बढ़ेगी तो फॉर्मल सेक्टर को भी फायदा होगा."
प्रोफेसर अरुण कुमार
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'नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन ने छिनी नौकरियां'

इस रिपोर्ट पर बात करते हुए अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे अरुण कुमार ने सर्वे की मेथड यानी प्रक्रिया पर सवाल उठाया.

रिटायर प्रोफेसर अरुण कुमार (अर्थशास्त्र) ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा, "एक बात जो समझ आती है कि इसका सैंपल 2011 के सेंसस के आधार पर लिया होगा क्योंकि उसके बाद कोई सेंसस आया नहीं तो ये आज के समय में कितना सही होगा ये देखना होगा. इस सर्वे की प्रक्रिया कितनी सही ये देखना होगा. इसमें एरर की संभावना दिखाई देती हैं."

उनका कहना है कि इस एरर की वजह से नौकरी खोने वालों और व्यापार बंद होने की संख्या में जो गिरावट बताई गई है वो कम हो सकती है. यानी जो व्यापार बंद हुए हैं उनकी संख्या और अधिक हो सकती है.

उन्होंने कहा, "नोटबंदी और जीएसटी इन नौकरियों के खत्म होने के पीछे बड़ा कारण है. जब नोटबंदी हुई तो कैश की कमी हो गई. इस वजह से व्यापार के दैनिक कामकाज में गिरावट आई जिससे लोगों की आमदनी में भी गिरावट आई. आप इसे ऐसे समझे कि जैसे शरीर में खून की कमी होने से स्वास्थ्य बिगड़ता है वैसे ही कैश की कमी से नुकसान हुआ. फिर जीएसटी की मार, इसमें कई स्ट्रक्चरल खामियां हैं. छोटी फैक्ट्रियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता और बड़ी ईकाइयों को मिलता है इस वजह से छोटी फैक्ट्रियों का सामान ज्यादा दाम पर बिकता है और उनका सामान कोई खरीदता नहीं, ऐसे कई उदाहरण हैं."

प्रोफेसर कुमार ने कहा, "इसके बाद लॉकडाउन और गैर-बैंकिग सेक्टर में आए संकट की वजह इनफॉर्मल सेक्टर को झटका लगा. सरकार ने गलत तरीके से लॉकडाउन लगाया इस दौरान काम बंद हो गया और 2018 के करीब गैर बैंकिंग सेक्टर में भी संकट आ गया. गैर बैंकिंग सेक्टर छोटे बिजनेस को लोन देते हैं, अब जब वो खुद संकट में आ गए तो उसका इनफॉर्मल सेक्टर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा."

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