हिंदी पट्टी सहित समूचा उत्तर भारत पिछले कुछ दिनों से कड़ाके की ठंड का सामना कर रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, भूमध्य सागर में पैदा होने वाला असामान्य और शक्तिशाली पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस) इसकी बड़ी वजह है.
यह स्थिति चार से पांच दशकों में एक बार पैदा होती है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र जेनामणि ने कहा, "यह लंबी अवधि है, जिसकी प्रकृति अनोखी है और यह पूरे उत्तरपश्चिम भारत पर असर डालेगी."
दिल्ली में इस साल टूट सकते हैं रिकॉर्ड
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के एक अधिकारी ने बताया, ‘दिसंबर में औसत अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम 1919, 1929,1961 और 1997 में रहा है.’
इस साल दिसंबर में 26 तारीख तक औसत अधिकतम तापमान 19.85 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, यह 31 दिसंबर तक 19.15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. अधिकारी ने कहा, ‘अगर ऐसा होता है तो यह 1901 के बाद दूसरा सबसे सर्द दिसंबर होगा. इससे पहले दिसंबर 1997 में औसत अधिकतम तापमान 17.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था.’
‘जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की बेरुखी सामने आई’
गंगा के मैदानी क्षेत्रों में घना कोहरा और हिंद महासागर की असामान्य वॉर्मिग पश्चिमी विक्षोभ के लिए जिम्मेदार हैं. इसके साथ ही भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय तूफान से भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरपश्चिमी हिस्से में अचानक से ठंड के मौसम में बरसात हुई, जिससे देश के कुछ शहरों में दिन का तापमान 12 डिग्री से नीचे हो गया.
वैज्ञानिकों को आशंका है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की बेरुखी सामने आई है और अप्रत्याशित मौसम की यह स्थिति लोगों को परेशान करती रहेगी.
पुणे के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च (सीसीसीआर) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. भूपिंदर बी.सिंह ने कहा, "जलवायु परिवर्तन पश्चिमी विक्षोभ की तीव्रता और आवृत्ति को प्रभावित कर रहा है, और यह आने वाले सालों में पारे को नीचे ला सकता है, जबकि मध्य और दक्षिण भारतीय क्षेत्र ज्यादा गर्म हो सकते हैं." डॉ. सिंह का अनुमान है कि आने वाले सालों में हिमालयी क्षेत्र और गंगा के मैदानी क्षेत्र जिसमें पूरा उत्तर भारत शामिल है, मौसम को लेकर ज्यादा संवेदनशील हो सकते हैं और यहां के लोगों को मौसम की बेरुखी झेलनी पड़ सकती है.
डॉ. सिंह ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से कहा, "ध्यान देने की बात है कि अगर ज्यादा प्रदूषण होगा तो ज्यादा धुंध होगी. इसी तरह से पश्चिमी विक्षोभ अत्यधिक तीव्र होगा और हमें मौसम की मार का सामना करना होगा।"
आईएमडी के वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि गंगा के मैदानी इलाकों में स्मॉग का असर मौसम पर पड़ रहा है. उनके शोध से संकेत मिलता है कि पिछले कुछ सालों में तापमान में बदलाव का एक अप्रत्याशित पैटर्न चल रहा है.
डॉ जेनामणि ने कहा, "आम तौर पर ज्यादा ठंड की अवधि 5 या 6 दिनों होती है, लेकिन इस साल 13 दिसंबर से तापमान में गिरावट जारी है .. यह अप्रत्याशित है. हालांकि, अब ऐसा लगता है कि 31 दिसंबर के बाद ही राहत मिल सकती है."
वैज्ञानिकों का मानना है कि 16 से 17 दिनों से ज्यादा समय तक इस तरह के ठंडे मौसम का होना असामान्य है.
बता दें कि इस वक्त भीषण शीतलहर से उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में सामान्य जीवन प्रभावित है.
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