Ipsos का हालिया मासिक सर्वे बताता है कि मई में कोरोना लहर के दौरान शहरी भारत के हर दो में से एक (48%) शख्स का मानना है कि देश सही रास्ते पर नहीं है. सर्वे में ये भी बताया गया है कि मई 2021 में शहरी भारतीयों की सबसे बड़ी चिंता कोरोना वायरस और बेरोजगारी रहा.
- इस बार 52 फीसदी भारतीयों का मानना है कि देश सही रास्ते पर है. जबकि अप्रैल में 63 फीसदी ने माना था कि भारत सही दिशा में है.
- पिछले दौर की तुलना में इस बार आशावाद यानी ऑप्टिमिज्म में 11 फीसदी की गिरावट देखी है.
- दुनिया के 65 फीसदी लोगों का मानना है कि उनका देश गलत दिशा पर है.
- सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया सबसे आशावादी देश, यहां ज्यादातर का मानना है कि देश सही दिशा में है
- कोलंबिया, पेरु और अर्जेंटीना में सबसे ज्यादा निराशा, ज्यादातर लोग मानते हैं कि देश गलत ट्रैक पर है.
अप्रैल के मुकाबले मई में निराशा बढ़ी है- सर्वे
Ipsos इंडिया के CEO अमित अदारकर का कहना है कि “हमने अप्रैल के मुकाबले मई में आशावाद में बड़ी गिरावट देखी है. कोरोना वायरस संक्रमण में अचानक हुई वृद्धि ने हमारे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को अस्त-व्यस्त करके रख दिया. देश में बेड, ऑक्सीजन और दवाओं की कमी के हालात बन गए. हमें उच्च मृत्यु दर देखने को मिली. इस स्थिति ने हमारी लाचारी को उजागर किया और संकट से निपटने को लेकर हमारी क्षमताओं पर अधिकांश नागरिकों के विश्वास में कमी देखने को मिली.”
अमित आगे कहते है कि “मित्र देशों की मदद और लॉकडाउन की वजह से स्थिति पर नियंत्रण कुछ हद तक किया गया है, लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. देश के लिए यह एक कठिन दौर रहा है.”
“हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करके और वैक्सीनेशन में तेजी लाकर हम तीसरी लहर से बचने का उपाय कर सकते हैं, लेकिन आशावाद में दर्ज की गई भारी गिरावट को कॉन्फिडेंस बिल्डिंग यानी विश्वास निमार्ण के उपायों से ही रोका जा सकता है.”
पहली लहर के दौरान निराशावाद की स्थिति इस तरह नहीं देखी गयी थी. यह कंज्यूमर सेंटीमेंट और सुधार की मांग को मुश्किल बना सकती है.अमित अदारकर, सीईओ, Ipsos इंडिया
मई 2021 में भारत के शहरी लोगों की सबसे बड़ी चिंता-कोरोना, बेरोजगारी
सर्वे के दौरान लोगों से इस बात को लेकर भी पूछा गया कि मई 2021 में उनके लिए सबसे चिंता की बात क्या रही. इस पर मिले जवाबों के मुताबिक कोरोना वायरस सबसे चिंताजनक रहा.
- तीन में से 2 भारतीय यानी 66 फीसदी लोगों ने कोरोना को सबसे चिंताजनक बताया. अप्रैल की तुलना में इस बार इस आंकड़े में 21 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है.
- इसके बाद बेरोजगारी का मुद्दा शहरी भारतीयों के लिए दूसरे स्थान पर रहा. 44 फीसदी ने इसे चिंताजनक बताया इतने ही लोगों ने अप्रैल में भी इसे गंभीर मुद्दा माना था.
- हेल्थकेयर यानी स्वास्थ्य की तीसरी बड़ी चिंता बनकर उभरा है. अप्रैल के मुकाबले इस बार इसमें 13 फीसदी से ज्यादा का उछाल देखने को मिला है.
- वहीं फाइनेंशियल/पॉलिटिकल यानी वित्तीय या राजनीतिक चिंता में गिरावट देखने को मिली है अप्रैल की तुलना में इसमें 11 फीसदी की गिरावट हुई. मई में 24 फीसदी लोगों ने इसे चिंताजनक माना है. यह चौथे पायदान पर रही.
- गरीबी और सामाजिक असमानता पांचवें स्थान पर सबसे चिंताजनक बात रही है. 21 फीसदी ने इसे गंभीर मुद्दा माना है.
मई में दो बात जो सबसे चिंताजनक रही है वह कोविड और हेल्थकेयर रही है. कोविड मामलों में उछाल और हेल्थकेयर संकट ने भारत को बैकफुट पर ला दिया है. यह एक बुरे सपने की तरह रहा है. लोगों की जिंदगियां बचाने को लेकर हमारी क्षमताओं के प्रति इसने भारतीयों के विश्वास को झकझोर दिया है. इसको तत्काल रिवाइव करने की चुनौती है.अमित अदारकर, सीईओ, Ipsos इंडिया
दुनिया में किन मुद्दों पर सबसे ज्यादा चिंता
वैश्विक स्तर पर चिंताजनक मुद्दों की बात करें तो ये मामले प्रमुखतया से देखने को मिले हैं.
- कोविड-19 (42 फीसदी)
- बेरोजगारी (34 फीसदी)
- गरीबी और सामाजिक असमानता (32 फीसदी)
- वित्तीय / राजनीतिक भ्रष्टाचार (30 फीसदी)
- क्राइम और वायलेंस यानी अपराध और हिंसा (25 फीसदी)
बता दें कि 28 देशों में ये सर्वे 23 अप्रैल और 7 मई के बीच ऑनलाइन किया गया. इसमें 19,070 लोगों ने हिस्सा लिया. सर्वे में हिस्सा लेने वाले कनाडा, इजरायल, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, तुर्की और यूएस के 18 से 74 साल के उम्र के लोग थे. बाकी के 21 देशों में इनकी उम्र 16 से 74 साल के बीच थी.
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