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Chandrayaan-3 के 28 दिन बाद रूस ने भेजा Luna-25, चांद पर पहले कौन पहुंचेगा?

Luna-25 लगभग 50 वर्षों में रूस का पहला चंद्रमा मिशन है.

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भारत
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Chandrayaan-3 के 28 दिन बाद रूस ने भेजा Luna-25, चांद पर पहले कौन पहुंचेगा?
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भारत ने 14 जुलाई को अपना तीसरा चंद्रमा मिशन, चंद्रयान -3 (Chandrayaan-3) लॉन्च किया, जबकि रूस का लूना -25 (Luna-25) लगभग एक महीने बाद 11 अगस्त को लॉन्च हुआ. दोनों अंतरिक्ष यान अब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की दौड़ में हैं. चंद्रयान-3 के 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की उम्मीद है. हालांकि, देर से लॉन्च होने के बावजूद, रूस का मिशन जल्द ही यह उपलब्धि हासिल कर सकता है. लूना 25 लगभग 50 वर्षों में रूस का पहला चंद्रमा मिशन है.

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‘Times Of India’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस (Roscosmos) ने कहा कि उसके लूना-25 (Luna-25) अंतरिक्ष यान को चंद्रमा तक उड़ान भरने में पांच दिन लगेंगे. फिर उसके दक्षिणी ध्रुव के पास संभावित लैंडिंग की तीन जगहों में से एक पर उतरने से पहले लूना-25 चांद की कक्षा में 5-7 दिन बिताएगा. इसके टाइम टेबल ये यह साफ पता चलता है कि लूना-25 चंद्रमा की सतह पर उतरने में चंद्रयान-3 की बराबरी कर सकती है या उसे थोड़ा पीछे छोड़ सकता है.

“लूना-25 के सफल लॉन्च पर रोस्कोस्मोस को बधाई. हमारी अंतरिक्ष यात्राओं में एक और मिलन बिंदु होना अद्भुत है” भारत अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ट्वीट किया.
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चंद्रायान-3 (Chandrayaan-3) को दो हफ्ते तक प्रयोग चलाने के लिए डिजाइन किया गया है, जबकि लूना-25 चंद्रमा पर एक साल तक काम करेगा. 1.8 टन के द्रव्यमान और 31 किलोग्राम (68 पाउंड) वैज्ञानिक उपकरण ले जाने के साथ लूना-25 जमे हुए पानी की मौजूदगी का परीक्षण करने के लिए 15 सेमी. (6 इंच) की गहराई से चट्टान के नमूने लेने के लिए एक स्कूप का उपयोग करेगा. जो चंद्रमा पर मानव जीवन को संभव बना सकता है. अक्टूबर 2021 में लॉन्च किए जाने वाले लूना-25 मिशन में लगभग दो साल की देरी हुई है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने पायलट-डी नेविगेशन कैमरे को लूना-25 से जोड़कर उसका परीक्षण करने की योजना बनाई थी. मगर पिछले साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद उसने इस परियोजना से अपना नाता तोड़ लिया.

चंद्रयान-3 और लूना-25 की लैंडिंग साइट्स पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. एक्सपर्ट के अनुसार, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के चुनौतीपूर्ण इलाके में नेविगेट करना आसान काम नहीं होगा.

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