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संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर जयशंकर की पाकिस्तान को दो टूक की वजह

दुनिया भर में आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका पर भारत सख्त है जबकि अब कुछ देश रुख नरम करने में लगे हैं.

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विदेश मंत्री जयशंकर  (S Jaishankar) के लिए इस बार संयुक्त राष्ट्र में काफी व्यस्तताएं रहीं. चीन के साथ संकट वार्ताओं से निपटने की चुनौती, अफगानिस्तान, पाकिस्तान को संभालने, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे मित्रों, सहयोगियों से बात करने के अलावा, उन्हें संयुक्त राष्ट्र में और भी दूसरे भार उठाने पड़े.

भारत जून 2020 से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का सदस्य है. इसने अगस्त 2021 में और फिर इसी महीने UNSC की अध्यक्षता ग्रहण की. इस साल के अंत तक कार्यकाल पूरा होने से पहले वैश्विक स्तर पर अपने विचार रखने के मौके का पूरा फायदा उठा रहा है.

जयशंकर  (S Jaishankar) इस सप्ताह दो हाई लेवल कमिटी की अध्यक्षता करने के लिए न्यूयॉर्क में थे. पहली 'नई ओरिएंटेशन फॉर रिफॉर्म्ड मल्टीलेटरिज्म' (NORMS) विषय पर खुली बहस थी. बहस के बाद इस पर ही 'आतंकवाद का मुकाबला करने में वैश्विक दृष्टिकोण-चुनौतियां और आगे का रास्ता' पर एक उच्च-स्तरीय ब्रीफिंग हुई.

पाकिस्तान से नाखुश भारत

दोनों ही अवसरों पर जयशंकर  (S Jaishankar) की टिप्पणियों का एक प्रमुख फोकस आतंकवाद और पाकिस्तान की भूमिका था, जिसका औपचारिक भारतीय बयानों में जिक्र नहीं था.

अक्टूबर में दिल्ली और मुंबई में UNSC की आतंकवाद-विरोधी कमिटी की एक खास बैठक और नवंबर में "नो मनी फॉर टेरर (NMFT)" मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की गई थी. NMFT का आयोजन 100 से अधिक देशों की वित्तीय खुफिया इकाइयां (FIU) करती हैं, जिसे एग्मोंट समूह भी कहा जाता है. नई दिल्ली इस बात से खुश नहीं था कि, अक्टूबर में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने नरमी दिखाई थी. एफएटीएफ ने कहा कि आतंकवादी फंडिंग से निपटने के लिए कानूनी और सरकारी तंत्र में सुधार करने में "महत्वपूर्ण प्रगति" के कारण इसे संगठन की ग्रे सूची से हटा दिया गया था.

UNSC की 1267 कमिटी की आतंकवादी संस्थाओं की सूची में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को नामित करने के लिए भारत और अमेरिका के प्रयासों को चीन की तरफ से वीटो किए जाने से भी भारत नाखुश रहा है. जिन लोगों को नई दिल्ली सूची में शामिल करना चाहती थी, उनमें लश्कर के संस्थापक के बेटे तल्हा सईद और फलाह-ए-इन्सानियत ट्रस्ट से जुड़े शाहिद महमूद शामिल थे, जो लश्कर के लिए एक फ्रंट की तरह काम करता है.

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सुधारों को लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र में दरकिनार किया गया

बुधवार को NORMS की बैठक में जयशंकर  (S Jaishankar) ने UNSC सदस्यों को याद दिलाया कि समान प्रतिनिधित्व और UNSC की सदस्यता बढ़ाने का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेंडे में तीन दशकों से अधिक समय से है, लेकिन सुधारों पर बहस “बेपटरी” हो गई है. हालांकि, आर्थिक नीति के क्षेत्र में, G-20 बनने से एक बदलाव आया था. COVID महामारी या क्लाइमेट जस्टिस के लिए "एक अधिक व्यापक-ग्लोबल ऑर्डर" की आवश्यकता दिख रही है. लेकिन सुधार की मांग के बावजूद कुछ नहीं किया गया है. वास्तव में प्रक्रिया स्वयं "बिना किसी समय सीमा के" आयोजित की गई है और बिना किसी टेक्स्ट के ही इस पर बातचीत की जा रही है. पूरी प्रक्रिया का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जा रहा है जिससे ये किस दिशा में बात आगे बढ़ रही है उसे समझा जा सके.

बहस के दौरान, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कश्मीर मुद्दे को यह कहते हुए उठाया कि किसी देश को इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती है कि एक दिन वो बहुपक्षीय प्रक्रिया अपनाने की वकालत करें और फिर अगले दिन ही द्विपक्षीय रास्ते पर जोर दें और आखिर एकतरफा कार्रवाई कर लें. लेकिन भुट्टो की टिप्पणी का मुख्य जोर भारत को UNSC की स्थायी सदस्य बनने के लिए मिल रहे समर्थन को कम करना था.

जयशंकर  (S Jaishankar) ने करारा जवाब दिया. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के बारे में उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था की विश्वसनीयता इस बात पर ज्यादा निर्भर करती है कि वो आतंकवाद की घटनाओं को सामान्य ना बनाए. यह इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि वो ऐसे देश को नहीं बख्शे जो आतंकवाद को पालते पोषते हैं और ओसामा बिन लादेन को पनाह देते हैं ताकि वो पड़ोसी देश की संसद पर आतंकवादी हमला कर सकें ”

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आतंकवाद पर पाकिस्तान की भूमिका पर भारत का करारा पलटवार

अगले दिन जयशंकर  ( S Jaishankar) को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आतंकवाद-विरोधी एजेंडे को फिर से चर्चा में लाने के लिए वैश्विक आतंकवाद-विरोधी कार्रवाई पर UNSC के कदम और पाकिस्तान पर खुलकर आक्रमण करने का मौका मिला.

उन्होंने कहा कि इसकी आवश्यकता थी क्योंकि "आतंकवाद का खतरा वास्तव में और भी गंभीर हो गया है." अलकायदा और दा'एश, बोको हरम और अलशबाब जैसे ग्रुप का विस्तार हुआ है. कुछ दूसरे संगठनों का भी. इसके अलावा कुछ "पुरानी आदतें और स्थापित नेटवर्क" अभी भी आसपास है, विशेष रूप से दक्षिण एशिया में जहां आतंकवाद का केंद्र अभी भी बहुत एक्टिव है.

बाद में पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, पाकिस्तान आतंकवाद का केंद्र है. उसे अपनी हरकतों को ठीक करने और एक अच्छा पड़ोसी बनने की जरूरत है. उन्होंने पाकिस्तानी विदेश राज्य मंत्री हिना रब्बानी खार जो साल 2011 में पाकिस्तान की विदेश मंत्री थीं,का जिक्र किया. दरअसल, उस वक्त अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन थी और वो हिना रब्बानी खार के साथ खड़ी थीं तब हिना रब्बानी खार ने भारत को ही आतंकवादी देश करार दिया था. जबकि अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान को चेताते हुए हिना रब्बानी खार से कहा था कि ‘अगर आप अपने घर की पीछे सांप पालते हैं तो आप उनसे यह उम्मीद नहीं रख सकते कि वो सिर्फ पड़ोसियों को काटेगा.

आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों के बीच क्या पाकिस्तान के साथ नरमी बरती जा सकती है ?

इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र में होने वाली बहसों से कुछ खास निकलने की संभावना नहीं है. सुधार केवल एक बड़े वैश्विक राजनीतिक संकट के मद्देनजर UNSC में आएंगे. यह वह पैटर्न है जिसने G-7 के सुधार का नेतृत्व किया, जो पहले के कई आर्थिक संकटों के मद्देनजर 1999 में G 20 की स्थापना के लिए सहमत हुआ था, लेकिन 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से, यह कम से कम साल में एक बार होता है.

न ही आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के लिए दुनिया के राजी होने की संभावना है. सच कहा जाए तो पिछले एक दशक में आतंकवादी हमलों में काफी कमी आई है, इस बात को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को फटकार लगाने में भारत कुछ ज्यादा ही ऊपर दिखाई देता है.

लेकिन विदेश मंत्री के रूप में, जयशंकर इन विषयों को उठाना अपना कर्तव्य समझते हैं जो भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक "अग्रणी शक्ति" के रूप में स्थापित करने के उनके नजरिए का हिस्सा हैं.

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