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जलियांवाला बाग में हुए बदलाव पर इतिहासकारों ने की आलोचना,कहा- इतिहास से छेड़छाड़

जलियांवाला बाग में मौजूद शहीदी कुएं पर अब ट्रांसपेरेंट बैरियर लगा दिया गया है.

Published
भारत
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस जलियांवाला बाग (Jallianawala Bagh) स्मारक का उद्घाटन किया है उसे लेकर अब इतिहासकार सवाल उठा रहे हैं. कई इतिहासकारों का कहना है कि जलियांवाला बाग के ऐतिहासिक स्मारक का नवीकरण इतिहास के साथ छेड़छाड़ है.

बता दें कि ब्रिटिश सैनिकों ने 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सैनिकों ने करीब 1,000 से ज्यादा भारतीयों का नरसंहार किया था.

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शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार नई गैलरी और पुनर्निर्मित स्मारक का उद्घाटन किया था. दरअसल, इतिहासकार से लेकर अलग-अलग लोग सरकार की आलोचना उन गलियारों को लेकर कर रहे है, जिन्हें बदल दिया गया है. इन गलियारों में ही जनरल डायर ने अपने आदमियों का नेतृत्व करते हुए वहां बैसाखी पर शांति से प्रदर्शन कर रहे पुरुषों और महिलाओं पर गोली चलाने का आदेश दिया था.

साथ ही ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में सुरक्षाबलों द्वारा गोलियां चलाए जाने पर लोगों ने जिस कुएं में छलांग लगाई थी उसे भी उसे पारदर्शी अवरोध से ढक दिया गया है. प्रवेश द्वार को मूर्तियों से सजाया गया है. इसके अलावा जलियांवाला बाग घटनाओं को लोगों को बताने के लिए साउंड एंड लाइट शो भी शुरू किया गया है.

बदलाव पर प्रतिक्रिया देते हुए, इतिहासकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर चमन लाल ने कहा कि यह "इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना” है. उन्होंने कहा कि इस परियोजना ने "इतिहास को रहस्यमय और ग्लैमराइज करने" की कोशिश की है. प्रोफेसर लाल ने कहा,

“जलियांवाला बाग जाने वाले लोगों को दर्द और पीड़ा की भावना के साथ जाना चाहिए. उन्होंने अब इसे एक खूबसूरत बगीचे के साथ आनंद लेने के लिए जगह बनाने की कोशिश की है. यह कोई सुंदर बगीचा नहीं था.”

इतिहासकार एस इरफान हबीब का कहना है कि वह बेहतर शौचालय या लोगों के लिए एक कैफे जैसे बदलाव के विरोध में नहीं थे, लेकिन किए गए परिवर्तन "इतिहास की कीमत पर, विरासत की कीमत पर" है.

उन्होंने कहा,

“यह बिल्कुल भड़कीला है ... दीवार पर भित्ति चित्र क्यों होने चाहिए? डायर जिस जगह से मारने के लिए आया था, उस जगह का पूरा अंदाज बदल देता है. छोटे गलियारे में ग्लैमर जोड़ने से पूरा दृश्य का इतिहास बदल जाता है. इतिहास स्वयं को फिर से लिखा और पुनर्निर्मित किया जा रहा है. यह स्मारकों का निगमीकरण है.”

लंदन स्थित इतिहास के प्रोफेसर और अमृतसर 1919 - एन एम्पायर ऑफ फियर एंड द मेकिंग ऑफ ए मैसेकर, के लेखक किम ए वैगनर ने ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा, "यह सुनकर दुख हुआ कि जलियांवाला बाग ... को नया रूप दिया गया है - जिसका अर्थ है कि घटना के अंतिम निशान प्रभावी रूप से मिटा दिए गए हैं.”

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नेताओं में भी नाराजगी

सीपीएम के सीताराम येचुरी कहते हैं, “हमारे शहीदों का अपमान है. बैसाखी के लिए एकत्र हुए हिंदू मुस्लिम सिखों के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को गति दी. यहां की हर ईंट ब्रिटिश शासन की दहशत बताती है. केवल वे जो महाकाव्य स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहे, वे ही इस प्रकार कांड कर सकते हैं."

शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “दर्द वास्तविक था, क्षति अपार थी, त्रासदी अविस्मरणीय थी. कभी-कभी जगहें दर्द पैदा करती हैं और याद दिलाती हैं कि हमने क्या खोया और किसके लिए संघर्ष किया. उन यादों को 'सुशोभित' या 'संशोधित' करने की कोशिश हमारे सामूहिक इतिहास को बहुत नुकसान पहुंचा रही है.”

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