तमिलनाडु में विवादित खेल प्रतियोगिता जल्लीकट्टू का आयोजन किया गया, जिसमें अब तक 43 लोग घायल हो गए हैं. पोंगल के मौके पर बुधवार को इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. इस मौके पर हजारों सांड इसमें शामिल हुए.
इस खेल में लोग सांड के सींग को पकड़कर उसे काबू में करने की कोशिश करते हैं. सालों से चले आ रहे इस खेल में कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
कहां से आया ये खेल
तमिलनाडु का पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू 2,300 साल पुराना है. ये शब्द सल्लीकट्टू से निकला है. सल्ली का मतलब होता है 'सिक्के' और कट्टू का अर्थ है 'स्ट्रिंग बैग'. इस बैग का इस्तेमाल आज भी दक्षिण भारत के गांव में होता है.
सल्लीकट्टू का मतलब है सिक्कों से भरा बैग, जिसे सांड के सींगों पर बांध दिया जाता है, जिसे प्रतियोगी को काबू में करना होता है.
इस खेल को Yaeru Thazhuvuthal भी कहा जाता है, जिसका मतलब है सांड को गले लगाना. इस खेल में एक छोटी सी गली में दोनों तरफ स्टैंड लगाए जाते हैं और गली में जुती हुई मिट्टी होती है. सांड को Vaadivaasal से भगाया जाता है, जहां से प्रतियोगी सांड को कुछ सेकेंड के लिए पकड़ने की कोशिश करते हैं.
अभी सांड को पकड़ने के लिए कम से कम सात सेकेंड का समय तय किया गया है.
पूरे भारत में कृषि परंपराओं के साथ तमिल संस्कृति में गाय, सांड और घरेलू मुर्गी का काफी महत्व है. सांड के ब्रीड में से जो सबसे अच्छा होता है, उसे जल्लीकट्टू खेल के लिए तैयार किया जाता है. एक सांड 8 से 9 सालों में रिटायर हो जाता है.
राजनीति और जल्लीकट्टू
जानवरों के प्रति क्रूरता की कई शिकायतों के कारण पिछले दो दशकों से इस खेल को बैन करने की भी कोशिश की जा रही है.
पिछले कुछ सालों में इस खेल में कई लोग इस खेल में अपनी जान भी गंवा चुके हैं. साल 2008-14 के बीच इस खेल में 43 व्यक्ति और 4 सांड की जान चली गई.
जल्लीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में बैन कर दिया था. लेकिन इस फैसले के खिलाफ प्रदेशभर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसके बाद इसे वैध करार दिया गया. राजनेता इस खेल को अपनी संस्कृति से जोड़कर वोट साधने की कोशिश करते आ रहे हैं.
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