दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दिसंबर 2019 में हुई हिंसा के मामले में अदालत से कहा है कि निर्दोष छात्रों की सुरक्षा और हालात सामान्य करने के लिए पुलिस को कैंपस में घुसकर कार्रवाई करनी पड़ी. इसके साथ ही पुलिस ने छात्रों पर की गई कार्रवाई को लेकर पुलिस पर मामला दर्ज करने की याचिका खारिज करने का आग्रह किया.
सोमवार 16 मार्च को पुलिस ने कोर्ट में रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया है,
“यह प्रस्तुत किया गया है कि विश्वविद्यालय परिसर के भीतर हिंसा और अंदर फंसे निर्दोष छात्रों को बचाने और परिसर में सामान्य स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए उक्त कार्रवाई की आवश्यकता थी.”
मेट्रोपॉलिटन जज रजत गोयल ने आगे की सुनवाई के लिए 7 अप्रैल की तारीख तय की है.
15 दिसंबर, 2019 को जामिया में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसकर कार्रवाई की थी. यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया था कि पुलिस ने "बिना अनुमति के कैंपस में घुसी थी और छात्रों को बर्बरता से मारा था."
छात्रों और दंगाईयों में फर्क था मुश्किलः पुलिस
अपनी एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) में पुलिस ने दावा किया कि "फंसे हुए छात्रों और दंगाइयों के बीच अंतर करना मुश्किल था, जबकि वहां लोगों के पास पेट्रोल बम पाए गए थे."
पुलिस ने अदालत से अपील करते हुए कहा,
“जामिया रजिस्ट्रार ने शिकायत की है और अन्य लोगों ने भी अपनी शिकायतों के निवारण के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में पहले ही याचिका दायर की है, इसलिए अनुरोध है कि वर्तमान आवेदन को कृपया खारिज कर दिया जाए.”
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने अदालत में कहा था कि पुलिस पर हमले की एफआईआर दर्ज करने की बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई.
याचिका में कहा गया है,
“छात्रों को बेरहमी से पीटा गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया. आंसू गैस के गोले दागे गए, लाठीचार्ज किया गया. पुलिस अधिकारियों ने मेन लाइब्रेरी के गेट को तोड़ दिया और अंदर पढ़ने वालों पर आंसू गैस के गोले दागे.”
याचिका में पुलिस पर सार्वजनिक उपद्रव पैदा करने, धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने, हत्या के प्रयास और अत्याचार और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए अदालत से निर्देश देने की मांग की.
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