जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अब प्रशासन के खिलाफ मोर्चाबंदी का फैसला किया है. कई महीनों तक हाउस अरेस्ट में रहे अब्दुल्ला अब पार्टी नेताओं की सिलसिलेवार बैठकें बुला रहे हैं. पहली बैठक गुरुवार 20 अगस्त को रखी गई थी. इन बैठकों का मुख्य उद्देश्य हिरासत में मौजूद कश्मीर के नेताओं की रिहाई को लेकर चर्चा करना है.
नेताओं को जानबूझकर बैठक का न्योता
दरअसल नेशनल कॉन्फ्रेंस का बैठकों का ये दौर जम्मू-कश्मीर प्रशासन को घेरने का एक तरीका है. क्योंकि हाईकोर्ट में प्रशासन लगातार उन नेताओं की रिहाई की बात कर रहा है, जिन्हें अब तक भी घर से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है. अब अगर इन नेताओं को पार्टी बैठक में बुलाती है और वो नहीं पहुंचते हैं तो पार्टी के पास कोर्ट में पेश करने का ये बड़ा सबूत हो सकता है.
पहले दिन की बैठक खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने कहा,
“इस बैठका उद्देश्य है कि हम अपने उन लोगों को बैठक में बुलाएं जिन्हें पिछले 12 महीनों से बंद किया गया है. सरकार दावा कर रही है कि अब ये लोग हिरासत में नहीं हैं, इसीलिए अगर ऐसा है तो वो अपने घरों से निकलकर बैठक में आ सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि ये सिर्फ एक बार के लिए नहीं होगा. लोग आज काफी मुश्किल हालात में हैं. बिजनेस और टूरिज्म जीरो हो चुका है. यहां चारों तरफ लोग परेशान हैं.”
एक साल से नजरबंद हैं कई नेता
बता दें कि कश्मीर में पिछले साल 5 अगस्त को आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया गया था. इससे ठीक पहले तमाम बड़े और छोटे नेताओं को हाउस अरेस्ट कर लिया गया. यानी वो अपने ही घर में नजरबंद कर दिए गए. लेकिन अब पिछले कुछ महीनों में नेताओं को हिरासत से छोड़ा जा रहा है. फारूक अब्दुल्ला को भी मार्च में रिहा किया गया था. जिसके बाद उन्होंने कहा था, 'आज मेरे पास शब्द नहीं हैं. मैं आज आजाद हूं. अब, मैं दिल्ली जाऊंगा. संसद में उपस्थित रहूंगा और आप सभी से बात करूंगा.' उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को भी सरकार ने रिहा कर दिया था.
लेकिन जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती को अब तक रिहाई नहीं मिल पाई है. पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत सरकार लगातार मुफ्ती की हिरासत को बढ़ा रही है. पिछले महीने जुलाई में सरकार ने महबूबा की हिरासत पीएसए के तहत तीन महीने के लिए बढ़ा दी थी. उनके अलावा कई और नेता भी अभी हिरासत में रखे गए हैं.
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