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Jan Vishwas Bill: 180 अपराधों में अब नहीं होगी सजा, क्योंकि ये नहीं रहेंगे अपराध

जन विश्वास बिल क्यों लाया गया? कई कानूनों में दी जाने वाली जेल की सजा को खत्म करने से क्या फायदा होगा?

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भारत
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संसद के मॉनसून सत्र (Parliament Monsoon Session) में मणिपुर (Manipur) के मुद्दे पर विपक्ष की चर्चा की मांग के बीच जन विश्वास (प्रावधान में संशोधन) बिल, 2023 (Jan Vishwas (Amendment of Provisions) Bill, 2023) ध्वनि मत से पारित हो गया है.

इस बिल के तहत कई कानूनों में दी गई सजा के प्रावधानों को या तो खत्म किया गया है या फिर सजा को कम कर दिया गया है. खासकर कई कानूनों में तो जेल की सजा को हटा दिया गया है.

जानें क्या है जन विश्वास बिल? इसके तहत किन कानूनों में अपराध के प्रावधान को हटाया गया या कम किया गया है? इसके पीछे क्या कारण है? और विशेषज्ञ क्या मानते हैं?

Jan Vishwas Bill: 180 अपराधों में अब नहीं होगी सजा, क्योंकि ये नहीं रहेंगे अपराध

  1. 1. जन विश्वास बिल क्या है?

    जन विश्वास बिल का लक्ष्य है कि, 42 कानूनों के 180 अपराधों को गैर-अपराधिक घोषित करना. यानी 180 ऐसे अपराध हैं जिन्हें अब अपराध नहीं माना जाएगा और इसलिए इसमें मिलने वाली सजा को कम कर दिया जाएगा.

    ये कानून पर्यावरण, कृषि, मीडिया, उद्योग, व्यापार, प्रकाशन और कई अन्य क्षेत्र के हैं जिनमें होने वाले अपराध को या तो कम किया गया है या खत्म किया है ताकी देश में व्यापार करने में आसानी हो (ईज ऑफ डुइंग बिजनेस).

    बिल का उद्देश्य है कि कुछ अपराधों में मिलने वाली जेल की सजा को या तो पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए या फिर जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाए.

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  2. 2. क्या बदलने जा रहा है?

    • कई अपराधों में जेल के प्रावधान को खत्म किया जाएगा

    • इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898 के तहत आने वाले सभी अपराधों और जुर्माने को हटाया जाएगा

    • शिकायत निवारण व्यवस्था में बदलाव होंगे, एक या एक से अधिक अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा ताकी वे जुर्माना तय कर सकें. किसी कानून का उल्लंघन होने पर अधिकारी जांच बिठा पाएंगे, पूछताछ कर सकेंगे और सबूत के लिए समन भी जारी कर सकेंगे.

    • अपराधों के लिए लगाए जाने वाले जुर्माने को संशोधित किया जाएगा. बिल के अनुसार जुर्माने की कम से कम राशि का 10 फीसदी हर तीन साल के बाद बढ़ाया जाएगा. यानी जुर्माने की राशि हर तीन साल में बढ़ाई जाएगी.

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  3. 3. जन विश्वास बिल क्यों लाया गया?

    इस बिल का उद्देश्य है कि भारत में चल रहे व्यापार सहजता हो सके. व्यापार करने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है. नियमों का उल्लंघन होने पर भारी जुर्माना और जेल का प्रावधान है. बिल के अनुसार अगर ऐसा होगा तो देश में बिजनेस को कैसे प्रोत्साहन मिलेगा.

    फिलहाल देश में 1,536 कानून है जिनमें 70 हजार प्रावधान है. ये सभी कानून भारत में व्यापार करने वालों पर लागू होते हैं. ऐसा माना गया है कि ये नियम खासकर एमएसएमई सेक्टर के विकास में बाधा बन रहे हैं.

    ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की 2022 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि बिजनेस चलाने के लिए लागू हुए 69,233 खास नियमों में से 26,134 में जेल का प्रावधान है. रिपोर्ट में माना गया है कि इन जटिल नियम और इनमें मिलने वाली सजा की वजह से देश में व्यापार करना कठिन है.

    रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि औसतन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जहां 150 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं - इन्हें 500 से 900 नियमों से तो अनिवार्य रूप से जूझना होता है और इसमें इन्हें 12 से 18 लाख रुपयों का खर्च आ रहा है. हर पांच में से 2 नियमों में जेल की सजा का प्रावधान है.

    बिल के अनुसार, जन विश्वास बिल का मुख्य उद्देश्य है कि व्यवस्था में जो उलझनें हैं उन्हें हटाया जाए और पुराने नियम कायदों को बदला जाए. बिल में कहा गया है कि, "सरकार देश के लोगों और विभिन्न संस्थानों पर भरोसा करें, यही लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला है. पुराने नियमों का अभी भी लागू रहना विश्वास की कमी का कारण बनता है... नियमों के पालन के बोझ को कम करने से व्यवसाय प्रक्रिया को गति मिलती है और लोगों के जीवनयापन में सुधार होता है."

    जब बिल को संसद में प्रस्तावित किया गया था तब कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था:

    "हमें लोगों पर भरोसा करना ही होगा. छोटी-मोटी भूल या गलतियों के लिए उन्हें सजा देना ठीक नहीं है. छोटे मोटे अपराधों के लिए जुर्माना लगाकर छोड़ देना ही ठीक है."

    इस बिल के लागू होने के बाद, अदालतों का बोझ भी कम होगा. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, जुलाई 2023 तक, कुल 4.4 करोड़ लंबित मामलों में से 3.3 करोड़ आपराधिक मामले हैं.

    कुल मिलाकर इस बिल का लब्बोलुआब नियमों में कमी लाना है ताकि लोगों का डर कम हो. क्योंकि छोटे-मोटे अपराधों के लिए कुछ महीनों की जेल तक हो जाती है. इससे होगा ये कि, व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और व्यवसाय करने और जीवनयापन में आसानी होगी. इस प्रकार 'विश्वास-आधारित शासन' को बढ़ावा मिलेगा.

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  4. 4. किन कानून में होगा बदलाव, हटेगा जेल की सजा का प्रावधान?

    जन विश्वास बिल के तहत 42 कानूनों में बदलाव किए जाएंगे, हमने यहां कुछ प्रमुख कानूनों में होने वाले बदलावों को बताया है:

    भारतीय वन (Forest) अधिनियम, 1927

    फिलहाल: वन में अतिक्रमण करना, मवेशियों को वन के अंदर लाना, लकड़ी काटना या आरक्षित वन में किसी पेड़ को काटना या क्षति पहुंचाना एक दंडनीय अपराध है जिसमें 6 महीने तक की जेल या 500 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

    बदलाव: जेल की सजा का प्रावधान हटा दिया गया है. केवल 500 रुपये का जुर्माना ही देना होगा. सरकार द्वारा आरक्षित पेड़ के पास पेड़ जलाने पर जेल नहीं होगी बाकी अपराध करने पर भी जेल नहीं होगी.

    हालांकि, इस बिल को लेकर संसदीय समिति ने सुझाव देकर कहा था कि जुर्माना 500 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये किया जाना चाहिए.

    वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981

    फिलहाल: अगर वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र में कोई इंडस्ट्री या इससे जुड़े काम करता है तो उसपर भारी जुर्माने के साथ साथ 6 साल की जेल का भी प्रावधान है.

    बदलाव: जेल की सजा नहीं दी जाएगी केवल जुर्माना ही वसूला जाएगा. इसमें ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये का जुर्माना ही वसूला जा सकता है.

    सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000

    फिलहाल: धारा 66ए लागू है. ये धारा कहती है कि जो संचार सेवा (कम्युनिकेशन सर्विस) के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश या गलत जानकारी भेजता है तो दो साल की जेल और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. अगर कोई लीगल कॉन्ट्रेकिट के तहत व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करता है तो 3 साल की जेल और 5 लाख रुपये का जुर्माना वसूला जाता है.

    बदलाव: धारा 66ए के तहत कई नियम है, जिसे हटाने का प्रस्ताव है. इसमें जेल की सजा को खत्म किया गया है और जुर्माना 5 लाख रुपये निर्धारित किया गया है. अगर कोई लीगल कॉन्ट्रेकिट के तहत व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करता है तो केवल 25 लाख रुपये का जुर्माना भरना होगा, कोई जेल नहीं होगी.

    पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

    फिलहाल: अनजाने में अगर कोई उल्लंघन करता है, जैसे प्रदूषकों का अनजाने में गलत जगह पर डिसचार्ज करना जो अधिनियम की धारा 7 और 9 के तहत आता है - तो 5 साल की जेल और एक लाख का जुर्माना लगाया जाता है.

    बदलाव: जेल के प्रावधान को हटाने का प्रस्ताव है और 1 से 15 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है.

    कॉपीराइट अधिनियम, 1957

    फिलहाल: किसी प्राधिकारी या अधिकारी को धोखा देने या प्रभावित करने के लिए गलत बयान देने पर ज्यादा से ज्यादा एक साल जेल की सजा है और जुर्माना है.

    बदलाव: ना ही जेल की सजा है और न ही कोई जुर्माना

    मोटर वाहन अधिनियम, 1988

    फिलहाल: धारा 192ए के तहत, परमिट के बिना मोटर वाहन का उपयोग करने वाले व्यक्ति को छह महीने तक की जेल और 10,000 रुपये का जुर्माना लगता है.

    बदलाव: 6 महीने तक की जेल की सजा तो रहेगी लेकिन यहां जुर्माना हटा दिया गया है.

    रेलवे अधिनियम, 1989

    फिलहाल: ट्रेन में या रेलवे स्टेशन पर बिना परमिट के भीख मांगते या सामान बेचते हुए कोई पकड़ा गया तो एक साल की जेल और 2 हजार रुपये का जुर्माना लगता है.

    बदलाव: भिखारियों के लिए सजा के प्रावधान को हटाया गया है.

    पेटेंट अधिनियम, 1952

    फिलहाल: इस अपराध के लिए 1 लाख रुपये तक का जुर्माना है.

    बदलाव: यदि कोई व्यक्ति अपने द्वारा बेची गई वस्तु पर गलत तरीके से पेटेंट का दावा करता है, तो उसे 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा, और केस चलने तक प्रति दिन 1,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना देना होगा.

    कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937

    फिलहाल: किसी वस्तु को ग्रेड चिन्ह के साथ अनाधिकृत रूप से चिह्नित करने और उसकी बिक्री के लिए जेल की सजा का प्रावधान है.

    बदलाव: जेल की सजा हटा दी जाएगी, इसके बजाय, इसमें 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है.

    खाद्य सुरक्षा (Food Safety) और मानक अधिनियम, 2006

    फिलहाल: असुरक्षित भोजन यानी अनसेफ फूड की बिक्री के लिए 6 महीने तक की जेल की सजा होती है और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाता है. साथ ही भ्रामक या गलत जानकारी देने पर किसी व्यक्ति को तीन महीने तक की जेल हो सकती है, साथ ही दो लाख तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

    बदलाव: अनसेफ फूड की बिक्री के लिए 3 महीने से ज्यादा की जेल की सजा नहीं हो सकती और 3 लाख रुपये का जुर्माना है. भ्रामक या गलत जानकारी देने पर किसी व्यक्ति को केवल 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा.

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  5. 5. जन विश्वास बिल से जुड़ी क्या चिंताएं हैं? 

    • कई विशेषज्ञों की माने तो जेल की सजा के प्रावधानों को जुर्माने के प्रावधानों से बदलना एक अच्छा प्रयास नहीं है.  

    • द हिंदू में लिखे एक आर्टिकल में पंजाब की राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति, जीएस बाजपेयी और और सहायक प्रोफेसर अंकित कौशिक ने तर्क दिया कि, ये एक अच्छा कदम है. जिन कानून में हद से ज्यादा सजा के प्रावधान है वो कम होने चाहिए. लेकिन ये जमीनी स्तर पर भी ठीक से स्थापित होने चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि फिलहाल जो कदम उठाया है ये अभी बी बहुत छोटा कदम है.

    • लीगल पॉलिसी पर काम करने वाले थिंक टैंक विधि सेंटर ने कहा कि, “ये बात सही है कि पर्यावरण से जुड़े सभी अपराधों के लिए कारावास सर्वोत्तम सजा नहीं हो सकती है. लेकिन कारावास के प्रावधान को पूरी तरह से हटाने से क्या अपराधों में कमी आएगी, ये भी एक सवाल है. खास कर उन कंपनियों द्वारा किए गए अपराधों में जिन्हें ऐसे अपराध कर ज्यादा मुनाफा होता है."

    • पर्यावरण और वायु प्रदूषण से जुड़े कानून में जो जुर्माना तय करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया गया है, इस पर पीआरएस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने चिंता जाहिर की है. पीआरएस का कहना है कि अब तक इस कानून के तहत शिकायत करने वाला सीधे अदालत का रुख करता है या तो 60 दिनों में तय करता है कि उसे अदालत में जाना है या नहीं. लेकिन नए नियम के तहत इसके लिए कुछ अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा जो जुर्माना तो तय करेंगे ही लेकिन ये भी तय करेंगे कि मामला अदालत में जा सकता है या नहीं.

    • इसमें एक अन्य चिंता ये है कि ओआरएफ की रिपोर्ट में बताया गया कि, इस बिल में 42 कानूनों में बदलाव किया जा रहा है ताकी ईज ऑफ डुइंग बिजनेस को बढ़ावा मिले. लेकिन 42 कानूनों में से केवल 23 कानून ही ऐसे हैं जिनमें बदलाव कर ईज ऑफ डुइंग बिजनेस को बढ़ावा दिया जा सकता है. बाकी कानून तो जीवनयापन को आसान बनाने के लिए हैं.

    बता दें कि, ये बिल फिलहाल लोकसभा से पारित हुआ है, इसका राज्यसभा से पारित होना जरूरी है और फिर यह राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाएगा, इसके बाद ही ये कानून लागू होगा.

    (इनपुट: द हिंदू)

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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जन विश्वास बिल क्या है?

जन विश्वास बिल का लक्ष्य है कि, 42 कानूनों के 180 अपराधों को गैर-अपराधिक घोषित करना. यानी 180 ऐसे अपराध हैं जिन्हें अब अपराध नहीं माना जाएगा और इसलिए इसमें मिलने वाली सजा को कम कर दिया जाएगा.

ये कानून पर्यावरण, कृषि, मीडिया, उद्योग, व्यापार, प्रकाशन और कई अन्य क्षेत्र के हैं जिनमें होने वाले अपराध को या तो कम किया गया है या खत्म किया है ताकी देश में व्यापार करने में आसानी हो (ईज ऑफ डुइंग बिजनेस).

बिल का उद्देश्य है कि कुछ अपराधों में मिलने वाली जेल की सजा को या तो पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए या फिर जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाए.

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क्या बदलने जा रहा है?

  • कई अपराधों में जेल के प्रावधान को खत्म किया जाएगा

  • इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898 के तहत आने वाले सभी अपराधों और जुर्माने को हटाया जाएगा

  • शिकायत निवारण व्यवस्था में बदलाव होंगे, एक या एक से अधिक अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा ताकी वे जुर्माना तय कर सकें. किसी कानून का उल्लंघन होने पर अधिकारी जांच बिठा पाएंगे, पूछताछ कर सकेंगे और सबूत के लिए समन भी जारी कर सकेंगे.

  • अपराधों के लिए लगाए जाने वाले जुर्माने को संशोधित किया जाएगा. बिल के अनुसार जुर्माने की कम से कम राशि का 10 फीसदी हर तीन साल के बाद बढ़ाया जाएगा. यानी जुर्माने की राशि हर तीन साल में बढ़ाई जाएगी.

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जन विश्वास बिल क्यों लाया गया?

इस बिल का उद्देश्य है कि भारत में चल रहे व्यापार सहजता हो सके. व्यापार करने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है. नियमों का उल्लंघन होने पर भारी जुर्माना और जेल का प्रावधान है. बिल के अनुसार अगर ऐसा होगा तो देश में बिजनेस को कैसे प्रोत्साहन मिलेगा.

फिलहाल देश में 1,536 कानून है जिनमें 70 हजार प्रावधान है. ये सभी कानून भारत में व्यापार करने वालों पर लागू होते हैं. ऐसा माना गया है कि ये नियम खासकर एमएसएमई सेक्टर के विकास में बाधा बन रहे हैं.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की 2022 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि बिजनेस चलाने के लिए लागू हुए 69,233 खास नियमों में से 26,134 में जेल का प्रावधान है. रिपोर्ट में माना गया है कि इन जटिल नियम और इनमें मिलने वाली सजा की वजह से देश में व्यापार करना कठिन है.

रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि औसतन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जहां 150 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं - इन्हें 500 से 900 नियमों से तो अनिवार्य रूप से जूझना होता है और इसमें इन्हें 12 से 18 लाख रुपयों का खर्च आ रहा है. हर पांच में से 2 नियमों में जेल की सजा का प्रावधान है.

बिल के अनुसार, जन विश्वास बिल का मुख्य उद्देश्य है कि व्यवस्था में जो उलझनें हैं उन्हें हटाया जाए और पुराने नियम कायदों को बदला जाए. बिल में कहा गया है कि, "सरकार देश के लोगों और विभिन्न संस्थानों पर भरोसा करें, यही लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला है. पुराने नियमों का अभी भी लागू रहना विश्वास की कमी का कारण बनता है... नियमों के पालन के बोझ को कम करने से व्यवसाय प्रक्रिया को गति मिलती है और लोगों के जीवनयापन में सुधार होता है."

जब बिल को संसद में प्रस्तावित किया गया था तब कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था:

"हमें लोगों पर भरोसा करना ही होगा. छोटी-मोटी भूल या गलतियों के लिए उन्हें सजा देना ठीक नहीं है. छोटे मोटे अपराधों के लिए जुर्माना लगाकर छोड़ देना ही ठीक है."

इस बिल के लागू होने के बाद, अदालतों का बोझ भी कम होगा. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, जुलाई 2023 तक, कुल 4.4 करोड़ लंबित मामलों में से 3.3 करोड़ आपराधिक मामले हैं.

कुल मिलाकर इस बिल का लब्बोलुआब नियमों में कमी लाना है ताकि लोगों का डर कम हो. क्योंकि छोटे-मोटे अपराधों के लिए कुछ महीनों की जेल तक हो जाती है. इससे होगा ये कि, व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और व्यवसाय करने और जीवनयापन में आसानी होगी. इस प्रकार 'विश्वास-आधारित शासन' को बढ़ावा मिलेगा.

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किन कानून में होगा बदलाव, हटेगा जेल की सजा का प्रावधान?

जन विश्वास बिल के तहत 42 कानूनों में बदलाव किए जाएंगे, हमने यहां कुछ प्रमुख कानूनों में होने वाले बदलावों को बताया है:

भारतीय वन (Forest) अधिनियम, 1927

फिलहाल: वन में अतिक्रमण करना, मवेशियों को वन के अंदर लाना, लकड़ी काटना या आरक्षित वन में किसी पेड़ को काटना या क्षति पहुंचाना एक दंडनीय अपराध है जिसमें 6 महीने तक की जेल या 500 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

बदलाव: जेल की सजा का प्रावधान हटा दिया गया है. केवल 500 रुपये का जुर्माना ही देना होगा. सरकार द्वारा आरक्षित पेड़ के पास पेड़ जलाने पर जेल नहीं होगी बाकी अपराध करने पर भी जेल नहीं होगी.

हालांकि, इस बिल को लेकर संसदीय समिति ने सुझाव देकर कहा था कि जुर्माना 500 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये किया जाना चाहिए.

वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981

फिलहाल: अगर वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र में कोई इंडस्ट्री या इससे जुड़े काम करता है तो उसपर भारी जुर्माने के साथ साथ 6 साल की जेल का भी प्रावधान है.

बदलाव: जेल की सजा नहीं दी जाएगी केवल जुर्माना ही वसूला जाएगा. इसमें ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये का जुर्माना ही वसूला जा सकता है.

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000

फिलहाल: धारा 66ए लागू है. ये धारा कहती है कि जो संचार सेवा (कम्युनिकेशन सर्विस) के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश या गलत जानकारी भेजता है तो दो साल की जेल और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. अगर कोई लीगल कॉन्ट्रेकिट के तहत व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करता है तो 3 साल की जेल और 5 लाख रुपये का जुर्माना वसूला जाता है.

बदलाव: धारा 66ए के तहत कई नियम है, जिसे हटाने का प्रस्ताव है. इसमें जेल की सजा को खत्म किया गया है और जुर्माना 5 लाख रुपये निर्धारित किया गया है. अगर कोई लीगल कॉन्ट्रेकिट के तहत व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करता है तो केवल 25 लाख रुपये का जुर्माना भरना होगा, कोई जेल नहीं होगी.

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

फिलहाल: अनजाने में अगर कोई उल्लंघन करता है, जैसे प्रदूषकों का अनजाने में गलत जगह पर डिसचार्ज करना जो अधिनियम की धारा 7 और 9 के तहत आता है - तो 5 साल की जेल और एक लाख का जुर्माना लगाया जाता है.

बदलाव: जेल के प्रावधान को हटाने का प्रस्ताव है और 1 से 15 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है.

कॉपीराइट अधिनियम, 1957

फिलहाल: किसी प्राधिकारी या अधिकारी को धोखा देने या प्रभावित करने के लिए गलत बयान देने पर ज्यादा से ज्यादा एक साल जेल की सजा है और जुर्माना है.

बदलाव: ना ही जेल की सजा है और न ही कोई जुर्माना

मोटर वाहन अधिनियम, 1988

फिलहाल: धारा 192ए के तहत, परमिट के बिना मोटर वाहन का उपयोग करने वाले व्यक्ति को छह महीने तक की जेल और 10,000 रुपये का जुर्माना लगता है.

बदलाव: 6 महीने तक की जेल की सजा तो रहेगी लेकिन यहां जुर्माना हटा दिया गया है.

रेलवे अधिनियम, 1989

फिलहाल: ट्रेन में या रेलवे स्टेशन पर बिना परमिट के भीख मांगते या सामान बेचते हुए कोई पकड़ा गया तो एक साल की जेल और 2 हजार रुपये का जुर्माना लगता है.

बदलाव: भिखारियों के लिए सजा के प्रावधान को हटाया गया है.

पेटेंट अधिनियम, 1952

फिलहाल: इस अपराध के लिए 1 लाख रुपये तक का जुर्माना है.

बदलाव: यदि कोई व्यक्ति अपने द्वारा बेची गई वस्तु पर गलत तरीके से पेटेंट का दावा करता है, तो उसे 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा, और केस चलने तक प्रति दिन 1,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना देना होगा.

कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937

फिलहाल: किसी वस्तु को ग्रेड चिन्ह के साथ अनाधिकृत रूप से चिह्नित करने और उसकी बिक्री के लिए जेल की सजा का प्रावधान है.

बदलाव: जेल की सजा हटा दी जाएगी, इसके बजाय, इसमें 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है.

खाद्य सुरक्षा (Food Safety) और मानक अधिनियम, 2006

फिलहाल: असुरक्षित भोजन यानी अनसेफ फूड की बिक्री के लिए 6 महीने तक की जेल की सजा होती है और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाता है. साथ ही भ्रामक या गलत जानकारी देने पर किसी व्यक्ति को तीन महीने तक की जेल हो सकती है, साथ ही दो लाख तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

बदलाव: अनसेफ फूड की बिक्री के लिए 3 महीने से ज्यादा की जेल की सजा नहीं हो सकती और 3 लाख रुपये का जुर्माना है. भ्रामक या गलत जानकारी देने पर किसी व्यक्ति को केवल 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा.

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  • कई विशेषज्ञों की माने तो जेल की सजा के प्रावधानों को जुर्माने के प्रावधानों से बदलना एक अच्छा प्रयास नहीं है.  

  • द हिंदू में लिखे एक आर्टिकल में पंजाब की राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति, जीएस बाजपेयी और और सहायक प्रोफेसर अंकित कौशिक ने तर्क दिया कि, ये एक अच्छा कदम है. जिन कानून में हद से ज्यादा सजा के प्रावधान है वो कम होने चाहिए. लेकिन ये जमीनी स्तर पर भी ठीक से स्थापित होने चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि फिलहाल जो कदम उठाया है ये अभी बी बहुत छोटा कदम है.

  • लीगल पॉलिसी पर काम करने वाले थिंक टैंक विधि सेंटर ने कहा कि, “ये बात सही है कि पर्यावरण से जुड़े सभी अपराधों के लिए कारावास सर्वोत्तम सजा नहीं हो सकती है. लेकिन कारावास के प्रावधान को पूरी तरह से हटाने से क्या अपराधों में कमी आएगी, ये भी एक सवाल है. खास कर उन कंपनियों द्वारा किए गए अपराधों में जिन्हें ऐसे अपराध कर ज्यादा मुनाफा होता है."

  • पर्यावरण और वायु प्रदूषण से जुड़े कानून में जो जुर्माना तय करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया गया है, इस पर पीआरएस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने चिंता जाहिर की है. पीआरएस का कहना है कि अब तक इस कानून के तहत शिकायत करने वाला सीधे अदालत का रुख करता है या तो 60 दिनों में तय करता है कि उसे अदालत में जाना है या नहीं. लेकिन नए नियम के तहत इसके लिए कुछ अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा जो जुर्माना तो तय करेंगे ही लेकिन ये भी तय करेंगे कि मामला अदालत में जा सकता है या नहीं.

  • इसमें एक अन्य चिंता ये है कि ओआरएफ की रिपोर्ट में बताया गया कि, इस बिल में 42 कानूनों में बदलाव किया जा रहा है ताकी ईज ऑफ डुइंग बिजनेस को बढ़ावा मिले. लेकिन 42 कानूनों में से केवल 23 कानून ही ऐसे हैं जिनमें बदलाव कर ईज ऑफ डुइंग बिजनेस को बढ़ावा दिया जा सकता है. बाकी कानून तो जीवनयापन को आसान बनाने के लिए हैं.

बता दें कि, ये बिल फिलहाल लोकसभा से पारित हुआ है, इसका राज्यसभा से पारित होना जरूरी है और फिर यह राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाएगा, इसके बाद ही ये कानून लागू होगा.

(इनपुट: द हिंदू)

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