भारत कुछ साल में बुलेट ट्रेन की राह देख रहा है. अहमदाबाद से मुंबई तक बनने वाली इस बुलेट ट्रेन को बनाने में देश की मदद कर रहा है जापान. लेकिन, बीते कुछ दिनों में जापान जिस घोटाले से हिल गया है, उसकी कुछ धमक भारत तक पहुंचने की पूरी आशंका है. बड़ा सवाल ये है कि 2022 तक जिस बुलेट ट्रेन का सपना देश देख रहा है, कहीं उस पर इस बड़े घोटाले का असर तो नहीं पड़ेगा.
जापान में ऐसा कौन सा घोटाला हुआ है ?
जापान की एक कंपनी है- कोबी स्टील कॉर्पोरेशन. 112 साल पुरानी. कोबी, स्टील-एल्युमिनियम प्रोडक्शन की दुनिया का बड़ा नाम है. यही कोबी इन दिनों घोटाले की आग में घिरा हुआ है. दरअसल, जापान में शिंकानसेन यानी बुलेट ट्रेन चलाने वाली दो कंपनियों ने कोबी पर घटिया कल-पुर्जे सप्लाई कराने का आरोप लगाया है. ब्लूमबर्ग के मुताबिक, टोक्यो से ओसाका के बीच बुलेट ट्रेन चलाने वाली सेंट्रल जापान रेलवे कॉर्पोरेशन ने कहा कि पहियों को ट्रेन के डिब्बों से जोड़ने वाले एल्युमिनियम कलपुर्जे, क्वालिटी टेस्ट में खरे नहीं उतरे हैं. जिन पुर्जों को टेस्ट किया गया, उनमें से 310 पुर्जे खराब क्वालिटी के निकले. इन पुर्जों को कोबी स्टील ने ही सप्लाई किया था. ओसाका से फुकुओका तक शिंकानसेन चलाने वाली वेस्ट जापान रेलवे कंपनी ने भी घटिया स्तर के कल पुर्जों की शिकायत की है.
कोबी स्टील कंपनी ने अपनी गलती मान ली है. कंपनी ने माना कि उसने कलपुर्जों की मजबूती और टिकाऊपन के बारे में झूठे आंकड़े पेश किये थे. ऐसा एल्युमिनियम और कॉपर के कई पार्ट्स के बारे में कहा गया जो बुलेट ट्रेन से लेकर एयरक्राफ्ट, कारों और यहां तक कि रॉकेट में भी इस्तेमाल होते हैं.
कोबी स्टील के सीईओ ने बाकायदा आगे आकर इस मामले में माफी मांगी है. सीईओ हिरोया कावासाकी ने कहा, "कोबी ने 200 कंपनियों को खराब क्वालिटी वाले कलपुर्जे सप्लाई किये हैं. इनमें से करीब 100 कंपनियों की सप्लाई की जांच पूरी हो चुकी है. करीब 15 दिनों में सुरक्षा जांच के नतीजों को जारी किया जाएगा. ग्राहक कंपनियों समेत तमाम लोगों को परेशानी में डालने के लिए मैं माफी मांगता हूं."
खराब क्वालिटी के एल्युमिनियम पार्ट्स की दिक्कत, कोबी के सभी 4 कारखानों के साथ पाई गई. कोबी स्टील के घटिया कलपुर्जों की सप्लाई पर अब टोयोटा, होंडा और कावासाकी जैसी कंपनियों की भी कड़ी नजर है. दो दिन में कंपनी के शेयर 36 फीसदी तक गिर गए.
भारत के सपने पर पड़ेगा असर?
बीते दिनों जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत आए. भारत आए तो पहले सीधे अहमदाबाद पहुंचे. प्रधानमंत्री मोदी के साथ मिलकर बुलेट ट्रेन का शिलान्यास कर दिया गया. बुलेट प्रोजेक्ट, मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में काफी ऊपर आता है. सरकार चाहती है कि साल 2022 तक बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई तक की दूरी सिमटा दे. इसके लिए जापान भारीभरकम लोन दे रहा है. बुलेट ट्रेन टेक्नोलॉजी भी जापान से आ रही है. लेकिन, जिस तरह से ये घोटाला सामने आया है, उसे देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में कुछ देरी हो सकती है.
रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य वीके अग्निहोत्री ने क्विंट हिंदी को बताया,
मैंने 60 के दशक में भी जापान के रेल इंजीनियरिंग विभाग के साथ कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम किया है. उनके क्वालिटी परखने का तरीका बेहद खास है. खामियां और कमियां सहने की सीमा न के बराबर होती है. ऐसे में इस तरह का घोटाला कुछ हैरान तो करता है. पर इसकी वजह से सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी, इसकी संभावना कम है.
वीके अग्निहोत्री बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में देरी के सवाल पर कहते हैं कि भारत के बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए रेल कोच आने में अभी काफी समय है. ऐसे में हो सकता है कि तब तक जापान का मामला सुलझ जाए और देरी न हो.
इस मामले में सबसे दिलचस्प क्या है?
इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प है, कोबी स्टील कंपनी की मई 2017 में जारी 'कोर वैल्यू रिपोर्ट' और वो 6 कसम जो कोबी में काम करने वालों के लिए अहम हैं. मई में नैतिकता की दुहाई दी जाती है और अक्तूबर में बड़ा घोटाला सामने आ जाता है. कोबी की वेबसाइट पर जो 6 शपथ डाली गई हैं, उनमें सबसे पहली है.
नैतिकता और पेशेवर रवैये पर जोर
- हम न सिर्फ कानून और कॉर्पोरेट नियमों का पालन करते हैं बल्कि अपनी कंपनी के काम को भी साफ-सुथरे तरीके से अंजाम देते हैं. जिसमें अव्वल दर्जे की नैतिकता और पेशेवर रवैया शामिल है.
भारत और जापान के रिश्ते बुलेट ट्रेन से पहले भी मजबूत थे, आगे भी रहने की उम्मीद है. बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट अगर भारत के लिए बेहद अहमियत रखता है तो, जापान के लिए भी कम अहम नहीं. ऐसे में लगता तो नहीं कि जापान प्रोजेक्ट में किसी तरह की देरी होने देगा.
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