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रौशन हो रहा देश, स्याह हो रही झारखंड के इन आदिवासियों की जिंदगी

झरिया, कतरास जैसे इलाकों में भयावह आग का ताण्डव रहा है, लेकिन निरसा इलाके में पहली बार आग इस तरह धधक उठी है.

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सुबह का समय था. घड़ी की सुई 6 पार कर रही थी कि एकाएक धरती डोलने लगी. केरी मुंडा कोयले की बोझाई करने के लिए निकली थी. वह दौड़कर धौड़ा में घुसी. अपने दूधमुंहे बच्चे को गोद में लेकर अन्य सदस्यों के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग की ओर भागने लगी. बाहर आग की लपटें उठ रही थीं. जैसे कोई ज्वालामुखी फट गया हो. तापमान भी बढ़ा हुआ था. भीषण गर्मी में वहां एक पल ठहरना मुश्किल था.

केरी को कुछ-कुछ मालूम था. कुछ समय पहले झरिया में इसी तरह आग की लपटें उठीं और वहां खड़े बाप-बेटे हमेशा के लिए जमींदोज हो गए. सो वह भागती जा रही थी.

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दरअसल यह घटना झारखंड (Jharkhand) के धनबाद जिले के निरसा क्षेत्र में हुई है, जहां भारत कोकिंग कोल लिमिटेड BCCL की बासंतीमाता-दहीबाड़ी कोलियरी में जमीन के नीचे सालों से सुलग रही आग जमीन के सर्फेस में धधक उठी है. आग की लपटों के कारण बचाव और राहत कार्य चलाना भी मुश्किल है.

लोगबाग घर छोड़कर कोलियरी के सामने डेरा डाले हैं. गाय, बकरी, मुर्गी.. सबकुछ आजाद कर दिए गए. कब ये आग पूरे मुंडा धौड़ा को लील ले, कौन जाने?

वहां रहने वाली तिलकी मांझी कहती हैं, "बासंती माता (देवी दुर्गा का एक रूप) हमेशा हमें बचाती रही हैं. शायद इस बार भी कोई रास्ता निकाल दें. हमार मालकिन तो उहे है बाबू!"

क्या है पूरा मामला?

दरअसल BCCL के झरिया, कतरास जैसे इलाकों में भयावह आग का तांडव है, लेकिन निरसा इलाके में पहली बार आग इस तरह धधक उठी है.

यह इलाका लोक उपक्रम कोल इंडिया की सब्सिडरी BCCL के चांच-विक्टोरिया एरिया में पड़ता है. तकरीबन 32 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके में पहले बेंगल कोल, वीरभूम कोल, विक्टोरिया आदि के नाम पर कोयले की खदानें चलती थीं. निजी खान मालिकों के स्लॉटर माइनिंग के कारण भूधसान और आग का खतरा उत्पन्न हो गया है.

इस इलाके में तीन मिलियन टन से अधिक कोयला आग की चपेट में है. सन 1972 को कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के समय यह इलाका BCCL के अधीन आया. पब्लिक सेक्टर बनने के बाद दहीबाड़ी के इस पैच पर भूमिगत खदान चलाया गया. सुशील इंक्लाइन नाम पर यह माइंस चल रही थी.

साल 2013 में तीन लोगों की हुई थी मौत

वर्ष 2013 में एक हादसा हुआ. कोयले की चाल से दबकर मैनेजर अरूप चटर्जी समेत तीन कर्मियों की मौत हुई थी. बाद में खान सुरक्षा की सबसे बड़ी एजेंसी खान सुरक्षा महा निदेशालय DGMS ने इस माइंस को बन्द कर दिया था. यह कोलियरी झारखंड-बंगाल सीमा पर NH पर स्थित है.

फिलहाल मिनी रत्न कम्पनी BCCL पर कोल प्रोडक्शन का बहुत दबाव है. कोल इंडिया सालाना 600 मिलियन टन कोयला उत्पादित करता है. हालांकि पिछले साल ये आंकड़ा पूरा नहीं हो सका था.

कंपनी के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने कहा,

साल 2024 तक सालाना एक हजार टन कोल प्रोडक्शन करना है. इसके लिए जरूरी है कोल इंडिया BCCL समेत अन्य कम्पनियों को प्रोडक्शन टार्गेट दें.

भारत के नक्शे में BCCL का इसलिए भी महत्व है क्योंकि एकमात्र यही कंपपनी देश को कोकिंग कोयला देती है. फिर भी कोकिंग कोल की जरूरत पूरा करने के लिए कोयले का इम्पोर्ट करना पड़ता है.

इधर BCCL की स्थिति चरमरा गई है. कंपनी का खुद का कोयला उत्पादन घट गया है. 37 मिलियन टन सालाना कोल प्रोडक्शन करनेवाली कंपनी अब 25 मिलियन को भी टच नहीं कर पा रही है. इसलिए बंद पड़े पैच और ब्लॉक को निजी हाथों में देकर आउटसोर्स कर रही है कंपनी. इसी क्रम में बासंतीमाता-दहीबाड़ी के सी-पैच को BCCL ने निजी एजेंसी को सौंपा है. सालाना 0.25 मिलियन टन कोयला इस पैच से मिलने का इकरार हुआ है. सी-पैच पर ही काम हो रहा था कि ट्रेंच काटते समय सालों से बसे मुंडा धौड़ा के संपर्क में जमीन के अंदर छिपी आग आ गई और धधक उठी.

BCCL के CMD पीएम प्रसाद ने बताया कि आग और भूधसान कंपनी के लिए बड़ी समस्या है. फिर भी सुरक्षा मानकों पर ध्यान दिया जाता है. पर्यावरण के संरक्षण के लिए 15,570 वृक्ष लगाए गए हैं, जबकि 16, 500 पौधे वितरित भी किए गए हैं.

चांच-विक्टोरिया एरिया मैनेजमेंट का कहना है कि प्रभावित लोग अनधिकृत तरीके से वहां रह रहे हैं. उन्हें सेफ जोन में बसाया जाएगा.

BCCL में झरिया पुनर्वास के लिए एक प्राधिकार भी कार्यरत है. रैयतों को मुआवजा और दो एकड़ जमीन पर नियोजन भी देने का प्रावधान है. हालांकि अनधिकृत लोगों को सिर्फ आवास मुहैया कराया जाना है. वहीं सी-पैच इलाके से लोगों को बिना हटाए उत्पादन कैसे शुरू कर दिया गया, इस पर प्रबंधन मौन है.

183 परिवार पर असर

दरअसल बासंतीमाता-दहीबाड़ी सी-पैच में कुल 183 परिवार प्रभावित हो रहे हैं. इनमें मुंडा धौड़ा के बगल में ही आग धधक रही है. मुंडा और मांझी के 11 परिवार यहां कच्चा शेड बनाकर रहते हैं. बेहरा मुंडा ने कहा कि वे इसी राज्य के आदिवासी हैं. दादा-परदादा ने अपनी पुश्तैनी जमीन का क्या किया, उन्हें नहीं मालूम. तकरीबन छह दशक से वे इसी जगह रहकर गुजर बसर कर रहे हैं.

माको ने बताया कि वे नौकरी और पैसा तो नहीं मांग रहे. वह तो सिर्फ एक छोटा सा ठिकाना मांग रही है, जहां सर पर एक छत हो. सुबह से रात तक मेहनत-मजदूरी में औरत-मर्द बाहर ही रहते हैं. सिर्फ रात को सोने के लिए दड़बे में लौटते हैं. केरी की गोद में दुधमुंहा बच्चा है. वह सिर्फ टुकुर-टुकुर ताक रहा है. असहाय मां की आंखों से टपक रहा है आंसू. आग, गर्मी, धूल और धुंआ से इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है. जहरीली धुंए से ये गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं.

जिस ट्राइबल के नाम पर झारखंड बना वे ही आज बेबस और लाचार हैं. बेघर हैं. अपने ही राज्य में उन्हें ठोर की तलाश करनी पड़ रही है. देश में बिजली का अस्सी प्रतिशत कोयले से उत्पादित होता है. इसी बिजली से महानगर जगमग है. मुल्क रौशन है, लेकिन मुंडा धौड़ा में अंधेरा पसरा है. अपनी ही धरती पर कोयला बोझाई करते हुए जो देश को रौशन कर रहे हैं, उनकी जिंदगी और भविष्य स्याह दिख रही है.

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