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"7 साल से ₹10 हजार महीना", झारखंड के सहायक पुलिसकर्मी क्यों असहाय?

Jharkhand के सहायक पुलिसकर्मियों को नक्सलवाद से सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली है लेकिन सरकार ने इनसे किए अपने वादे पूरे नहीं किए हैं.

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घर की बड़ी बेटी हूं न, मुझे 2-2 परिवार देखने हैं. आज के वक्त में 10 हजार में क्या होता है. अपना इंतजाम नहीं हो पाता है तो बाल-बच्चों की परवरिश कैसे करें हम.”

यह कहना है रीमा कुमारी का जो झारखंड में सहायक पुलिसकर्मी (Jharkhand Contractual Assistant Police) हैं. रीमा उन 2500 सहायक पुलिसकर्मियों में से एक हैं जिनकी भर्ती 2017 में हुई थी और पिछले 7 सालों से इनका मानदेय एक रूपया नहीं बढ़ा है. झारखंड सहायक पुलिसकर्मी स्थाई सेवा से लेकर 10 हजार रुपये के मानदेय में बढ़ोत्तरी जैसी मांगों के साथ एक बार फिर रांची के मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे हैं.

क्विंट हिंदी ने ऐसे ही कुछ सहायक पुलिसकर्मियों से बात की है और समझने की कोशिश की है कि इनकी जिंदगी कितनी मुश्किलों से गुजर रही है. कैसे इन्हें सूबे की नक्सवादी समस्या से निजात पाने के लिए रिक्रूट किया गया था और नक्सली क्षेत्र से आने वाले इन जवानों को मुख्यधारा में जोड़ने की पहल कैसे कमजोर पड़ती जा रही है.

सबसे पहले आपको बताते हैं कि झारखंड सहायक पुलिसकर्मियों के बहाली किस उद्देश्य से हुई थी.

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नक्सलवाद से सुरक्षा की मिली जिम्मेदारी लेकिन सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए

साल 2017 में झारखंड के 12 नक्सल प्रभावित जिलों में 2500 सहायक पुलिसकर्मियों की बहाली 10 हजार के वेतनमान/मानदेय पर हुई थी. तब सूबे में मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी.

इन 12 नक्सल प्रभावित जिलों के नौजवान मुख्यधारा छोड़ कर कहीं नक्सली न बन जायें, इसलिए उन्हें ही नक्सलियों के विरोध में खड़ा किया गया था. बहाली के समय बताया गया कि इनका मुख्य काम नक्सलियों की गतिविधि पर नजर रखना होगा और उसकी सूचना आगे जिला मुख्यालय तक पहुंचानी थी. 

तात्कालीन सीएम रघुवर दास ने तब 3 साल के संविदा यानी कॉन्ट्रैक्ट पर ज्वाइनिंग लेटर सौंपते हुए मंच से कहा था कि 3 साल के बाद जो सहायक पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी अच्छे से निभाएंगे उन्हें पुलिस में सिपाही के तौर पर स्थाई नौकरी मिल जाएगी. लेकिन 7 साल बाद भी ऐसा नहीं हुआ है. यहां तक कि 2019 और 2021 में भी सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा खत्म कर दी गयी थी. हालांकि आंदोलन के बाद सेवा फिर बहाल कर दी गयी. अब सहायक पुलिसकर्मी की संख्या कम होकर 2200 के आस-पास रह गई है.

इन 7 सालों में इन सहायक पुलिसकर्मी के मानदेय में भी एक रुपए की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. नक्सलियों की गतिविधि पर नजर रखने की जिम्मेदारी के साथ बहाली हुई लेकिन इनसे एक आम सिपाही की तरह ट्रैफिक से लेकर लॉ-ऑर्डर संभालने के काम लिए जा रहे हैं.  

अब एक बार फिर अगस्त में इनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने को है और इनके सामने भविष्य को लेकर असमंजस की स्थिति है. ये झारखंड की सरकार को छत्तीसगढ़ से सीख लेने को कह रहे हैं जहां सहायक आरक्षकों की सेवा स्थायी कर दी गई है.

"हम इतना मजबूर हो गए हैं कि 10 हजार में हमारा घर नहीं चल सकता"

रांची के मोरहाबादी मैदान में कैंप लगाकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे सहायक पुलिसकर्मी अखिलेश कुमार के लिए 10 हजार रुपए में अपना घर चलाना मुश्किल है. क्विंट हिंदी से बात करते हुए, "हमलोग 7 साल से सेवा दे रहे हैं और केवल 10 हजार प्रति महीने में 24 घंटे ड्यूटी करनी होती है. लोकसभा चुनाव में ड्यूटी से लेकर देश के किसी भी कोने में किसी आरोपी को पकड़ने जाने तक, सब काम हमसे लिया जाता है. अब हम इतना मजबूर हो गए हैं कि 10 हजार में हमारा घर नहीं चल सकता."

चिंताजनक बात यह है कि यह आर्थिक तंगी उन्हें फिर से नक्सलवादी धारा के करीब पहुंचाती दिख रही है. यह संकेत अखिलेश कुमार की बात से मिलता है.

"तीसरी बार हम लोगों का यह आंदोलन चल रहा है. 2020 में हमें नौकरी स्थाई होने का आश्वासन मिला. 2021 में हमें लिखित आश्वासन दिया गया. 2024 में हम फिर सड़क पर हैं. इस बार या तो हम अपनी नौकरी स्थायी कराकर जाएंगे या फिर जिस धारा (नक्सलवाद) से हम सब आए थे वापस उसी में चले जाएंगे."
अखिलेश कुमार, सहायक पुलिसकर्मी

अखिलेश कुमार नौकरी से स्थाई होने की उम्मीद में अपनी शादी टालते गए लेकिन आखिरकार उन्हें परिवार की सुनकर शादी करनी पड़ी.

सहायक पुलिसकर्मी स्मिता कुमारी भी मोरहाबादी मैदान में डटी हुईं हैं. वो कहती हैं कि सरकार ने भले साल दर साल हमारा कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाया लेकिन मानदेय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की. उनका कहना है, "हमें नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लिए बहाल किया गया था और कहा गया था कि गांव स्तर पर काम करना होगा. लेकिन फिर हमसे सारी ड्यूटी कराई गई. यहां तक कि हमें राज्य से भी बाहर जाना पड़ता है."

लोहरदगा जिले से आने वालीं स्मिता कुमारी की अभी शादी नहीं हुई है. 6 बहनों में से एक स्मिता के उपर घर कि जिम्मेदारी है क्योंकि उनके पिता बीमार रहते हैं. उनका कहना है कि 10 हजार रूपए छोड़कर उन्हें किसी तरह का हेल्थ इंश्योरेंस मेडिकल सुविधा नहीं मिलती है. न कोई टीए-डीए मिलता है. इसके अलावा साल की सिर्फ 18 छुट्टियां मिलती हैं वो भी परमिशन लीव के रूप में, यानी इसका इस्तेमाल सिर्फ सीनियर अफसर के विवेक पर मंजूरी मिलने के साथ किया जा सकता है. अगर किसी बीमारी या मजबूरी की वजह से एक भी अतिरिक्त छुट्टी ली तो 10 हजार के मानदेय में से काट लिया जाता है.

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सहायक पुलिसकर्मी धन प्रभु टोप्पो बताते हैं कि कई बार उनके पास खुद के खाने के लिए भी रुपए नहीं होते हैं और उन्हें ड्यूटी जाना पड़ता है. पैसे की किल्लत की वजह से वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल नहीं बल्कि सरकारी स्कूल भेजते हैं. उनके घर में लगभग 10 लोग हैं और कमाने वाले सिर्फ एक धन प्रभु टोप्पो.

रीमा कुमारी बताती हैं, "सीएम (तात्कालिक) रघुवर दास ने कहा था कि 3 साल बाद जिलाबल में हमें स्थाई किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब मेरी शादी हो गई है, मेरे बच्चे हो गए हैं. अपने मां-बाप की सबसे बड़ी बेटी हूं तो उनको भी नहीं छोड़ सकती. 10 हजार में दो-दो परिवार को संभालना पड़ता है."

रविन्द्र कुमार साहू झारखंड सहायक पुलिस प्रदेश एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष हैं. यह संगठन ही इस आंदोलन को लीड कर रहा है. उनका कहना है कि ड्यूटी पर मरने वाले 15 सहायक पुलिसकर्मियों के परिजनों को सरकार की तरफ से न तो कोई आर्थिक सहायता मिली और न ही किसी आश्रित को अनुकंपा पर नौकरी. क्विंट हिंदी ने ऐसे ही कुछ सहायक पुलिसकर्मियों के परिजनों से बात की जिनकी मौत नौकरी के दौरान हुई थी.

"अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलनी तो चाहिए"

सहायक पुलिसकर्मी किशोर नायक की मौत 2022 में हुई थी. उस समय वह 29 साल के थे और शादी भी नहीं हुई थी. 15 अक्टूबर 2022 की रात वो ड्यूटी से लौटे थे और खाने के बाद बेड पर ही उनका निधन हो गया. उनके भाई बालेश्वर नायक बताते हैं कि उनकी मौत के बाद परिवार को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है.

ऐसे ही सहायक पुलिसकर्मी तारकेश्वर प्रजापति की मौत 25 सितंबर 2023 को हुई. उनकी नई नई शादी हुई थी. अब अवसाद में डूबीं उनकी पत्नी रिंकी के लिए ससुराल में रहना संभव नहीं रहा है और वह अपने एक बच्चे को लेकर मायके आ गई हैं. क्विंट हिंदी से बात करते हुए रिंकी बताती हैं कि भले ही पति के देहांत के बाद परिवार को 40 हजार रुपए दिए गए थे लेकिन उसके बाद कुछ नहीं मिला.

कॉल पर बात करते हुए लगभग रोती हुईं रिंकी ने कहा, "क्या खबर लिखने पर कोई कार्रवाई होगी? अब आप लोग ही हैं. अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलनी तो चाहिए."

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झारखंड सरकार से क्या है सहायक पुलिसकर्मियों की मांग?

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के सामने सहायक पुलिसकर्मियों ने ये 8 मांगे रखी हैं:

  1. सहायक सेवा में ही स्थाई सेवा

  2. न्यूनतम वेतन राज्य सरकार के ग्रुप डी कर्मचारियों के ग्रेड पे (5200-20200) के अनुसार हो. हर साल राज्य कर्मचारियों की तरह महंगाई भत्ता मिले और वेतन बढ़े.

  3.  राज्य स्तर पर यूनिफॉर्म सर्विस रिजर्वेशन के साथ 8% प्रत्येक वर्ष के सेवा के लिए और कुल सेवा के लिए अधिकतम 50% प्रिफरेंस के रुप में मिले. साथ ही उम्र संबंधी छूट मिले. (झारखंड राज्य के होमगार्ड के अनुसार)

  4. ड्यूटी के दौरान दुघर्टनाग्रस्त सहायक पुलिसकर्मियों को राज्य स्तर पर यूनिफॉर्म सर्विस में शारीरिक दक्षता एवं मेडिकल टेस्ट में छूट मिले.

  5. ड्यूटी के दौरान दुघर्टना बीमा या मुआवजा कम से कम बीस लाख रुपये हो. मृत्यु की स्थिति में संबंधित सहायक पुलिस के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर सहायक पुलिस में नौकरी मिले.

  6. जिलाबल के जवानों के तरह सभी भत्ता दी जाए- जैसे वर्दी भत्ता, भोजन भत्ता, यात्रा भत्ता.

  7. पुलिस नियमावली में के अनुसार सभी तरह की छुट्टियां मिलें. किसी भी सहायक पुलिस के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई पुलिस नियमावली के तहत ही हो.

  8. पूर्व में सस्पेंड हुए सहायक पुलिसकर्मियों को फिर से काम पर रखा जाए. पूर्व और वर्तमान शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन में हुई कानूनी कार्रवाई को निरस्त किया जाए.

क्विंट हिंदी ने इस मुद्दे पर झारखंड सरकार का पक्ष जानने के लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को मेल भेजा है. उनका जवाब आने के बाद आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.

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