सुबह 8 बजे, झारखंड की राजधानी रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर तमाड़ का डेरो गांव. लॉकडाउन की वजह से हर तरफ सन्नाटा पसरा है. लेकिन इसी सन्नाटे में हाथ में थैली और रजिस्टर लिए कुछ लोग एक के बाद एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं.
दरवाजे से मुस्कुराते हुए बच्चे बाहर आते हैं और कहते हैं नमस्ते सर, नमस्ते मैम. फिर वो लोग थैले से एक पैकेट निकालकर बच्चे को देते हैं, वहीं दूसरी ओर ये लोग बच्चे के साथ खड़ी उसकी मम्मी को पॉकेट से निकालकर कुछ पैसे भी देते हैं. ये लोग कोई और नहीं बल्कि डेरो के एक मिडिल स्कूल के टीचर हैं.
लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद हैं और बच्चे घरों पर हैं. ऐसे में ये बच्चे भूखे ना रहे, इसे देखते हुए ये टीचर इन बच्चों के घर मिड डे मील में मिलने वाले खाने के बदले कच्चा राशन पहुंचा रहे हैं.
डेरो के मिडिल स्कूल के टीचर संजय कुमार महतो क्विंट से बात करते हुए कहते हैं कि हमारे स्कूल में 89 बच्चे हैं. 23 मार्च से लॉकडाउन है, ऐसे में इन बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में ये बच्चे भूखे ना रहे ये हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. आप इसे इस नारे की तरह देख सकते हैं कि ‘खाएंगे बच्चे, तब ही तो पढ़ पाएंगे बच्चे’.
दरअसल, झारखंड सरकार ने लॉकडाउन को देखते हुए मिड डे मील को लेकर आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों को मिड डे मील मिले. जिसके लिए खाने का सामान बच्चों के घरों तक पहुंचाया जाए.
संजय बताते हैं,
लॉकडाउन को देखते हुए हम लोगों ने 20 दिनों का खाना पहुंचाया है. जिसमें क्लास केजी से लेकर 5वीं तक के बच्चों को 100 ग्राम चावल रोज के हिसाब से और 6 से 7वीं क्लास के लिए 150 ग्राम चावल के हिसाब से दिया है. इसके अलावा उन्हें सब्जी, अंडा और फल का भी पैसा दिया गया है. 5वीं क्लास के बच्चों के लिए दो किलो चावल पहुंचाया है. साथ ही 126 रुपए, अंडे, फल और सब्जी की कीमत के हिसाब से दिए गए हैं. वहीं क्लास छह से सात तक के बच्चों के लिए 3 किलो चावल और 170 रुपये के करीब दिया गया है. यह सामान और पैसे 20 दिनों के लॉकडाउन के हिसाब से है.
“हम बच्चों को भूखा तो नहीं छोड़ सकते हैं”
एक और टीचर तरनी बाला कहती हैं, “हर तरफ लॉकडाउन है, लोग अपनी सुरक्षा के लिए बाहर नहीं निकल रहे हैं, लेकिन हमें इन सबके बीच उन बच्चों को भी देखना होगा. हम उन्हें इस तरह नहीं छोड़ सकते हैं. इसलिए हम उनतक मिड डे मील पहुंचा रहे हैं.”
स्कूल जब बंद करने का आदेश आया तब हम लोगों ने बच्चों को होम वर्क दे दिया था, इन लोगों का 30 मार्च को एग्जाम होने वाला था, लेकिन अब इन्हें प्रोमोट किया जाएगा. जब हम बच्चों के घर पहुंचे खाना लेकर तो वो लोग बहुत खुश हो गए. घर पर रहने का उन लोगों का भी मन नहीं करता है. वो लोग स्कूल आना चाहते हैं. इसलिए हमने उन्हें पिछली चीजों को पढ़ने और सारा होम वर्क करने के लिए कहा. बच्चे बार-बार पूछ रहे थे कि स्कूल कब खुलेगा?
ज्यादातर बच्चों का परिवार आर्थिक रूप से गरीब
डेरो मिडिल स्कूल के टीचर बताते हैं कि इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों के माता-पिता किसान या मजदूर हैं. बहुत कम पैसों में गुजारा करना होता है. ऐसे में इस लॉकडाउन की वजह से उन लोगों पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है. लेकिन मिड डे मील मिलने से उन्हें थोड़ी राहत तो जरूर हो रही है.
इंटरनेट और तकनीक में पीछे होने की खल रही है कमी
संजय महतो बताते हैं कि ये देशभर में इंटरनेट और टेकनोलॉजी की बात हो रही है, लेकिन हम इस मामले में पीछे हैं. क्योंकि हम टीचर तो मोबाइल के जरिए पढ़ाने को तैयार हो जाए, लेकिन हमारे सामने दो सबसे बड़ी चुनौती है, एक उन बच्चों के परिवार के पास स्मार्टफोन ना होना, दूसरा हमारा राज्य अभी टेकनोलॉजी में पीछे है. हमारी सरकार के लिए यही सुझाव है कि हम लोगों को देश के बाकी जगहों की तरह तेजी से आगे बढ़ना है तो हम सबको टेकनोलॉजी के छेत्र में ट्रेनिंग की जरूरत है.
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