लॉकडाउन की स्थिति में प्राइवेट अस्पतालों में इलाज मिलना मुश्किल. मरीजों के लिए सरकारी अस्पताल ही पनाह हैं. लेकिन यहां भी राहत न मिले तो इंसान कहा जाए? जमशेदपुर के सरकारी अस्पताल में गर्भवती रिजवाना खातून के साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद उसने अपना बच्चा खो दिया. इस हादसे को गुजरे हफ्ता भी नहीं बीता कि धनबाद के अस्पताल PMCH में गर्भवती लालो देवी को इलाज नहीं मिला. अस्पताल से उन्हें लौटा दिया गया और चंद घंटे में ही उसने दम तोड़ दिया.
PMCH अस्पताल ने भर्ती नहीं किया, गर्भवती की मौत
धनबाद के माड़मा भुइंया बस्ती में 20 अप्रैल की रात तबीयत बिगड़ने पर लालो की मां ने उसे पास के ही डॉक्टर को दिखाना चाहा. लेकिन लॉक डाउन के कारण प्राइवेट अस्पताल में सुविधा न मिलने पर वह 108 एम्बुलेंस की मदद से 21 अप्रैल की सुबह PMCH अस्पताल पहुंचीं. गंभीर हालत होने के बावजूद अस्पताल ने लालो को भर्ती नहीं किया. उसके घरवाले उसे वापस घर ले आये, जहां गर्भवती लालो ने कुछ घंटों बाद दम तोड़ दिया. लालो के पति का आरोप है कि अस्पताल ने उनसे कहा कि या तो मुखिया या विधायक से लिखवाकर लाओ तो भर्ती करेंगे. लालो के घर वालों का कहना है कि विधायक को कई बार फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया और मुखिया ने मांगने पर भी चिट्ठी नहीं दी. लालो की मां का कहना है कि उनकी बेटी की मौत के जिम्मेदार अस्पताल और गांव के मुखिया हैं.
“20 अप्रैल की रात मेरे बेटी को उल्टी हो रही थी, जब हालत बिगड़ने लगी तो हमने मुखिया जी से कहा कि लिख कर दे दीजिए हम इस को अस्पताल ले जाएंगे. मुखिया ने लिख कर नहीं दिया. फिर 108 एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंचे. वहां गायनिक डिपार्टमेंट वालों ने कहा कि इमरजेंसी डिपार्टमेंट में ले जाइए. वहां मौजूद कर्मचारी ने कहा डॉक्टर नहीं है चले जाइए. ऐसे में हम क्या करते हम वापस घर ले आये.”सजना देवी, लालो देवी की मां
लालो की मां के आरोप पर मुखिया ने क्विंट से कहा कि उन्होंने मुझसे कागज पर लिखकर देने के लिए नहीं कहा और न ही ऐसा कोई प्रावधान है.
“लालो के परिजन मुझसे उसकी तबीयत खराब होने पर अस्पताल जाने के लिए पैसे की मदद चाह रहे थे. अस्पताल जाने के लिए मुझसे कागज पर लिख कर देने के लिए नहीं कहा. जहां तक अस्पताल में जनप्रतिनिधि के द्वारा लेटर मांगने की बात है तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.”मुखिया संजय महतो, मुखिया, माड़मा पंचजयात, धनबाद
गर्भवती लालो देवी की मौत पर क्विंट ने PMCH के सुपरटेंडेंट डॉ ए.के. चौधरी से बात की. उन्होंने माना की डॉक्टर मामले की गंभीरता को नहीं समझ पाए. इसके अलावा उन्होंने मामले की जांच करने की बात भी कही है.
PMCH में 6 बजकर दस मिनट में उनकी एमरजेंसी में इंट्री है. उनको दवा लिख कर उन्होंने छोड़ दिया. इस लिए वह चली गईं. उनको डॉक्टर ने देखा भी है. हो सकता है कि हमारे डॉक्टर एसेस नहीं कर पाए कि वह सीरियस हैं, लेकिन ये जांच का विषय है.डॉ ए.के.चौधरी PMCH सुपरिटेंडेंट
मुखिया ने क्विंट से बातचीत में कहा कि महिला की हालत बहुत खराब थी. सूखकर कांटा हो गई थी. सवाल ये है कि अगर लालो सूख कर कांटा हो गई थी तो फिर अस्पताल में डॉक्टर मरीज की खराब हालत को क्यों नहीं एसेस कर पाए? जाहिर है दाल में कुछ तो काला जरूर है.
सरकार ने बिठाई जांच
क्विंट ने इसके बारे में झारखण्ड हेल्थ सेक्रेटरी डॉ नितिन कुलकर्णी से भी बात की. उन्होंने कहा कि प्रेग्नेंट महिला की मौत को लेकर इन्क्वायरी गठित की गई.प्रेग्नेंट महिला की मौत को लेकर इन्क्वायरी गठित की गई.
“वह 6 महीने की प्रेग्नेंट थीं, वह PMCH आईं, कुछ ट्रीटमेंट लिया और चली गईं. इन सब बातों की जांच के लिए धनबाद के DC ने इन्क्वाइरी कमेटी गठित की है. जांच के बाद ही पूरी बात सामने आएगी.”डॉ नितिन कुलकर्णी, हेल्थ सेक्रेटरी झारखण्ड
विडंबना देखिए कि महिला बिहार के जमुई से लॉकडाउन से जूझते हुए, इलाज की उम्मीद लिए झारखंड में अपने घर आई थी. महिला का मायका झारखंड में है और इसकी शादी यूपी के कानपुर में हुई है. मार्च में महिला बिहार में जमुई अपनी मौसी के यहां गई थी. जब वहां तबीयत बिगड़ी तो आसपास सही इलाज तलाशती रही. फिर सोचा कि किसी तरह झारखंड में अपने मायके पहुंच जाए तो बेहतर इलाज मिलेगा. धनबाद में परिवार ने उसे बिहार से लाने के लिए लॉकडाउन पास बनवाने की कोशिश की लेकिन नहीं बना तो जमुई के रिश्तेदारों ने इसे धनबाद पहुंचाया. लेकिन यहां भी उसे जिंदगी नहीं मिली. बिन इलाज बच्चे और महिला दोनों की मौत हो गई.
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