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JNU छात्रों का संसद मार्च: कई छात्रों को आई चोट, पुलिस के साथ झड़प

पुलिस जेएनयू छात्रों को रोकने की कर रही है कोशिश

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दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों का हॉस्टल फीस बढ़ोतरी और अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन जारी है. हजारों छात्र संसद तक मार्च निकालने के लिए सड़कों पर उतरे हैं. संसद जाने तक के रास्ते पर पुलिस ने कई जगह बैरिकेडिंग की थी, लेकिन छात्रों ने एक-एक कर सारी बैरिकेडिंग तोड़ दी. अब फिलहाल छात्रों को आखिरी बैरिकेडिंग पर रोका गया है. छात्र इस बैरिकेडिंग को भी पार करने की कोशिश कर रहे हैं.

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संसद तक पहुंचने की कोशिश में कई छात्रों की पुलिस कर्मियों से झड़प भी हुई है. पुलिस छात्रों को पकड़कर हिरासत में ले रही है. वहीं छात्रों का कहना है कि वो किसी भी तरह संसद तक पहुंचकर ही रहेंगे. जो भी छात्र बैरिकेडिंग के ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें पुलिस हिरासत में ले रही है. अभी तक करीब 200 से ज्यादा छात्रों को हिरासत में लिया गया है. छात्रों को बसों में भरकर पुलिस थाने तक ले जाया जा रहा है.

पुलिस जेएनयू छात्रों को रोकने की कर रही है कोशिश

छात्रों ने लगाया मारपीट का आरोप

जेएनयू के छात्रों ने आरोप लगाया है कि पुलिस और सुरक्षाबलों ने उनके साथ मारपीट की है. छात्र लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं और किसी भी आश्वासन पर मानने को तैयार नहीं हैं. छात्रों का कहना है कि उन्हें मार्च निकालने की आजादी नहीं दी जा रही है. उन्होंने शांतिपूर्ण मार्च निकालने की मांग की थी, लेकिन फिर भी धारा 144 लगा दी गई. छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने सिविल ड्रेस में उनके साथ मारपीट की है, उन्हें लात-घूसों से मारा जा रहा है.

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जेएनयू के छात्रों से बातचीत के लिए केंद्र सरकार ने एक हाई पावर कमेटी तैयार की है. जो छात्रों से बातचीत कर इस मसले को सुलझाने की कोशिश करेगी. इस कमेटी में तीन सदस्य शामिल हैं.

इसमें यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर वीएस चौहान, एआईसीटीई के चेयरमैन प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे और यूजीसी के सेक्रेट्री प्रोफेसर रजनीश जैन होंगे. एचआरडी मिनिस्ट्री की तरफ से इन तीनों सदस्यों को नियुक्त किया गया है. ये कमेटी यूनिवर्सिटी प्रशासन और छात्रसंघ के पदाधिकारियों से बातचीत कर सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगी.

जेएनयू छात्रसंघ का कहना है कि दिखाने के लिए सरकार ने कमेटी गठित कर दी है. यह एक झूठी कमेटी है. छात्रों ने कहा कि अगर हमारे हक में फैसला लेना है तो इन बढ़ाई गई फीसों को सस्पेंड क्यों नहीं किया गया है.

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