देश-विरोधी नारों का गढ़. प्रदर्शनों का अगुआ. हो-हल्ले का ठिकाना. हर बात पर तुनक जाने वालों का अड्डा... ये कुछ जुमले हैं, जो जेएनयू नाम लिए जाने भर से गिना दिए जाते हैं. लेकिन क्या ये सच है?
नेशनल इंस्टीट्य़ूट रैंकिंग फ्रेमवर्क यानी NIRF तो कहता है कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी नाम का ये संस्थान पढ़ाई-लिखाई के मामले में अव्वल नंबर लाया है. NIRF रैंकिंग में इसे देश की दूसरी सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी बताया गया है.
इससे पहले भी साल 2016 और 2017 में NIRF रैंकिंग में इस यूनिवर्सिटी का क्रमश: तीसरा और दूसरा स्थान रहा है.
आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि ये रैंकिंग किन-किन पैरामीटर पर की जाती है
- पढ़ाई के संसाधन
- रिसर्च और ट्रेनिंग
- प्लेसमेंट की व्यवस्था
- देश के कोने-कोने के छात्रों की पहुंच
- लोगों की राय
यानी 5 पैरामीटर में जो यूनिवर्सिटी खरे उतरते हैं, उन्हें रैंकिंग दी जाती है. अब सवाल ये भी है:
- आखिर जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के बारे में रैंकिंग दिखाकर कुछ लिखने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
- क्यों बताना पड़ रहा है कि जेएनयू पढ़ाई में भी अव्वल है.
इस सवाल का जवाब यहीं के छात्रों की जुबानी पढ़िए और समझिए.
क्यों इस रैंकिंग को बताने, समझाने की जरूरत है?
यूनिवर्सिटी में स्पेनिश भाषा की पढ़ाई करने वाली शांभवी दूबे यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं रहती हैं. उनका कहना है कि जेएनयू में पढ़ने के कारण उन्हें अक्सर ताना सुनना पड़ता है.
अब तो घर के आसपास वाले भी पूछने लगे हैं कि क्या इस यूनिवर्सिटी में सिर्फ विरोध प्रदर्शन ही होता है? हमें बोला जाता है कि जेएनयू वाले सिर्फ प्रोटेस्ट करते हैं, लोग कहते हैं कि आपलोग सिर्फ कन्हैया से मिलते होंगे, उमर खालिद से मिलते होंगे. ऐसे ही और ताने सुनने को मिल जाते हैं.शांभवी दूबे, जेएनयू
शांभवी कहती हैं कि जब ऐसी रैंकिंग आती है, तो उस पर भी बात होनी ही चाहिए, मीडिया और लोगों को जेएनयू के पॉजिटिव साइड के बारे में दिखाना चाहिए. ये जरूरी है उस माहौल को खत्म करने के लिए, जो जेएनयू के बारे में देशभर में बनाया जा रहा है.
शांभवी कहती हैं कि ज्यादातर छात्रों का राजनीति या किसी संगठन से कोई वास्ता नहीं है. लेकिन ये मान लिया जाता है कि 'हमसब लोग सिर्फ नारे और तख्तियां लेकर ही यूनिवर्सिटी में घूमते रहते हैं'
हमारी यूनिवर्सिटी का खुलापन ही इसकी पहचान है...
पॉलिटिकल स्टडी में पीएचडी करने वाले सुमित कुमार कहते हैं कि ये रैंकिंग अपने आप में सबूत है कि जेएनयू एकेडमिक एक्सीलेंस में दूसरे संस्थानों के लिए मिसाल है. यहां सिर्फ प्रोटेस्ट ही नहीं होता है. यहां क्लासेज, सेमिनार, पब्लिक लेक्चर रेगुलर होते हैं. चाहे कितने भी प्रोटेस्ट होते रहें.
एमए की छात्रा विदुषी शुक्ला का कहना है, ''अभी भी यूनिवर्सिटी में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. कुछ मुद्दे ज्यादा गंभीर है, जिस पर तो प्रदर्शन होना ही चाहिए. लेकिन इन सब चीजों से हमारी पढ़ाई पर असर नहीं होता. हमारी क्लासेज चलती हैं. इस यूनिवर्सिटी का खुलापन ही इसकी जान है. हर सोच और हर विचार के छात्र आपको यहां मिल जाएंगे.''
जेएनयू की खूबसूरती उसके माहौल में है
कैंपस के ज्यादातर छात्र मानते हैं कि इस यूनिवर्सिटी की खूबसूरती इसके माहौल में है. देश के कोने-कोने, गांव कूचे का प्रतिनिधित्व यहां होते है. छत्तीसगढ़, झारखंड या ओडिशा जैसे राज्यों के गरीब तबके के वो बच्चे, जिनके लिए उच्च शिक्षा का सपना किसी ख्वाब जैसा है, उस ख्वाब को जेएनयू में ऊंची उड़ान दी जाती है. दुनियाभर में इस यूनिवर्सिटी के छात्रों ने झंडे गाड़े हैं. देश की बात करें, तो हर सेक्टर में राजनीति से लेकर साइंस तक में इस यूनिवर्सिटी के छात्रों की धमक है.
ऐसे में जायज विरोध प्रदर्शनों, नकारात्मक संदेशों और विचाराधारा के नाम पर राजनीतिक बहसबाजी से अलग जेएनयू के उपलब्धियों पर भी समय-समय पर बताने की जरूरत है, जिससे देश के 640 जिलों में बैठे बच्चों और उनके अभिभावकों के मन में इस यूनिवर्सिटी के लिए डर और शंका पैदा न हो.
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