मेडिकल डिवाइस सप्लाई करने वाली मल्टीनेशनल कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने साल 2010 में खामियों वाली हिप इंप्लांट डिवाइस को वापस मंगा लिया. लेकिन देश की संबंधित एजेंसियों ने खामी वाली डिवाइस पर प्रतिबंध लगाने और लाइसेंस रद्द करने में 2 साल का वक्त लगा दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस लापरवाही की वजह से हजारों मरीजों का गलत हिप इंप्लांट हुआ. रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को साल 2010 में ही जानकारी मिल गई थी कि दुनिया के तमाम देशों ने खामियों वाली हिप इंप्लांट डिवाइस को वापस कर दिया है. लेकिन मंत्रालय ने लाइसेंस रद्द करने में देरी की, जिसका खामियाजा हजारों मरीजों को उठाना पड़ा.
लाइसेंस रद्द करने में देरी से 3600 मरीजों का गलत हिप इंप्लांट
एएसआर एक्सएल एसीटैबुलर हिप सिस्टम और एएसआर हिप रिजफैसिंग सिस्टम भारत में पहली बार साल 2006 में लाया गया था. दुनिया के तमाम देशों में इसे वापस लेने से पहले भारत में साल 2010 में इसका लाइसेंस रिन्यू किया गया था, जबकि 2009 की शुरुआत में ही ऑस्ट्रेलियाई रेग्युलेटर्स ने संशोधन सर्जरी की उच्च दर को खतरनाक बताते हुए उस प्रोडक्ट को वापस कर दिया था.
भारत में 2006 के बाद से कम से कम 4700 सर्जरी हुई हैं. इनमें से खामी वाली डिवाइस की वजह से 3600 मरीजों का गलत हिप इंप्लांट हुआ.
साल 2012 में ड्रंग कंट्रोलर ने जारी किया था नोटिस
रिपोर्ट की मानें, तो 11 अप्रैल 2012 में तत्कालीन ड्रग कंट्रोलर जनरल जीएन सिंह ने फर्म को नोटिस जारी कर तत्काल प्रभाव से डिवाइस के आयात को रोकने के लिए कहा था. एक्सपर्ट ने पाया था कि गलत इंप्लांट में मेटल पर मेटल चढ़े होने की वजह से खून में कोबाल्ट और क्रोमियम हाईलेवल तक बढ़ जाते हैं, जो नुकसान की वजह बनते हैं. डॉक्टरों ने पाया कि मेटल अंगों को नुकसाना पहुंचा रहे थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, जॉनसन एंड जॉनसन ने दुनिया के तमाम देशों से प्रोडक्ट लौटाए जाने के दो साल बाद 26 अप्रैल 2012 को अपना लाइसेंस सरेंडर कर दिया. हालांकि मल्टीनेशनल कंपनी ने अपने प्रोडक्ट में किसी भी तरह की कमी होने से इनकार किया.
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