हर वो पत्रकार जिसने 26/11 के मुंबई हमले को कवर किया है, उसके जेहन में हर महीन जानकारी अब तक वैसी ही महफूज है. बिना सोए, बिना ठीक से खाए-पिए, पूरे तीन दिन तक पत्रकार डटे रहे. हर छोटी, हर मुश्किल जानकारी जुटाते रहे. कसाब की पहली तस्वीर एक फोटो जर्नलिस्ट के कैमरे से ही दुनिया के सामने आ सकी थी. पेश हैं कुछ पत्रकारों के ऐसे ही ब्योरे जिन्होंने इन हमलों को करीब से देखा है.
उस दिन मुंबई ने मुझसे मेरा एक हिस्सा छीन लिया- रोहित खिलनानी
यह अपनी तरह का पहला आतंकवादी हमला था. हममें से ज्यादातर रिपोर्टर जानते थे कि अगर हम जिंदा बच गए तो हमारे पास कभी ना भूलने वाली स्टोरी होगी. जर्नलिस्ट भुलावे में जीते हैं. ऐसी सिचुएशन में हम हमेशा सोचते हैं, ‘हमें कुछ नहीं होगा.’ मैंने ओबेरॉय ट्राइडेंट के बाहर से लगातार तीन दिन तक 26/11 हमलों को कवर किया. उससे पहले मैंने अपनी जिंदगी में कभी गोली की आवाज तक नहीं सुनी थी. लेकिन उस रोज गोली के साथ मैंने बम धमाके भी सुने. जब भी होटल के अंदर धमाका होता था, बाहर की जमीन हिलती थी. तब हम रिपोर्टर्स एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे.
होटल के बाहर दो घंटे तक इंतजार करने के बाद मैंने कुछ क्राइम रिपोर्टर्स को बात करते सुना कि स्कोडा कार में सवार आतंकवादियों का पीछा किया जा रहा है. इसलिए मैं और मेरा कैमरापर्सन ऑफिस की कार में बैठकर वहां से निकले लेकिन चौपाटी पर पुलिस ने हमें रोक लिया. जैसे ही मैं कार से निकला, मैंने देखा कि मुंबई पुलिस के कुछ कॉन्स्टेबल लाठियों से दो आतंकवादियों से मुकाबला कर रहे थे. उनमें से एक आतंकवादी कसाब था.
आतंकवादियों को पुलिस वैन में वहां से ले जाया गया. इसके बाद हम ओबेरॉय होटल लौटे. वहां खड़े पुलिस वालों ने हमें बताया कि उन्होंने अभी-अभी दो आतंकवादियों को मार गिराया है. उन्हें पता नहीं था कि कसाब जिंदा है.
26/11 को भूलने की कोशिश जारी है: सारा सिडनर
मैं ऑफिस को एक मैसेज भेजने वाली थी. और तभी, एक तेज धमाका हुआ. कान फोड़ देने वाला धमाका. शरीर ने जैसे खुद ही प्रतिक्रिया दी. मैं अचानक झुकी और आवाज की दिशा में मुड़ गई. मैं होटल ताज के बाहर खड़ी थी. मेरे हाथ में उस वक्त माइक था जो अब तक CNN से कनेक्ट था. मैंने शायद कुछ ऐसा कहा, "मुझे तुरंत ऑन एयर ले जायें." ताज में उस जोरदार धमाके की आवाज सुनकर मैं हक्की-बक्की रह गई. मुझे तुरंत समझ आ गया कि मुंबई हमले की खबर अभी खत्म नहीं हुई है. जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ रहा था, चीजें खतरनाक होती जा रही थीं. पता लगा कि ताज में अब भी लोग बंदी हैं. अब भी होटल के अंदर आतंकी घूम रहे हैं. एहसास हो गया कि आतंक के ये लम्हे अभी लंबे चलने वाले हैं.
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26/11 के हमले से पत्रकार ये सबक सीख सकते हैं: गौरव सावंत
जिस वक्त हमले की खबर आई, मैं स्टूडियो में एंकरिंग कर रहा था. हमने मुंबई के पुलिस कमिश्नर से फोन लाइन पर बात की. उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की. जैसे ही मैंने एंकरिंग खत्म की, मैं लाइव रिपोर्टिंग के लिए मुंबई रवाना हो गया. अगले तीन दिन के लिए मैं हम होटल ताज के बाहर खड़े थे. हम हर जानकारी के बारे में वहीं से बता रहे थे. ये एक बड़ी गलती साबित हुई क्योंकि पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आकाओं को सेना के हर कदम के बारे में जानकारी मिल रही थी. ये काफी अजीब और डरावना था. आतंकवादियों ने हम पर ग्रेनेड भी फेंका.
धमाका जो ‘पटाखे’ का नहीं था: फिल स्मिथ
मैं बस सोने जा रहा था जब मुझे धमाके की आवाज सुनाई दी. पहले लगा कि पटाखे की आवाज है लेकिन फिर दूसरी आवाज सुनाई दी. ये दूसरी आवाज काफी तेज थी. मैं घर से बाहर निकला. बाहर एक स्कूटर पड़ा था जिसके परखच्चे उड़ गए थे. एक दुकान के सामने तमाशबीनों की भीड़ इकट्ठी होने लगी. मुंबई में मेरी टीम में आर्थिक मुद्दों को कवर करने वाले पत्रकार थे जो ऐसे हालात की कवरेज के लिए प्रशिक्षित नहीं थे. इसलिए, शुरूआत में मुझे ही मोर्चा संभालना पड़ा, जब तक कि दिल्ली से बाकी टीम यहां पहुंच सके.
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