महाराष्ट्र सरकार बधाई की पात्र है. इधर जज बीएच लोया की मौत को संदिग्ध बताने वाली मीडिया रिपोर्ट्स छपी, उधर एक दिन के भीतर ही सरकार ने स्टेट इंटेलिजेंस कमिश्नर की निगरानी में जांच बिठा दी. इस जांच की रिपोर्ट 3 दिन में ही आ गई, जो जज लोया की मौत को संदिग्ध बता रहे सारे संदेहों को खारिज कर रही थी.
2005 शोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस के ट्रायल की जिम्मेदारी जज लोया को सौंपी गई थी. साल 2014 में लोया को ये जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन उसके पहले इस केस की सुनवाई करने वाले जज का तबादला कर दिय गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में ये बताया गया था कि सोहराबुद्दीन केस पर 'शुरुआत से लेकर अंत तक एक ही अधिकारी काम करेगा’. इस केस के एक आरोपी अमित शाह फिलहाल बीजेपी के अध्यक्ष हैं. उन्हें बाद में आरोपों से मुक्त कर दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर इसी जांच के आधार पर आया है जो जांच बीजेपी की सरकार ने कराई थी.
कारवां मैग्जीन ने “A Family Breaks Its Silence : Shocking Details Emerge In Death Of Judge Presiding Over Sohrabuddin Trial” हेडलाइन से 20 नवंबर, 2017 को एक स्टोरी पब्लिश की. एक सतर्क और उत्तरदायी राज्य सरकार तुरंत कार्रवाई में आ गई. महाराष्ट्र सरकार ने स्टेट इंटेलीजेंस कमिश्नर की निगरानी में जांच बिठा दी.
- 23 नवंबर को कमिश्नर ने मुंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक लेटर लिखा, जिसमें उन 4 जजों के बयान दर्ज करने की मांग की गई थी, जो जज लोया के साथ नागपुर में शादी समारोह में हिस्सा लेने गए थे और वहां लोया की मौत हो गई थी. परमिशन भी उसी दिन मिल गई.
- 48 घंटे के भीतर ही सभी जजों ने अपने बयान दर्ज करा दिए, वो भी 3 साल पहले की घटना को याद करते हुए.
- 28 नवंबर को जांच रिपोर्ट एडिशिनल चीफ सेक्रेटरी (होम) को सौंप दी गई.
मैग्जीन में छपे हर दावे को इस रिपोर्ट ने खारिज कर दिया, जो याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए मामलों का आधार था. ये याचिकाएं जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच चाहते थे. वो स्वतंत्र जांच अब नहीं होगी.
अब याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा था, और कोर्ट ने क्या कहा जान लीजिए-
- याचिकाकर्ताओं ने जांच की तेजी पर आश्चर्य और संदेह जताया
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा- जजों का बयान सच्चाई की गूंज है, पूर्वनिर्धारित नहीं है और दिखाता है कि चारों जजों ने अपनी ड्यूटी को बखूबी निभाया है.
- याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाया कि जब जज लोया ने सीने में दर्द की शिकायत की, तो उनके साथ के जजों ने उन्हें एक साधारण अस्पताल में भर्ती कराया. उतनी ही दूर पर स्पेशल कार्डियक हॉस्पिटल भी था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इसको भी खारिज कर दिया है. ये कहा कि साथी जजों के उद्देश्य को इस तरह से व्यक्त करना बेतुका है. दूर बैठे लोगों के लिए इमरजेंसी में किए गए काम की आलोचना आसान है, जजों के कंडक्ट पर कोई सवाल नहीं उठा सकते.
- याचिकाकर्ताओं ने एक जज द्वारा दिए गए बयान पर जोर दिया कि दांडे अस्पताल में ईसीजी मशीन काम नहीं कर रही थी, जबकि एक और जज और मेडिकल रिकॉर्ड का दावा था कि ईसीजी किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने Meditrina अस्पताल में एक डॉक्टर के नोट पर भरोसा किया, ये वो जगह थी, जहां लोया को दूसरी बार ले जाया गया. नोट में ये था कि जज लोया के अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी.
- याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कि जज लोया को 1 दिसंबर को सुबह 4.00 बजे सीने में दर्द हुआ, जाहिर है कि वो शर्ट और पैंट पहनकर तैयार होकर नहीं पहुंचते, जैसा कि रिकॉर्ड में है.
सुप्रीम कोर्ट एक जज के उस बयान से संतुष्ट था, जिसमें कहा गया कि जब जज उस गेस्ट हाउस पर पहुंचे, जहां लोया रह रहे थे, उस वक्त लोया टॉयलेट में थे. इससे पता चलता है कि वो पहले से ही जगे हुए थे, ऐसे में वो कपड़े पहनकर तैयार हो चुके होंगे.
ऐसे ही कई सारे तर्क याचिकाकर्ताओं ने दिए थे, जिसे कोर्ट ने एक-एक करके खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता ये साबित करने की कोशिश में थे कि जज लोया की मौत संदिग्ध हालात में हुई है.
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