सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि डिजिटल युग में प्राइवेसी को हैकरों, निजी कंपनियों और सरकार की ओर से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. न्यायपालिका को निजता के अधिकारों को दूसरे अधिकारों और पूरक मौजूदा विधायी ढांचे के साथ संतुलित करते हुए निपटना पड़ता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘इंटरनेट के युग में नागरिकों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका’ से जुड़ी एक चर्चा में कहा, इन तीन ‘‘कर्ताओं’’ से पैदा हुई चुनौतियां कई चिंताएं पेश करती हैं.
3 चीजों से मिलती हैं चुनौतियां
उन्होंने कहा, निजता को चुनौतियां तीन प्रमुख कारकों से मिलती हैं: (1) हैकर; (2) निजी कंपनियां और (3) सरकार. इससे कई चिंताएं पैदा होती हैं:
- पहली यह कि इससे डेटा सार्वजनिक होने और निजी सूचना के दुरुपयोग की आशंका होती है.
- दूसरा, डेटा का इस्तेमाल लोगों के बारे में जानकर उनकी प्रोफाइलिंग करने और कुछ विशेष समूहों के साथ भेदभाव के लिए किया जा सकता है.
- तीसरा, मुक्त अभिव्यक्ति और सूचना के खुलासे पर एक हतोत्साहित करने वाला प्रभाव होता है.
'टेक्नोलॉजी जिंदगी के हर पहलू को कंट्रोल करता है'
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मुद्दा यह है कि कैसे ‘‘जजों के रूप में हम एक ऐसे युग में व्यक्तियों की स्वायत्तता और सूचनात्मक आत्मनिर्णय को आखिर कैसे संरक्षित कर सकते हैं, जहां टेक्नोलॉजी हमारे जीवन के हर पहलू को कंट्रोल करता है. या निजता एक भ्रम है?’’
उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति इंटरनेट पर किसी पुस्तक या गंतव्य के बारे में सर्च करता है तो स्क्रीन तुरंत पॉप-अप विज्ञापनों से भर जाती है.
उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप एक विचार की खोज करते हैं, तो आपके सामने स्क्रीन पर बड़ी संख्या में विचार उभर आते हैं....’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि आज की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति की पहचान को सूचना के टेराबाइट्स से देखा जाता है और हर व्यक्ति को इंटरनेट पर उस सूचना के संग्रह के लिहाज से देखा जाता है जो उसकी खरीदारी की पसंद, सोशल मीडिया स्वरूप, भौगोलिक स्थान और व्यक्तिगत बायोमीट्रिक सूचना से संबंधित होता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)