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राम मंदिर,नोटबंदी:आंध्र प्रदेश के नए राज्यपाल जस्टिस अब्दुल नजीर से जुड़े जजमेंट

जस्टिस नजीर सुप्रीम कोर्ट से अपने रिटायरमेंट के 39 दिन बाद राज्यपाल बन गए.

Published
भारत
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार, 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल (Governor) नियुक्त किया. जस्टिस (रिटायर्ड) सैयद अब्दुल नजीर इसी साल 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए हैं. यानी कि जस्टिस नजीर अपने रिटायरमेंट के 39 दिन बाद राज्यपाल बन गए. सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान, जस्टिस नजीर उन बेंच का हिस्सा थे जिन्होंने भारत के हाल के इतिहास के कुछ सबसे महत्वपूर्ण मामलों का फैसला सुनाया था जिसमें अयोध्या विवाद से लेकर निजता के अधिकार के मामले और तीन तलाक केस शामिल हैं.

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बता दें कि केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राज्यपाल नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की है. हिमाचल, झारखंड (Jharkhand) समेत 6 राज्यों को नए राज्यपाल मिले और 7 राज्यों के राज्यपाल का फेरबदल किया गया है. 

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आइए जानते हैं जस्टिस अब्दुल नजीर से जुड़े कुछ अहम फैसले.

  • अयोध्या-बाबरी मस्जिद का फैसला 2019: जस्टिस नजीर अयोध्या में बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई करने वाली 5 जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे. जिसने सर्वसम्मति से कहा कि अयोध्या में पूरी विवादित भूमि को राम मंदिर के निर्माण के लिए सौंप दिया जाना चाहिए. इस केस में जस्टिस नजीर राम मंदिर पर फैसला देने वाली बेंच में शामिल थे. उन्होंने मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया था.

  • नोटबंदी केस: सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में नोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 4-1 से नोटबंदी को सही ठहराया था. जस्टिस नजीर ने उस संविधान पीठ का नेतृत्व किया था जिसने नोटबंदी की वैधता को बरकरार रखा था. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद कर दिया था. इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में 58 याचिकाएं दायर हुई थीं.

  • मंत्रियों के बोलने की आजादी पर प्रतिबंध, 2023: जस्टिस नजीर ने उस संविधान पीठ का भी नेतृत्व किया जिसने कहा था कि जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति या बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं

  • तीन तलाक, 2017: अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने बहुमत के साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था. बेंच में अलग-अलग धर्मों के जजों शामिल किया गया था. जस्टिस नजीर उन दो जजों में से एक थे, जिन्होंने बहुमत के विचार से असहमति जताई थी और कहा था कि ट्रिपल तालक संवैधानिक है.

  • निजता का अधिकार फैसला, 2017: जस्टिस नजीर 9-जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिन्होंने सर्वसम्मति से कहा कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है.

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बता दें कि जस्टिस अब्दुल नजीर फरवरी 2017 में कर्नाटक हाई कोर्ट से प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्त हुए थे. जस्टिस अब्दुल नजीर ने कर्नाटक हाई कोर्ट में करीब 20 सालों तक बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस किया था.

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