भारत-पाकिस्तान के बीच तनातनी जारी है. बुधवार सुबह पाकिस्तान के कुछ लड़ाकू विमानों ने भारतीय सीमा में दाखिल होने की कोशिश की, लेकिन भारतीय वायुसेना के मुस्तैद लड़ाकू विमानों ने उन्हें खदेड़ दिया. हालांकि इस दौरान भारतीय वायुसेना का मिग-21 पाकिस्तानी सीमा पर पहुंच गया, जिसे पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने गिरा दिया. पाकिस्तान के दावे के मुताबिक, इस भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान के पायलट अभिनंदन को उन्होंने बंदी बना लिया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी इस बात की पुष्टि की है कि IAF का एक पायलट अब तक लापता है. ऐसा माना जा रहा है कि लापता पायलट अभिनंदन ही है.
सोशल मीडिया पर अभिनंदन की तमाम तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं. कुछ वीडियो में अभिनंदन के साथ पाकिस्तानी नागरिक मारपीट करते भी दिख रहे हैं. ये पहला मौका नहीं है, जब पाकिस्तान ने किसी भारतीय वायुसेना के जवान को बंदी बनाया है. इससे पहले कारगिल वॉर के दौरान भी पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के एक जांबाज पायलट को बंदी बना लिया था. भारत सरकार के तमाम प्रयासों के बाद आठ दिन के बाद उस पायलट की वतन वापसी हो सकी थी.
कारगिल वॉर के वक्त पाक ने IAF के फाइटर पायलट के. नचिकेता को बनाया था बंदी
कारगिल वॉर के वक्त पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के एक फाइटर पायलट को बंदी बना लिया था. इस जांबाज अफसर का नाम था के. नचिकेता.
27 मई, 1999. यही वो तारीख थी, जब कारगिल वॉर में भारतीय वायुसेना ने अपने फाइटर पायलट के. नचिकेता को 'ऑपरेशन सफेद सागर' के तहत MIG-27 से दुश्मनों की चौकियों को तबाह करने का काम सौंपा था. उस वक्त नचिकेता की उम्र 26 साल थी. नचिकेता ने दुश्मन के बिलकुल करीब जाकर रॉकेट दागे. दुश्मन के कैंप पर रॉकेट फायरिंग से हमला किया. लेकिन इसी बीच उनके विमान का इंजन खराब हो गया और विमान के इंजन में आग लग गई. नचिकेता का लड़ाकू विमान MIG-27 क्रैश हो गया.
नचिकेता विमान से सुरक्षित बाहर निकलने में कामयाब रहे. लेकिन वे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के पास स्कार्दू में फंस गए. पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें बंदी बना लिया.
इंटरव्यू में बयां की थी पाकिस्तान के कब्जे में पहुंचने की पूरी कहानी
एक इंटरव्यू में नचिकेता ने कहा था, ''मुझे 17,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तानी चौकियों को तबाह करने की जिम्मेदारी दी गई थी. मैंने लक्ष्य को निशाने पर लिया और MiG-27 से एक शक्तिशाली गोला दागा. लेकिन इसी दौरान इंजन में आग लग गई और वह बीच आसमान में बंद हो गया. मेरा एक ही लक्ष्य था इंजन को दोबारा शुरू करना. MiG-27 में लगे तुमांस्की टर्बो जेट इंजन में कुछ जान बची थी. वह फिर से चालू हुई. पायलट इसे 'री-लाइट' कहते हैं. मुझे युद्ध क्षेत्र से निकलने की उम्मीद जगी थी. लेकिन ये उम्मीद जल्दी ही धूमिल हो गई. मुझे बीच में ही कहीं विमान से इजेक्ट करना पड़ा, क्योंकि मैं जमीन के बेहद करीब पहुंच चुका था.''
नचिकेता के मुताबिक, जहां पर वह उतरे, वहां चारों तरफ बर्फ की सफेद चादर फैली थी और वहां गोलियां बरस रहीं थी. उन्होंने कहा, ''फाइटर पायलटों को सेफ्टी के लिए एक छोटी सी पिस्टल मिलती है, इससे मैंने उन पाकिस्तानी सैनिकों को रोकने की कोशिश की, जो मेरी तरफ बढ़ रहे थे. इसी कोशिश में मैंने सारी गोलियां दाग दीं. इसके बाद वह मेरे पास आए और उन्होंने मुझे बंदी बना लिया.''
हौसला नहीं तोड़ पाए
नचिकेता के मुताबिक, उन्हें बंधक बनाने वाले पाकिस्तान के नॉर्दन लाइट इंफैन्ट्री के सैनिक बेहद क्रूर थे. वे उन्हें तब तक बुरी तरह पीटते रहे, जब तक कि उनके एक सीनियर अफसर ने उन्हें पीछे हटने को नहीं कहा.
नचिकेता बताते हैं, ''मुझे पकड़ने वाले जवान मेरे साथ धक्का-मुक्की कर रहे थे और शायद उनका इरादा मुझे मारने का था, क्योंकि उनके लिए मैं बस एक दुश्मन पायलट था, जो उनके ठिकाने पर आसमान से गोलियां बरसा रहा था. खुशकिस्मती से, वहां आया अफसर बेहद मेच्योर था. उसने हालात को समझा कि मैं अब उनका बंधक हूं और अब मुझसे वैसे बर्ताव की जरूरत नहीं. उसने उन लोगों को रोका.''
इसके बाद नचिकेता को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर ले जाया गया, अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने खड़ा किया गया और फिर उनसे जानकारी लेने के लिए उन्हें मारा-पीटा गया. हालांकि नचिकेता को उनकी रिहाई के लिए की जा रही कोशिशों का कोई अंदाजा नहीं था.
नचिकेता के मुताबिक, ''पूछताछ शुरू हो चुकी थी और मुझे पता था कि शायद मैं कल ना देख पाऊं. हालांकि इस बीच हमेशा एक उम्मीद तो थी कि किसी दिन मैं वापस लौट सकूंगा. मुझे टॉर्चर किया गया. साफ कहूं तो मैं उनके लिए असल सूचना को स्रोत नहीं था. मुझे पता था कि वे मुझे कुछ ऐसा जानना चाहते थे, जिससे उन्हें मदद मिले.''
वाजपेयी सरकार की कोशिशों से 8 दिन बाद हो सकी रिहाई
नचिकेता की रिहाई के लिए तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तमाम कोशिशें की. नचिकेता को बंधक बनाए जाने के 8 दिनों बाद उन्हें रेड क्रॉस के हवाले कर दिया गया, जो कि उन्हें भारत वापस लेकर आई. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका हीरो जैसा स्वागत किया.
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