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सत्यार्थी नहीं मनाएंगे होली, लिखा- ‘धुएं में सभी रंग काले पड़ गए’

कैलाश सत्यार्थी ने दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर एक कविता लिखी है

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नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी ऐलान कर दिया है कि वो इस बार होली का त्योहार नहीं मनाएंगे. उन्होंने कहा है कि पहली बार ऐसा होगा जब वो होली नहीं खेलेंगे. सत्यार्थी ने ये फैसला दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर लिया है. उन्होंने कहा कि दिल्ली में आग ने बस्तियों को, खुशियों को, भरोसे को और इंसानों को जिंदा जला डाला. इसीलिए सारे रंग काले पड़ चुके हैं. उन्होंने इसे लेकर एक कविता भी लिखी है.

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कैलाश सत्यार्थी ने ट्विटर पर अपने होली न खेलने के फैसला का ऐलान किया. उन्होंने अपने ट्विटर पोस्ट में लिखा,

“जीवन में पहली बार होली नहीं खेलूंगा. मेरी दिल्ली में नफरत की आग ने बस्तियों को, खुशियों को, भरोसे को और इंसानों तक को जिंदा जला डाला. धुएं में सभी रंग काले पड़ चुके हैं. ईश्वर से प्रार्थना है कि जल्दी ही सारे रंग अपने सौंदर्य के साथ लौट सकें और हम इंसान बन सकें. कविता में मेरे भाव”
कैलाश सत्यार्थी

सत्यार्थी ने दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर एक कविता भी पोस्ट की है. जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे उनके इंद्रधनुष को इस बार लहूलुहान कर दिया गया है. उन्होंने लिखा है-

मैं उन्हीं रंगों से सराबोर होकर

तरबतर कर डालता था तुम्हें भी

तब हम एक हो जाते थेअपनी बाहरी और भीतरी

पहचानें भूलकर

लेकिन ऐसा नहीं हो सकेगा

इस बार

सिर्फ एक रंग में रंग डालने के

पागलपन ने

लहूलुहान कर दिया है

मेरे इंद्र धनुष को

अब उसके खून का लाल रंग

सूख कर काला पड़ गया है

अनाथ हो गए मेरे बेटे के

आंसुओं की तरह

जिसकी आँखों ने मुझे

भीड़ के पैरों तले

कुचल कर मरते देखा है

जिस्म पर नाखूनों की खरोंचें और फटे कपड़े लिए

गली से भाग, जल रहे घर में जा दुबकी

अपनी ही किताबों के दम घोंटू धुएँ से

किसी तरह बच सकी

तुम्हारी बेटी के स्याह पड़ गए

चेहरे की तरह

आसमान में टकटकी लगा कर

देखते रहना मेरे दोस्त

फिर से बादल गरजेंगे

फिर से ठंडी फुहारें बरसेंगी

फिर इन्द्र धनुष उगेगा

वही सतरंगा इन्द्र धनुष

और मेरा बेटा, तुम्हारी बेटी, हमारे बच्चे

उसके रंगों से होली खेलेंगे

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