उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का आज नई दिल्ली में सेप्सिस और मल्टी-ऑर्गन फेल्योर के कारण निधन हो गया. बीजेपी के लिए संकटमोचन और कल्याणकारी कहे जाने वाले कल्याण सिंह जी 89 वर्ष के थे. एक ऐसा राजनेता जिसके नाम मात्र से यूपी की राजनीति खुद-ब-खुद अलीगढ़ पहुंच जाती है.वैसे उनके एक रात के लिए मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने का किस्सा रोचक है.
1980 के अंतिम दशक में भारतीय राजनीति में 'मंडल' तुरुप का इक्का माना जाता था. लेकिन कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने राम नाम के साथ राजनीति को यूं परोसा की जनता ‘मंडल ‘ को छोड़ ‘कमंडल’ के साथ जुड़ गई. कल्याण-कमंडल के इस जोड़ी का ही नतीजा था कि 1991 में बीजेपी की शानदार जीत हुई और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
कल्याण सिंह की सरकार को बने अभी साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा को ढहा दिया.हालांकि कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट मे शपथपत्र दायर करके कहा था कि उनकी सरकार मस्जिद को कुछ नहीं होने देगी. इस विध्वंस के लिए कल्याण सिंह को ही दोषी माना गया. उन्होंने भी बाबरी मस्जिद विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर 1992 को अपना त्यागपत्र दे दिया.
हालांकि कइयों का मानना था की कल्याण सिंह के लिए कमबैक मुश्किल होगा, लेकिन 1997 में उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री पद पर फिर से वापसी की.आश्चर्य यह है कि इस कार्यकाल में उन्हें एक रात के लिए सीएम पद से हटा दिया गया था.
21 फरवरी 1998 को यूपी के तात्कालिक राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करके जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. जगदंबिका पाल तब उनकी सरकार में ही परिवहन मंत्री थे, लेकिन विपक्ष से सांठगांठ करके उन्होंने कल्याण सिंह सरकार को गिराने की कोशिश की.
फिर क्या अटल बिहारी वाजपेयी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया और रात को ही सभी हाईकोर्ट पहुंच गए. हाईकोर्ट ने अगले दिन राज्यपाल के आदेश पर रोक लगा दी और कल्याण सिंह सरकार को वापस बहाल कर दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विधानसभा में दोबारा शक्ति परीक्षण कराया गया,जिसमें कल्याण सिंह की जीत हुई.
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