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कांवड़ियों के रंग में रंगा हरिद्वार, हर तरफ जाम- प्रशासन की तैयारी पर सवाल

Haridwar निवासी राकेश नैनवाल ने कहा कि प्रशासन की व्यवस्था कुछ नहीं है, केवल समाचार पत्र में ही व्यवस्था दिख रही है.

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भारत
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धर्मनगरी हरिद्वार (Haridwar) पूरी तरह से भगवाधारी कांवड़ियों के रंग मे रंग चुकी है, हर तरफ जाम ही जाम लगा हुआ है. स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्वतीय जिलों में जाने वाले यात्रियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. यह हरिद्वार के जिलाधिकारी से लेकर देहरादून राजधानी में बैठे सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी के माथे पर पसीना ला सकता है.

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जैसा कि पहले से मालूम था कि इस समय भोले के भक्तों की संख्या लाखों में नहीं करोड़ों में होगी, जिसको देखकर जिला प्रशासन हरिद्वार व शासन ने भी पूरी तैयारियां कर दी थी,लेकिन ये तैयारियां धरी की धरी रह गयी हैं.

अब हरिद्वार प्रशासन व शासन के लिए सबसे कठिन दौर शुरू हो चुका है. अपने आराध्य देव को पहले जल चढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में डाक कांवड़िये हरिद्वार पहुंच रहे हैं, जिससे जाम की स्थिति बन रही है. हाईवे और हरकी पैड़ी के आसपास का पूरा क्षेत्र कांवड़ियों के हुजूम से पटा हुआ है.

क्या कहते हैं अधिकारी?

मेला अधिकारी/जिलाधिकारी विनय शंकर पांडेय ने कहा कि इंटर्नल सिटी में स्थिति पूरी तरह से सामान्य है, जिनको भूपतवाला की तरफ जाना है. इसके लिए हिल बाईपास को भी खोलने का आदेश दे दिया गया है. उन्होंने बताया कि,

अभी तक लगभग सवा दो करोड़ कांवड़ यात्री हरिद्वार पहुंच चुके हैं. रविवार को जो जन सैलाब दिख रहा है, तो यह आंकड़ा करीब 75 लाख या एक करोड़ के बीच जा सकता है. हमें स्थानीय लोगों का भी सहयोग मिल रहा है.

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क्या कहते हैं स्थानीय लोग?

हरकी पैडी पर व्यापार करने वाले दिनकर कहते हैं कि इस बार जबरदस्त भीड़ है. व्यापार न के बराबर चल रहा है लेकिन सुखद यह है कि इस बार कांवड़ियों व स्थानीय प्रशासन में भिड़ंत नहीं है, पुलिस भी कांवड़ियों की मदद कर रही है.

स्थानीय निवासी राकेश नैनवाल कहते हैं कि प्रशासन की व्यवस्था कुछ भी नहीं है, केवल समाचार पत्रों में ही व्यवस्थाएं दिखाई दे रही हैं. कांवड़ियो के अलावा अन्य यात्रियों को भी आना जाना है. जहां पर वाहनों को रोका जा रहा है वहां पेयजल, शौचालय व विश्राम बेंच की व्यवस्था होनी चाहिए, ये कहीं दिखाई नहीं दे रही है. बिना साइलेंसर, डीजे की तेज ध्वनि भी परेशानी पैदा करती है, आखिर इतनी छूट क्यों?

(इनपुट- मधुसूदन जोशी)

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