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सीने पर गोली खाकर कारगिल फतह करने वाले योगेंद्र यादव की कहानी

सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून का हिस्सा थे

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भारत
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टाइगर हिल की पहाड़ी पर लहूलुहान खड़ा एक जवान, सामने से बरसतीं दुश्मन की गोलियां. 15 गोलियां शरीर में लग चुकी थीं फिर भी हार मानने को तैयार नहीं. कई बार गिरा, फिर उठा, एक हाथ से बंदूक चलाता रहा. कई दुश्मनों को ढेर किया. बेसुध होकर भी बस लड़ता रहा...

ये किसी बॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं बल्कि कहानी है एक ऐसे जांबाज की जिसने अकेले टाइगर हिल पर कब्जा करने की हिम्मत दिखाई. ये कहानी है परमवीर चक्र योगेंद्र सिंह यादव की, जो आज भी लोगों के रौंगटे खड़े कर देती है. योगेंद्र यादव कारगिल के वो हीरो हैं जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर टाइगर हिल पर भारत का झंडा लहरा दिया था. इस कारगिल दिवस पर जानिए उनके इस मिशन की पूरी कहानी

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ट्रेनिंग खत्म होते ही जंग की तैयारी

आमतौर पर जब भी कोई सिपाही अपनी ट्रेनिंग पूरी करता है तो उसकी पोस्टिंग होती है, लेकिन योगेंद्र सिंह यादव के साथ कुछ अलग हुआ. सिर्फ 19 साल में ही उन्होंने ट्रेनिंग के बाद जंग की तैयारी शुरू कर दी. भारतीय सेना की 18 ग्रेनेड का हिस्सा बने योगेंद्र को ये अंदाजा भी नहीं था कि सेना में भर्ती होते ही जंग के मैदान में उतरना पड़ेगा. घातक प्लाटून का हिस्सा बनते ही कारगिल के टाइगर हिल की जिम्मेदारी मिली. जहां दुश्मन पहले से ही घात लगाए बैठा था.

योगेंद्र यादव ने बताया, “हजारों फीट की चढ़ाई और ऊपर हथियारों के साथ बैठा दुश्मन सबसे बड़ी चुनौती थे. लेकिन फिर भी चढ़ाई करने का फैसला लिया. कुल 21 जवानों की टुकड़ी जैसे ही आधे रास्ते तक पहुंची दुश्मन ने ऊपर से हमला बोल दिया. जिसमें हमारे कुछ जवान शहीद हो गए.”

प्लान 'बी' की तैयारी

दुश्मन के हमले के बाद उसी रास्ते से आगे बढ़ना मौत के मुंह में जाने जैसा था. इसीलिए प्लान बी भी तैयार था. यादव ने बताया, हमारे कमांडिंग ऑफिसर ने फैसला लिया कि हम खड़ी चट्टान के सहारे टाइगर हिल तक पहुंचेंगे. इस बात का दुश्मन को अंदाजा भी नहीं था कि हम लोग इस खड़ी चट्टान के सहारे उन तक पहुंच सकते हैं. हमने ऊपर पहुंचते ही दुश्मन के पहले बंकर को तबाह कर डाला. दूसरे बंकर तक पहुंचने तक सिर्फ 7 जवान बचे थे. दुश्मन को हमारी भनक लगते ही उन्होंने फायर खोल दिया. हालांकि उन्हें हमारी लोकेशन पता नहीं चली. इसीलिए हमने भी शांत बैठने का फैसला लिया. हमारी तरफ से हरकत होते ही उन्हें अपना टारगेट मिल जाता और हम मारे जाते. कुछ देर बाद गोलीबारी शांत हो गई. उन्हें लगा कि इस हैवी फायर में हम लोग मारे गए हैं.

पता लगाने के लिए 10-12 पाकिस्तानी सैनिक हमारी तरफ बढ़े और हमें ढूंढ़ने लगे. लेकिन हम तैयार थे. सभी जवानों ने अपनी-अपनी पोजिशन ले ली और करीब आते ही धावा बोल दिया. सभी पाकिस्तानी सैनिक ढेर हो चुके थे, लेकिन दुश्मन की इस टुकड़ी का एक सैनिक भागने में कामयाब रहा.

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तैयारी के साथ लौटा दुश्मन

पाकिस्तानी जवान ने दूसरे बंकरों में मौजूद सैनिकों को हमारी लोकेशन के बारे में बता दिया. अब उन्हें हमारी लोकेशन और हमारी संख्या के बारे में पूरा अंदाजा था. दुश्मन भारी हथियारों और कई सैनिकों के साथ हमले के लिए आगे बढ़ा. गोलियों और ग्रेनेड की बारिश होने लगी. योगेंद्र यादव ने बताया-

अंधाधुंध चल रही गोलियों के बीच एक मोर्टार का टुकड़ा मेरी नाक को फाड़कर ले गया. खून ऐसे बहा जैसे किसी ने नल खोल दिया हो. मैं थोड़ी देर के लिए बेसुध हो गया. तभी मेरा एक साथी मेरे पास आया और उसने बताया कि हमारे सभी साथी मारे जा चुके हैं. मैंने उसे फर्स्ट ऐड देने को कहा, जैसे ही उसने मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया एक गोली उसके माथे के आर-पार चली गई और वो वहीं गिर पड़ा. मैंने संभलने की कोशिश की, लेकिन तभी एक गोली मेरे कंधे को चीरती हुई निकल गई.
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शहीद जवानों पर भी चला रहे थे गोलियां

योगेंद्र यादव ने बताया कि वो गोली लगने के बाद वहीं गिर पड़े. उन्हें लगा अब सब कुछ खत्म हो चुका है. उन्होंने बताया, पाकिस्तानी सैनिक मेरे करीब आ रहे थे, तब मैंने मरने का नाटक किया. दुश्मन के जवान मुझसे कुछ ही दूर पड़े मेरे शहीद साथियों के शरीर पर गोलियां चला रहे थे. मैं इस मंजर को अपनी आंखों से देख रहा था, गोलियां लगने से जवानों के शरीर उछल रहे थे.

इसी बीच एक पाकिस्तानी सैनिक मेरी तरफ बढ़ा. उसने मुझ पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया. उसने पहले मेरे पैरों पर गोलियां चलाईं और फिर कंधे पर गोली मारी. लेकिन फिर भी मैंने आह तक नहीं किया, बेसुध बड़ा रहा. लेकिन तभी दुश्मन ने मेरे सीने की तरफ बंदूक तान दी. मुझे लगा अब नहीं बच पाऊंगा. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. सीने पर गोली लगने के बाद भी मैं जिंदा था. दरअसल ऊपर चढ़ते हुए मेरी पिछली जेब फट गई थी, जिसके बाद मैंने अपना बटुआ आगे की जेब में रख दिया था. बटुए में पांच-पांच रुपये के कुछ सिक्के थे, जिन्होंने मेरी जान बचा दी. गोली के धक्के से कुछ देर के लिए सांसें अटक सी गईं थीं. बेहोशी छा गई थी.

सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून का हिस्सा थे
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अकेले संभाल लिया मोर्चा

यादव ने बताया कि कुछ देर बाद जैसे ही होश आया उन्होंने देखा कि पाकिस्तान के कुछ सैनिक अभी वहीं खड़े थे. वो अपने साथियों को ये मैसेज दे रहे थे कि हमने पहाड़ी पर फिर से कब्जा कर लिया. ये वो पहाड़ी थी, जिस पर अगर पाकिस्तानी सैनिक वापस लौट आते तो नीचे से आ रही हमारे कई साथी मारे जाते. दोबारा टाइगर हिल फतह करना नामुमकिन हो जाता. यही सोच रहा था, तभी मुझे अपने पास एक ग्रेनेड पड़ा दिखा. मैंने उसे उठाया और उनकी ओर फेंका, जिसमें तीनों दुश्मनों के परखच्चे उड़ गए.

मैंने जैसे-तैसे उठने की कोशिश की, लेकिन मेरा एक हाथ मेरे शरीर से लटक रहा था. मुझे लगा ये टूटकर गिर जाएगा, झटका दिया लेकिन नहीं टूटा. जिसके बाद मैंने अपने उस हाथ को बेल्ट से अपनी कमर पर बांध लिया. पाकिस्तानी सैनिकों के पहुंचने से पहले मैंने सभी रायफलों को पोजिशन पर लगाना शुरू कर दिया. जैसे ही दुश्मन आगे बढ़े मैंने बारी-बारी से हर बंदूक से फायरिंग शुरू कर दी. हर पोजिशन से फायरिंग होता देख दुश्मन को लगा कि भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी ऊपर पहुंच चुकी है. ये देखकर कुछ ही देर में वो लोग पीछे हट गए. जिससे हमारी दूसरी टुकड़ी को वक्त मिल गया.
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योगेंद्र यादव ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों के वापस लौटने के बाद वो बेसुध होने लगे. उन्होंने बताया, चलकर जाना मुमकिन नहीं था. इसीलिए वहां एक नीचे की तरफ नाली सी दिखी जिस पर घसीटते हुए मैं नीचे की तरफ गया. नीचे पहुंचने के बाद ऐसा महसूस हुआ कि मैं पाकिस्तान की तरफ आ चुका हूं, लेकिन तभी मुझे अपनी सेना के जवान दिखे. मैंने किसी तरह उन्हें आवाज लगाई. वो मुझ तक पहुंचे और मैंने उन्हें दुश्मन की पोजिशन और उनकी तादात बताई. मुझे बेस हॉस्पिटल भेजकर हमारी सेना ने ऑपरेशन शुरू कर कुछ ही देर में टाइगर हिल अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद टाइगर हिल पर भारत के जवान शान के साथ भारत का झंडा फहरा रहे थे.

सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून का हिस्सा थे
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योगेंद्र यादव ने बताया कि जब उन्हें 15 गोलियां लग चुकी थीं, तब उनके मन में परिवार का भी खयाल नहीं आया. उन्हें बस इस बात की चिंता सता रही थी कि नीचे से आ रहे उनके साथियों का क्या होगा. सभी को अपनी जान गंवानी पड़ेगी.

परमवीर योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना के उन खास जवानों में से एक हैं, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से नवाजा गया. योगेंद्र आज भी एक जवान के तौर पर सेवा कर रहे हैं. फिलहाल वो सूबेदार के पद पर हैं.

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