1999 में कारगिल (Kargil war) में हुई जंग में हिसार (Hisar) के रहने वाले दीपचन्द (Deepchand) ने अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवाने के बाद भी पाकिस्तान सेना (Pakistan Army) के छक्के छुड़ा दिए थे. आज हर कोई शख्स उनकी शौर्यगाथा सुनने के लिए बेताब है. दीपचन्द बताते हैं कि कैसे हमारी सेना ने पाकिस्तान को चारों खाने चित किया था.
युद्ध में गवां दिए दोनों पैर और एक हाथ
जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र होता है तब उन शहीदों का जिक्र बड़े गर्व के साथ होता है, जिन्होंने इस लड़ाई में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. लेकिन बहुत सारे ऐसे योद्धा आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, जिन्होंने करगिल युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दिए थे. ऐसे ही एक वीर योद्धा हैं नायक दीपचन्द. जिन्होंने 1999 में करगिल में हुई जंग में अपने दोनों पैर और एक हाथ तक गंवा दिया लेकिन उनके भीतर का योद्धा आज भी जिंदा है.
कारगिल युद्ध में मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान करीब 60 दिनों तक भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ी थी. पाकिस्तान को हराकर ही हमारी सेना ने दम लिया था. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले नायक दीपचंद के दोनों पैर और एक हाथ नहीं हैं. कारगिल युद्ध के दौरान तोप का गोला फटने से बुरी तरह जख्मी हो गए थे. दीपचंद इस कदर जख्मी हुए थे कि उनके बचने की उम्मीद ना के बराबर थी.
उन्हें बचाने के लिए डॉक्टरों ने उनकी दोनों टांगे और एक हाथ को काट दिया था. उनका इतना खून बह गया था कि उन्हें बचाने के लिए 17 बोतल खून चढ़ाया गया. ये तब हुआ था, जब दीपचन्द और उनके साथी ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वापसी के लिए सामान बांधने की तैयारी में थे.
इस दौरान गोले के फटने से दो और सैनिक भी जख्मी हुए थे. भले ही नायक दीपचन्द के घुटने तक दोनों पैर नकली हैं, लेकिन आज भी वो एक फौजी की तरह तनकर खड़े होते हैं और दाहिने बाजू से फौजी सैल्यूट करते हैं. उन्होंने जंग के वक्त का एक दिलचस्प किस्सा भी सुनाया.
जब मेरी बटालियन को युद्ध के लिए मूव करने का ऑर्डर मिल था. तब हम बहुत खुश हो गए थे, पहला राउन्ड गोला मेरी गन चार्ली 2 से निकला था. वहीं पहला ही गोला हिट हो गया था, हमने इस दौरान 8 जगह गन पोजीशन चेंज की, हम अपने कंधों पर गन उठाकर लेकर जाते थे, हमारी बटालियन ने 10 हजार राउन्ड फायर किए, मेरी बटालियन को 12 गैलेन्टरी अवॉर्ड मिला.
हमें कारगिल जीतने का सौभाग्य मिला. उस वक्त हमारा एक ही मकसद होता था कि दुश्मनों का खात्मा. हम सप्लाई वालों को कहते थे कि खाना मिले ना मिले, लेकिन गोला बारूद ज्यादा से ज्यादा मिले, उस समय इतनी ठंड़ में हमें ध्यान भी नहीं था कि हम किस तरह के कपड़ों में हैं, हमें यही ध्यान रहता था कि दुश्मन ने हमारे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है.
उन्हें यहां से खदेड़ना है. मैं दुश्मनों के आमने सामने तो कभी नहीं हुआ, लेकिन हम अर्टलरी फायरिंग सपोर्ट बहुत करते थे. जिससे इंफेनटरी टीम एडवांस कर सकी. युद्ध के दौरान अर्टलरी सपोर्ट का बहुत योगदान होता है.
हरियाणा के हिसार के पाबड़ा गांव के रहने वाले नायक दीपचन्द 1989 में सेना में भर्ती हुए थे और कश्मीर में सेना के कई जोखिम भरे ऑपरेशन में शामिल रहे. नायक दीपचंद से जो कोई भी मिलता है तो उनसे करगिल युद्ध की कहानियां सुने बिने रह नहीं सकता. नायक दीपचन्द को करगिल दिवस पर पूरे देशभर में अलग-अलग जगह अवॉर्डस से नवाजा जा चुका है. नायक दीपचंद आज भी जंग के माहौल के बारे में याद कर भावुक हो जाते हैं.
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