ADVERTISEMENTREMOVE AD

कर्नाटक में जाति जनगणना से बदलेंगे समीकरण, लिंगायत, वोक्कालिगा, अहिंदा किधर जाएंगे?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि रिपोर्ट जमा होने के बाद सरकार इसे प्रकाशित करेगी.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बिहार सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए कर्नाटक (Karnataka) में कांग्रेस (Congress) के नेतृत्व वाली सरकार ने कहा कि वह राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा की गई 2015 की जाति जनगणना (Caste Census) की रिपोर्ट "निश्चित रूप से प्रकाशित" करेगी. संभावना जताई जा रही है कि इस साल नवंबर में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अपनी रिपोर्ट सौंप सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पिछले हफ्ते कहा था कि उन्होंने आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े से रिपोर्ट सौंपने का अनुरोध किया है और "अगर वह ऐसा करते हैं, तो हम निश्चित रूप से इसे जारी करेंगे."

जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी होने से कांग्रेस और 'INDIA' गुट को फायदा मिल सकता है- क्योंकि इससे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के "सजातीय हिंदुत्व" नैरेटिव को तोड़ने में मदद मिल सकती है.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसका असर कर्नाटक पर भी पड़ेगा- न केवल बीजेपी और जनता दल (सेक्युलर) पर, बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पर भी इसका असर होगा.

द क्विंट से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक तारा कृष्णास्वामी कहती हैं, "आम तौर पर सरकारें जाति जनगणना रिपोर्ट जारी करने में झिझकती हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि वे अपनी निर्मित राजनीतिक पूंजी खो देंगे. जैसे ही समुदायों को पता चलेगा कि उनका प्रतिनिधित्व या तो कम है या अधिक है, उनकी मांगें बदल जाएंगी - और यह वोटों के समीकरण को भी बदल देगा.''

जाति जनगणना और लिंगायत-वोक्कालिगा समीकरण

मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल (2013-2018) में सिद्धारमैया ने राज्य में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण (या जाति जनगणना) को हरी झंडी दी थी. एच कंथाराजू की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग ने 2018 में जाति जनगणना रिपोर्ट प्रस्तुत की, जब एचडी कुमारस्वामी जद (एस)-कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री थे.

हालांकि, रिपोर्ट को कथित तौर पर अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि उस पर आयोग के सदस्य सचिव द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए गए थे.

लेकिन उसी साल रिपोर्ट के कुछ हिस्से कथित तौर पर लीक हो गए. अगर लीक हुए आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो लिंगायत और वोक्कालिगा - कर्नाटक के दो प्रमुख समुदाय - जनसंख्या में वर्तमान अनुमान से कम हैं.

लिंगायत और वोक्कालिगा ओबीसी में आते हैं. वे ओबीसी की 'अगड़ी जातियां' हैं क्योंकि उनके पास पर्याप्त सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव है. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी में उनकी हिस्सेदारी 27 फीसदी है.

आज तक, कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय से पांच और लिंगायत समुदाय से सात मुख्यमंत्री बने हैं.

लेकिन लीक हुई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मुस्लिम और कुरुबा (गैर-प्रमुख) ओबीसी की आबादी में वृद्धि हुई है और इन समुदायों की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत से थोड़ा कम है. हालांकि, क्विंट लीक हुई रिपोर्ट को स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं कर पाया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि इस वजह से लिंगायत और वोक्कालिगा, दोनों रिपोर्ट जारी करने के खिलाफ हैं क्योंकि इससे उनके राजनीतिक प्रभाव में संभावित गिरावट आ सकती है.

कांग्रेस के लिए इसका क्या मतलब है?

वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार नाहीद अताउल्ला ने द क्विंट को बताया, "पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ज्यादातर अहिंदा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए एक कन्नड़ शब्द) वोटों के कारण सत्ता में आई थी."

इसके साथ ही वो कहती हैं कि लिंगायत, जो परंपरागत रूप से बीजेपी के वोटर्स हैं, कहा जाता है कि इसके 5 फीसदी वोट कांग्रेस मिले हैं.

वहीं वोक्कालिगा समुदाय को JDS के समर्थक के रूप में देखा जाता है. लेकिन उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के प्रभाव के कारण इस बार कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है.

अताउल्ला आगे कहती हैं कि दूसरी ओर, सिद्धारमैया जो एक गैर-प्रमुख ओबीसी जाति से हैं, उन्हें "कर्नाटक में पिछड़े वर्गों के चैंपियन" के रूप में पेश किया जा रहा है.

वह बताती हैं कि हालिया मामला यह है कि कांग्रेस सरकार ने शहरी स्थानीय निकायों और पंचायत चुनावों में ओबीसी को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए न्यायमूर्ति भक्तवत्सल आयोग की सिफारिश को मंजूरी दे दी है.

यह बीपीएल परिवारों पर केंद्रित विभिन्न चुनावी गारंटियों के अतिरिक्त है.

लेकिन अताउल्ला की राय है कि अहिंदा आबादी में संभावित वृद्धि (लीक रिपोर्ट के अनुसार) से कांग्रेस को फायदा हो सकता है, लेकिन पार्टी वोक्कालिगा और लिंगायतों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती.

"कांग्रेस को पहले से ही वोक्कालिगा और लिंगायतों की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, जो इस रिपोर्ट का विरोध कर रहे हैं - और यह पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है."

दूसरे, विशेषज्ञों का कहना है कि केवल समय ही बताएगा कि जाति जनगणना के निष्कर्षों से पिछड़े वर्गों के वोटों का एकीकरण होगा या नहीं.

एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "सतही तौर पर धारणा यह होगी कि सिद्धारमैया के अहिंदा वोट बैंक के कारण, बढ़े हुए ओबीसी वोटों से कर्नाटक को मदद मिलेगी, और यह कांग्रेस के पक्ष में होगा. लेकिन जमीनी हकीकत अलग है. ओबीसी वोट बैंक एकजुट नहीं है, जबकि प्रभुत्वशाली वर्ग कहीं ज्यादा एकजुट हैं."

कृष्णास्वामी कहती हैं, "कर्नाटक उन राज्यों में से एक है, जहां बड़े पैमाने पर जाति-आधारित क्रांति या फिर समन्‍वय नहीं देखने को मिला है. यहां ऊंची जातियों का वर्चस्व है, यही कारण है कि लिंगायत और वोक्कालिगा इतने शक्तिशाली हैं. इसलिए, कहा नहीं जा सकता कि इसका क्या परिणाम होगा.''

वो आगे कहती हैं, "वोटों का एकीकरण - चाहे वह पिछड़ा वर्ग का हो या प्रमुख जातियों का - इस पर निर्भर करता है कि कांग्रेस अपने द्वारा जारी जाति जनगणना के साथ क्या करती है. एक बार आंकड़े सामने आने के बाद, मांगें उठेंगी. कांग्रेस इन मांगों के साथ क्या करती है, यह तय करेगा वोट किस तरफ जाता है.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

BJP और JDS के लिए इसके क्या मायने हैं?

कृष्णास्वामी आगे बताती हैं कि "जहां तक ​​बीजेपी का सवाल है, इसकी पूरी कहानी हिंदुत्व की एकरूपता या अखिल हिंदू एकता के आसपास बनी है. एक तरफ हिंदू और दूसरी तरफ अन्य- बीजेपी चीजों को इसी तरह से देखना पसंद करती है हालांकि, यह वास्तविकता से बिल्कुल अलग है.''

"कर्नाटक जाति के आधार पर वोट करता है - और जैसे ही आप जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी करते हैं, आप लोगों को उनकी जाति के प्रति झुकाव की याद दिला रहे होते हैं. और जब आप ऐसा करते हैं, तो आप उस चीज को नकार रहे हैं जिसके लिए बीजेपी ने बहुत मेहनत की है - जो कि हिंदुत्व की एकरूपता है."

यह बताते हुए कि कैसे पहले भी, जाति ने बीजेपी के लिए हिंदू कार्ड को प्राथमिकता दी है, अताउल्ला कहती हैं:

"पिछले चुनावों में बीजेपी एससी / एसटी वोट बैंक पर भरोसा कर रही थी. लेकिन (पूर्व सीएम) बसवराज बोम्मई ने आरक्षण नीति में बदलाव करते हुए एससी को आंतरिक आरक्षण, लिंगायत और वोक्कालिगा का कोटा बढ़ाने, मुसलमानों को पिछड़ा वर्ग से हटा कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) में जोड़ने से उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ा."

वह आगे कहती है कि इस बीच कर्नाटक के तीसरे प्लेयर JDS को पहले कुछ मुस्लिम समर्थन मिला हुआ था, जो अब और कम हो सकता है क्योंकि उसने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया है.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अहिंदा वोट कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होते हैं, तो संभावना है कि इससे वोक्कालिगा-लिंगायत वोट भी एकजुट होंगे, जो बीजेपी-JDS गठबंधन के पक्ष में काम कर सकते हैं.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में पब्लिक पॉलिसी और गवर्नेंस के प्रोफेसर ए नारायण ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, "रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर अगर वोट एक साथ जुटते हैं तो इस व्यापक प्रभाव हो सकता है."

उन्होंने आगे कहा, "अगर प्रमुख जातियों को डर है कि ओबीसी एकजुट हो रहे हैं, तो वे एक पार्टी या गठबंधन के पीछे एकजुट होना शुरू कर देंगे. इसी तरह, अगर ओबीसी को प्रमुख जातियों की किसी भी तरह की एकजुटता दिखती है, तो इसका मतलब होगा कि वे कांग्रेस के पीछे एकजुट हो सकते हैं."

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×