कर्नाटक प्री-यूनिवर्सिटी (पीयू) की परीक्षा में टॉप रैंक हासिल करने वाली छात्रा तबस्सुम शेख की तारीफ करने वालों की लंबी फेहरिस्त है, जो बताते हैं कि कैसे तबस्सुम शेख ने परीक्षा में बैठने के लिए हिजाब छोड़ने (Karnataka HIjab Ban) की मजबूरी को "अनुचित" बताया था. दूसरी तरफ दूसरे कई ऐसी हिजाबी स्टूडेंट्स हैं जिन्होंने अपना हिजाब नहीं छोड़ा, लेकिन वे कहती हैं कि लोगों ने उनकी समस्याओं पर "आंखें मूंद ली हैं".
मार्च 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट के राज्य सरकार के हिजाब बैन को बरकरार रखने के फैसले के बाद से हिजाब पहनने वालीं कई स्टूडेंट्स को प्री-यूनिवर्सिटी के साथ-साथ डिग्री कॉलेजों में प्रवेश करने से रोक दिया गया है. जहां एक तरफ तबस्सुम शेख जैसी स्टूडेंट्स के एक समूह ने अपनी परीक्षा में बैठने के लिए अपने हिजाब को हटा दिया था, वहीं अभी भी कई दूसरी स्टूडेंट्स ऐसी हैं जिनका जीवन सरकार के आदेश को मानने की अनिच्छा के कारण पिछले वर्ष में अस्त-व्यस्त हो गया है.
न केवल सरकारी कॉलेजों, बल्कि निजी कॉलेजों- जहां सरकारी आदेश तकनीकी रूप से लागू नहीं होता है- की भी हिजाबी स्टूडेंट्स के लिए पिछला साल उथल-पुथल में बीता. कुछ अन्य स्टूडेंट्स को अपनी शिक्षा के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा, लेकिन इससे भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ.
शहर बदले, निजी कॉलेजों, अल्पसंख्यक संस्थानों में दाखिला मांगा; लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ
18 साल की फातिमा कुलसुम का कहना है कि उसने अपने जीवन का बेशकीमती एक साल खो दिया है और हिजाब न छोड़ने के फैसले के कारण उसका भविष्य अनिश्चित है.
फातिमा ने द क्विंट को बताया, “सबसे पहले, कई लड़कियों ने पढ़ने के लिए हिजाब को छोड़ दिया और ऐसा उनसे जबरदस्ती कराया गया. उनके फैसले का जश्न मनाया जा रहा था. लेकिन फिर, हममें से बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने हिजाब पहने रखने का फैसला किया. हमारा क्या? दूसरों के फैसले की तारीफ हो रही है, लेकिन सभी ने हमारी ओर आंखें मूंद ली हैं, वे हमें भूल गए हैं."
कोप्पल जिले के एक सरकारी कॉलेज की एक छात्रा, फातिमा को मार्च 2022 में हिजाब बैन लागू होने के कुछ ही हफ्तों बाद पीयू की अंतिम परीक्षा (12वीं कक्षा) देनी थी. उसने कहा, "मुझे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई, मैंने लगातार बहस की लेकिन उन्होंने मुझे बस केंद्र छोड़ने या हिजाब हटाने के लिए कहा."
असहाय, फातिमा और उसका परिवार कुछ महीने बाद बैंगलोर चले गए. इस उम्मीद में कि एक बड़े शहर में चीजें बेहतर होंगी. फातिमा कहती है कि उसने प्राइवेट कॉलेजों सहित कई कॉलेजों में फिर से एडमिशन मांगा. उसने कहा, "मैं पीयू के अपने सेकंड ईयर को दोहराने के लिए तैयार थी लेकिन अगर यह सुनिश्चित किया जाता कि कॉलेज मुझे हिजाब के साथ परीक्षा देने की अनुमति देता."
कॉलेजों में हिजाब के खिलाफ कर्नाटक सरकार का आदेश केवल सरकारी संस्थानों में लागू है, न कि प्राइवेट कॉलेजों में.
फातिमा ने कहा कि उसने अल्पसंख्यक संस्थानों में एडमिशन लेने की भी कोशिश की, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. उसने कहा, "वे मुझे एडमिशन दे रहे थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वे इस बात की गारंटी नहीं दे सकते कि परीक्षा के दौरान मेरे हिजाब पहनने से कोई समस्या नहीं होगी."
फातिमा की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं. कई महीनों बाद जून में सप्लीमेंट्री परीक्षा हो रही थी- जो उन स्टूडेंट्स के लिए थी जो पहले परीक्षा पास करने में विफल रहे थे. फातिमा ने इसे एक और मौका देने का फैसला किया.
“मैंने सोचा कि कम से कम अब वे मुझे पेपर लिखने देंगे, लेकिन वे मुझसे बहस करते रहे. अंत में, उन्होंने मुझे केवल एक टोपी पहनकर परीक्षा में बैठने दिया, हिजाब नहीं... लेकिन जब तक मुझे परीक्षा देनी पड़ी, मैं इस तरह की परेशानी में थी कि मैं अच्छे मार्क्स नहीं ला सकी."फातिमा
अंत में, मार्च 2023 में, अपनी ओरिजिनल एग्जाम के पूरे एक साल बाद, फातिमा को दोबारा परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई.
लेकिन भविष्य अभी भी अनिश्चित है.
फातिमा ने कहा, "इसके बाद डिग्री कॉलेजों के लिए एंट्रेंस एग्जाम की बारी है, फिर डिग्री कॉलेज सामने होगा .... और हर जगह हमें हिजाब छोड़ने को कहा जायेगा, पता नहीं अब मैं क्या करूंगी."
प्राइवेट कॉलेजों की स्टूडेंट्स को भी "सबसे खराब स्थिति के लिए तैयार" होना होगा
हाई कोर्ट ने फरवरी 2022 में अपने अंतरिम आदेश को स्पष्ट किया था कि हिजाब बैन केवल पीयू कॉलेजों और डिग्री कॉलेजों में लागू किया जाना है, जिनका अपना यूनिफॉर्म है. लेकिन पूरे कर्नाटक में कई ऐसे डिग्री कॉलेज जिनका यूनिफॉर्म नहीं है, उन्होंने भी वास्तव में हिजाब पर बैन लगा दिया है. इसके अलावा, यहां तक कि प्राइवेट कॉलेज, जहां कॉलेज विकास समितियां (सीडीसी) के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, वहां भी हिजाब पर बैन लगाया गया है.
बेंगलुरु के एक प्राइवेट डिग्री कॉलेज में पढ़ने वाली हीना कौसर ने कहा कि मार्च 2023 में उसकी परीक्षा के दौरान उसे केंद्र छोड़ने के लिए कहा गया क्योंकि उसने हिजाब पहन रखा था.
हीना ने द क्विंट को बताया, “मैं एक प्राइवेट कॉलेज में पढ़ती हूं जहां पिछले साल हिजाब की समस्या नहीं रही. यहां तक कि जिस केंद्र पर मैं परीक्षा दे रही थी वह भी एक प्राइवेट कॉलेज था...तो परेशानी क्या है? मैंने तर्क दिया कि वे मनमाने ढंग से एक नया नियम नहीं ला सकते हैं.”
एक घंटे की मशक्कत के बाद हीना को परीक्षा हॉल में वापस जाने की अनुमति दी गई, लेकिन तब तक उसका काफी कीमती समय बर्बाद हो चुका था. उसने बताया, “मैं पूरी तरह ब्लैंक हो गयी थी और बहस के कारण इतना घबरा गयी था कि पेपर को अच्छी तरह से लिखना असंभव हो गया था. अब मैं लगातार चिंतित रहती हूं कि जब भी मुझे कोई परीक्षा देनी होगी तो इस तरह की कोई घटना हो सकती है. मुझे खुद को सबसे खराब स्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा."
"आशा है कि भले ही दूसरी लड़कियां आगे बढ़ गयीं हैं लेकिन न्यायपालिका काम करेगी"
कर्नाटक के शिमोगा में एक स्टूडेंट शाहीन इरम ने कहा कि एक पूरा शैक्षणिक वर्ष गंवाने के बाद, उसने अपने कॉलेज में फिर से शामिल होने का फैसला किया है. शाहीन ने कहा, “एक साल तक मैं उम्मीद करती रही कि चीजें ठीक हो जाएंगी. लेकिन एक साल गंवाने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि दूसरी लड़कियां अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ गयी हैं और मैं यहीं फंस गयी हूं.”
आखिर में, दिसंबर 2022 में, शाहीन ने उसी कॉलेज में फिर से एडमिशन मांगा, लेकिन उसे एक साल दोहराना पड़ा. शाहीन ने समझाया, "अब हम हिजाब को कॉलेज के दरवाजे पर एक वेटिंग रूम में उतारते हैं और फिर अंदर जाते हैं."
उसने कहा, "दूसरी साथ लड़कियों को अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ते देखना कठिन रहा है, लेकिन मुझे सिर्फ इसलिए नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि मैंने इस उम्मीद पर कायम रहने का फैसला किया कि हमारी न्यायपालिका हस्तक्षेप करेगी और हमें हिजाब के साथ पढ़ाई करने की अनुमति देगी, लेकिन आखिरकार मुझे हार माननी पड़ी."
शाहीन ने बताया कि वह कक्षा में हिजाब नहीं पहनने के लिए "एडजस्ट करने की कोशिश" कर रही है, लेकिन यह "मानसिक रूप से कठिन" है.
मैंगलोर में रहने वाली एक अन्य छात्रा, गौसिया ने कहा कि उसे हिजाब पहनने की अनुमति देने वाला कॉलेज खोजने में आठ महीने लग गए. उसने बताया, "आठ महीने तक मैं बस घर पर बैठी रही, एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में एडमिशन के लिए अनुरोध करती रही. यह एक दर्दनाक प्रक्रिया थी."
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