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तस्वीरों में: जब देवता मनाते हैं काशी वालों के लिए भव्य दिवाली

1993 में फिर देव दीपावली की शुरूआत हुई और उसके बाद ये सिलसिला घाट दर घाट बढ़ता चला गया.

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दीपावली के 15 दिन बाद एक बार फिर बनारस के 87 घाट दीयों से जगमग हो उठे हैं. कार्तिक पूर्णिमा की रात के इस जश्न में शरीक होने के लिए देश-दुनिया से पर्यटक बनारस में जुटे हुए हैं. इस खास दिन को 'देव दीपावली' के नाम से जाना जाता है. यूं तो घाटों को कार्तिक पूर्णिमा पर दीयों से सजाने की परंपरा पुरानी है लेकिन साल 1989 में पूरे पंचगंगा घाट पर एक साथ दीये जलाये गये. मगर पैसों की कमी के चलते ये देव दीपावली दो साल में ही बन्द हो गयी. 1993 में फिर इसकी शुरूआत हुई और उसके बाद ये सिलसिला घाट दर घाट बढ़ता चला गया.

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    (फोटो: क्विंट हिंदी)
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वाराणसी के राजघाट पर लेजर शो

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देव दीपावली की पौराणिक कथाएं

वाराणसी विश्व का एकमात्र स्थल है, जहां दो-दो बार दीपावली मनाई जाती है. शास्त्रों के मुताबिक इस दिन तीनों लोकों पर राज करने वाले त्रिपुरासुर दैत्य का भगवान शिव ने वध किया था. इससे हर्षित देवताओं ने दीये जलाकर अपनी खुशी का इजहार किया था. माना जाता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से उतर कर शिव की नगरी काशी में गंगा तट पर दीपावली मनाने आते हैं. इस दिन गंगा स्नान और दान का भी महत्व है. कार्तिक पूर्णिमा की सुबह गंगा स्नान के लिए वाराणसी तीर्थ यात्रियों से पूरी तरह पट जाता है. इस दिन गंगा के किनारे बने रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखिरी छोर तक लाखों दिये जलाकर मां गंगा की पूजा की जाती है.

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