श्रीनगर के डल झील किनारे रिजवान अहमद भट्ट अपने शिकारे (जिसका नाम है दो बदन एक जान) के किनारे खड़े होकर ग्राहकों की राह देख रहे हैं. पिछले साल इस वक्त डल झील में पर्यटक खचाखच भरे थे, इस अद्भुत खूबसूरती को निहारने और जबरवन पहाड़ों का नजारा देखने यहां हजारों की तादाद में पर्यटक पहुंचे थे.
लेकिन इस बार गर्मी में डल झील वीरान पड़ा है, सैलानियों के न आने से अजीब से सूनापन है और सज-धज कर पूरी तरह से तैयार बोटमैन रिजवान उदास हैं. ‘’ हमारे शिकारे खाली पड़े हैं, झील की सैर कराने के लिए पर्यटक नहीं हैं.
जब रिजवान हमसे बात कर रहे थे तो तकरीबन आधा दर्जन शिकारे वाले टी- शर्ट और जीन्स पहने हमारी बात सुन रहे थे. उनकी शिकायत थी कि मीडिया की वजह से पर्यटक कश्मीर नहीं आ रहे हैं.
एक शिकारा मालिक ने कहा, ‘’जब लोग टीवी देखते हैं, उन्हें लगता है कश्मीर जल रहा है और वहां नहीं जाना चाहिए.’’ उनकी इस बात से बाकी लोग भी सहमत दिखे.
जुलाई 2016 तक- जब बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद कश्मीर में जगह- जगह हिंसा के वारदात हो रहे थे तो भट्ट और दूसरे बोटमैन सैलानियों को सैर कराकर एक दिन में 1000-1500 रुपये की कमाई कर लेते थे.
और अब अगर 400 रुपये भी एक दिन में कमा लें तो खुद को खुशकिस्मत मानते हैं.
कुछ ऐसी ही कहानी श्रीनगर के सिटी सेंटर से 7 किलोमीटर दूर साइदा कादाल रोड पर अली शाह कारपेट्स की भी है. करोड़ों रुपये की लागत से बने कालीन और शॉल गोदामों में भरे पड़े हैं.
मैनेजर रफीक अहमद शाह बताते हैं कि ‘’इस साल घाटी में पर्यटन पूरी तरह से फ्लॉप रहा है और इसकी वजह से हमारा प्रोडक्शन भी. जाड़े में कारीगरों को हमने ऑर्डर दे दिए और गर्मियों में हमारे पास खरीदार नहीं है.’'
हिंसा और पर्यटन का रिश्ता
जम्मू- कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन जीडीपी में 8% का योगदान देता है. 2016 में राज्य में आने वाले पर्यटकों की संख्या 12 लाख 99 हजार के आसपास थी. एक अनुमान के मुताबिक टूरिज्म सेक्टर से तकरीबन 1 लाख लोगों का रोजगार जुड़ा है.
33 एकड़ में फैसला टुलिप गार्डन कश्मीर के टूरिज्म स्पॉट में 2008 से जुड़ा है. नाम न बताने की शर्त पर राज्य के टूरिज्म अधिकारी बताते हैं कि पर्यटन का लॉ एंड ऑर्डर से सीधा कनेक्शन है. हाल के महीनों में नेशनल मीडिया ने घाटी में हिंसा और तनाव की खबरें जोर-शोर से चलाई है, जिसका नतीजा ये हुए है कि महज कुछ हजार पर्यटक ही कश्मीर आए.
इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट में ये तथ्य भी सामने आया है कि कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा हिंसा में पिछले कुछ सालों में कमी आई है लेकिन शहरी हिंसा में इजाफा देखने को मिला है, खासकर पत्थरबाजी में. टूर ऑपरेटर्स और टूरिज्म अधिकारी बताते हैं कि इस तरह के हिंसक वारदात सिर्फ कुछ इलाकों तक ही सीमित हैं और इससे सैलानियों को कोई खतरा नहीं है.
लेकिन कश्मीर आने का मन बनाने वालों के लिए किसी भी तरह की हिंसा, छोटी या बड़ी, चिंता का विषय है. बेंगलुरु के बद्री राघवन ने अपनी पत्नी और तीन बच्चों के संग कश्मीर जाने का प्लान कैंसल कर दिया. टिकट रद्द कराने में पैसे भी काफी लग गए. परिवार ने श्रीनगर के नगीन लेक और सोनमर्ग में होम- स्टे बुक किया था.
राघवन ने बताया, “ऑपरेटर ने हमसे कहा कि वहां सबकुछ सुरक्षित है, लेकिन मुझे अगर 7 दिन की छुट्टी मिली है तो मैं हर पल डर में क्यों रहूं?
1988 तक कश्मीर पर्यटकों के लिए धरती का स्वर्ग था. तकरीबन 7 लाख पर्यटकों का यहां आना- जाना था. लेकिन 1989 में घाटी में हिंसा ने पैर पसारना शुरू कर दिया और पर्यटकों की संख्या घटकर 2 लाख हो गई. उस साल घाटी में 1500 हिंसक वारदात हुए थे जिसमें बम ब्लास्ट और गोलीबारी भी थी.
1990 में 4,211और 1991 में 3,780 हिंसक घटनाएं रिपोर्ट की गईं और पर्यटन औंधे मुंह गिर पड़ा. सिर्फ 6 हजार 287 पर्यटक आए.
1995 में हिंसा में कमी आई, 1996 में चुनाव हुए और सरकार का गठन हुआ. 3 साल में घाटी की तस्वीर बदली तो सैलानियों का भी आना- जाना शुरू हुआ. 1998 में तकरीबन 1 लाख पर्यटकों ने कश्मीर का रुख किया था.
2016 में होटल हाउसफुल, 2017 में सिर्फ 25% बुकिंग
श्रीनगर के दो बड़े होटल के सेल्स अधिकारी बताते हैं कि अप्रैल-जून में होटल बुकिंग पिछले साल के मुकाबले 70-80% कम है. फिलहाल उनके होटलों के 80 कमरों में से सिर्फ 15 कमरे बुक हैं.
कश्मीर जैसी जगह में पर्यटन पूरी तरह से अमन- चैन पर निर्भर है. लेकिन मीडिया में कश्मीर के बारे में झूठी बातें दिखाई जाती हैं जो यहां पर्यटकों को आने से रोक रहा है. सर्दियों में ही टीवी चैनल्स ये भविष्यवाणी करने लगे थे कि मार्च से घाटी में हिंसा और तनाव का माहौल होगा.महमूद अहमद शाह, डायरेक्टर, टूरिज्म
टूर ऑपरेटर्स कहते हैं कि मीडिया कश्मीर बायकॉट के एजेंडे को बढ़ावा दे रहा है. व्हाट्स ऐप पर फर्जी मैसेज भेजे जा रहे हैं कि ‘ऐसी जगह न जाएं जहां तिरंगे को जलाया जाता है’ ऐसे में कौन कश्मीर आना चाहेगा.
द हिंदू की एक रिपोर्ट में एक गुजराती स्टूडेंट कार्यकर्ता रिम्मी वाघेला का कहना है कि ‘’ऑनलाइन एक मुहिम चल रही है जिसमें गुजरातियों को कश्मीर न जाने के लिए कहा जा रहा है.’’
कश्मीर यूनिवर्सिटी के एक असिस्टेंट प्रोफेसर बताते हैं कि हाल में कॉलेज में एक लीडरशिप ट्रेनिंग सेशन का आयोजन हुआ था, उन्होंने राजस्थान के एक अधिकारी से पूछा कि कश्मीर का ख्याल आते ही मन में क्या आता है, तो अधिकारी का जवाब था- आतंकवाद.
‘’हम मीडिया के गलत प्रचार के शिकार हुए हैं’’ नॉर्थ श्रीनगर एक एक होटल के मैनेजर अब्दुल हामिद कहते हैं कि ‘’ पत्थरबाजी की एक घटना कहीं होती है तो वो बार- बार कई दिनों तक टीवी पर दिखाया जाता है. इसपर डिबेट होता है. इससे कश्मीर की नेगेटिव छवि बन रही है.’’
मजदूर या तो बेरोजगार हो जाएंगे या सैलरी कम होगी
कारोबारियों और मालिकों से ज्यादा तो बदहाल पर्यटन इंडस्ट्री ने मजदूरों की कमर तोड़ी है. हामिद बताते हैं कि होटल मालिकों को तो टैक्स में छूट मिल जाती है लेकिन ज्यादातर मजदूरों को या तो नौकरी से हटा दिया जाता है या फिर उनकी सैलरी 50 फीदसी कम कर दी जाती है.
20 साल के शबीर अहमद को मार्च 2015 में श्रीनगर के एक होटल में नौकरी मिली थी. अब उससे कहा गया है कि उसकी सैलरी 60 फीसदी कम कर दी जाएगी.
मैंने घर वापस लौटने का फैसला किया क्योंकि मेरे पास और कोई हुनर नहीं है. अब मैं और दूसरे स्टाफ बस इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि घाटी में पर्यटन जोर पकड़े.शबीर अहमद, होटल स्टाफ
विदेशी पर्यटकों की कमी से और मुश्किल
अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी और फ्रांस जैसे कई देशों ने कश्मीर को लेकर ट्रैवर एडवाइजरी जारी की हुई है.
“हमें विदेशी पर्यटकों से काफी फायदा होता था क्योंकि वो कई दिन, हफ्तों तक रहते थे. अब हमारे हाउसबोट में 3-4 विदेशी पर्यटक हर साल आते हैं’'- तारिक अहमद पलटू, हाउसबोट के मालिक
1990 से 2005 के बीच कश्मीर में विदेशी पर्यटकों की संख्या 20 हजार ही रही लेकिन राज्य में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ने के बाद इनकी तादाद बढ़ी.
2011 और 2012 में विदेशी पर्यटकों की तादाद 32 हजार और 37 हजार के आसपास रही. लेकिन 2013 से फिर विदेशी सैलानियों का आना कम हो गया.
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