“क्या फैसला हुआ? क्या आफरीन* के रेप और हत्या के आरोपी छूट गए?” निराशा भरा ये सवाल मोहम्मद असलम* का है. कठुआ में बर्बर रेप और हत्या की शिकार 8 साल की पीड़ित के पिता का. जब उन्हें बताया गया कि इस मामले में फैसला आना अभी बाकी है, और कुछ ही दिनों में फैसला आ जाएगा. तो वो बार-बार बड़बड़ाते रहे, “मैं चाहता हूं कि उन्हें फांसी हो, मैं चाहता हूं कि उन्हें फांसी हो.”
वो उन सात लोगों की फांसी की बात कर रहे थे, जिन पर उनकी 8 साल की बेटी आफरीन के रेप और हत्या के आरोप में मुकदमा चल रहा है. वो घुमंतू मुस्लिम गुज्जर बकरवाल जनजाति के हैं. उन्होंने आफरीन को अपने घोड़ों को जंगल से लाने के लिए भेजा था. उसी समय उसका अपहरण कर लिया गया था.
10 से 17 जनवरी 2018 तक उसे नशीली दवाएं खिलाकर लगातार हवस का शिकार बनाया जाता रहा. एक मंदिर में हफ्ते भर उसके साथ बर्बर और घिनौनी हरकत करने के लिए उसे मौत के घाट उतार दिया गया.
17 जनवरी की सुबह कठुआ के रासना जंगलों में मंदिर से करीब 500 मीटर दूर एक हिन्दू जनजाति ने उसकी लाश देखी.
असलम का खाली घर अब भी गार्ड की निगरानी में है
पहले मुख्य आरोपी सांजी राम के वकील एके साहनी ने द क्विंट को बताया कि 4 जून को फैसला आएगा. लेकिन इस मामले पर नजर रखने वाले एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ये जानकारी गलत है. बाद में कठुआ पीड़ित के वकील ने स्पष्ट किया कि इस मामले में 10 जून की सुबह 10 बजे पठानकोट की निचली अदालत में फैसला सुनाया जाएगा.
घुमन्तू जनजाति का असलम हर साल अपने पशुओं के साथ जम्मू के कठुआ जिले से कश्मीर के करगिल तक घूमता है. उसका परिवार सर्दियों में करीब पांच-छह महीने तक जम्मू में अपने पशुओं के साथ अपने घर में रहता है और फिर गर्मियों में करगिल की ओर निकल जाता है. लिहाजा इस वक्त उसका घर खाली है.
असलम कठुआ से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर किश्तवाड़ में है. आफरीन की मां नीमत पहले ही अपने रिश्तेदारों के पास कश्मीर में है. घर खाली है, लेकिन घर के बाहर सुरक्षा गार्ड तैनात हैं. उसका घर रासना गांव के बेहद नजदीक है. आरोपी इसी गांव के रहने वाले हैं. फिर भी असलम अनमने भाव से कहता है:
“मुझे अपने घर और जमीन-जायदाद की चिन्ता नहीं है. मैं चाहता हूं कि हमारी बेटी आफरीन की बर्बर हत्या का बदला लिया जाए.”
हिन्दू एकता मंच का गुस्सा बढ़ेगा, अगर फैसला उनके मन मुताबिक नहीं आया
हिन्दू एकता मंच के अध्यक्ष विजय शर्मा ने मामले की जांच क्राइम ब्रांच से कराने का भरपूर विरोध किया था. मंच के उपाध्यक्ष कांत कुमार ने कहा, “हिन्दू समुदाय के करीब 500 सदस्य 23 जनवरी 2018 को नेशनल हाइवे पर स्थित परशुराम मंदिर पर जमा हुए. उनकी एक ही मांग थी – कठुआ रेप मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए. इस प्रकार हिन्दू एकता मंच का जन्म हुआ था.”
इस मंच ने जांच को ‘उत्पीड़न’ बताया और सीबीआई जांच की मांग करते हुए घटना के महीनों बाद तक प्रदर्शन करते रहे. उन्होंने जम्मू और कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली बीजेपी-पीडीपी की तत्कालीन सरकार पर जांच में मुस्लिम घुमंतू जनजाति का पक्ष लेने का आरोप लगाया और चेतावनियां भी दीं.
फैसला आने से पहले शर्मा का आरोप है, ‘’कठुआ के हिन्दुओं में भय समाया हुआ है. वो जानते हैं कि झूठे मामले में निर्दोष लोगों को लपेटा जा रहा है.’’
जब पूछा गया कि अगर मन मुताबिक फैसला नहीं आया, तो क्या मंच फिर विरोध प्रदर्शन करेगा, तो शर्मा ने कहा:
“मैं उस पर अभी बयान नहीं देना चाहता. लेकिन एक बात तय है. जब से ये मामला सामने आया है, लोगों में गुस्सा भरा हुआ है.”
मंच के उपाध्यक्ष कांत कुमार ने द क्विंट को बताया कि रासना गांव के लोग उदास हैं. ज्यादातर आरोपी इसी गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा, “हमें इस फैसले से कोई उम्मीद नहीं. जब सीबीआई जांच की हमारी मांग ठुकरा दी गई, तो कुछ बचा ही नहीं रहा. क्राइम ब्रांच की जांच पर हमें भरोसा नहीं है.”
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया था और मई 2018 में मामले को जम्मू से हटाकर पंजाब के पठानकोट की निचली अदालत में सुनवाई का आदेश दिया था. हालांकि ये स्पष्ट है कि अगर इस कोर्ट ने भी सांजी राम और दूसरे आरोपियों को दोषी ठहरा दिया, तो रासना के हिन्दू इस फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे.
ये क्राइम ब्रांच और उसकी जांच पर उनके विरोध की एक और मिसाल होगी, जिस पर उन्हें बिलकुल भरोसा नहीं है. दूसरी ओर आफरीन के पिता रासना के नजदीक अपनी जमीन-जायदाद तक भूल जाने को तैयार हैं.
मुस्लिम घुमंतुओं की उम्मीदें कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं. दूसरी ओर हिन्दुओं का आरोप है कि जिन सबूतों के आधार पर फैसला आएगा, उन्हें तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है.
साल 2018 के इस मामले ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई गहरी कर दी थी. अब हर कोई फैसले के लिए 10 जून की बाट जोह रहा है, जिस पर विभिन्न समुदायों की प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी.
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