‘हे सरकार, हमें हमारा फ्लैट दिला दो’- गरीबों की गुहार
- 2010- दिल्ली सरकार ने केंद्र की योजनाओं की मदद से दिल्ली की झुग्गियों में रह रहे गरीबों के लिए 27, 344 फ्लैट बनाए.
- 2016- तकरीबन 6 साल बाद भी इनमें से 26,288 1BHK और 2BHK फ्लैट्स खाली पड़े हैं और गरीब सड़कों पर रहने को हैं मजबूर.
- जेजे कलस्टर में रहने वाले गरीबों को दिए जाने थे ये फ्लैट.
- शीला सरकार ये फैसला ही नहीं कर पाई कि कौन है गरीब?
- केजरीवाल सरकार ने 2 साल में सिर्फ कोशिश की है.
- दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड रिलोकेशन में जुटा, लेकिन रफ्तार काफी धीमी.
- सिर्फ 4 हजार लोगों को अभी तक शिफ्ट कराया गया है.
- 16 हजार खाली मकान ‘द क्विंट’ के कैमरे में कैद
- बवाना, बपरौला, घोघा और द्वारका में बने हैं ये फ्लैट
सरकार को पिछले 8 साल में गरीब ही नहीं मिले!
देश की राजधानी दिल्ली में गरीबों के साथ ऐसा मजाक होगा, तो देश के बाकी हिस्सों में उनकी क्या हालत होगी, इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. पिछले 6-8 सालों में दिल्ली की सरकारों ने ‘शहरी गरीबों’ के लिए क्या किया है, इसकी एक बानगी हम अपनी स्टोरी के जरिए आपके सामने पेश कर रहे हैं.
वजह:
सरकार की लापरवाही से प्रकिया काफी धीमी पड़ गई, अलॉटमेंट के लिए ठोस प्लान नहीं, युद्धस्तर पर होना चाहिए था काम.
2009 में ही दिल्ली के एलजी ने झुग्गियों के सर्वे के बाद सरकार का प्रस्ताव लौटा दिया था. फिर 2009 के बाद दिल्ली सरकार इन फ्लैट्स को पूरी तरह से तैयार होने का इंतजार करती रही और 2013 में सरकार ही चली गई.
बवाना
बपरौला
घोघा
द्वारका
किसने, किसके लिए बनाए थे ये फ्लैट?
साल 2007 में शीला दीक्षित सरकार ने ये फैसला किया कि वो दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के लिए पक्के मकान बनाएगी. कांग्रेस सरकार के इस फैसले को केंद्र सरकार की योजनाओं (JNNURM, RAY) का साथ मिला.
2010 तक बवाना, द्वारका, बपरौला और घोघा में 27, 344 फ्लैट्स बनकर तैयार हो गए. मकानों का अंबार लग गया, सोसायटी के अंदर पार्क, प्ले ग्राउंड तक की प्लानिंग हो गई और मैरिज हॉल तक बनकर तैयार हो गए.
कांग्रेस की सरकार गई, केजरीवाल आए
इसके बावजूद ये मकान घर नहीं बन पाए. 2 साल बीत चुके हैं और दिल्ली सरकार की बॉडी दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड का ये कहना है कि उन्हें तो अलॉटमेंट का पूर्ण अधिकार 2015 में दिया गया है.
पिछले साल जब नई सरकार बनी, तो बोर्ड मीटिंग में उन्होंने फैसला लिया कि इन फ्लैट्स का अलॉटमेंट DUSIB करेगा. हमने प्रक्रिया शुरू कर दी है और अलॉटमेंट देना भी शुरू कर दिया है. कुछ कलस्टर्स (झुग्गियों) की पहचान की गई है और बाकियों के लिए सर्वे चल रहा है.बिपिन राय, मेंबर, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड
लेकिन दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के कुछ अधिकारियों की राय इससे अलग है. इन मकानों को बनाने की प्रक्रिया में शामिल DUSIB के एक इंजीनियर नाम न छापने के शर्त पर हमें बताते हैं,
कुछ कीजिए, आपलोग इस बारे में, आपको पता है शहर की आबादी के बीच एक सोसाएटी बसाना कितना मुश्किल है. नई तकनीक और सीमित बजट में हमने ये मकान बनाए हैं. लेकिन अलॉटमेंट डिपार्टमेंट की सुस्ती की वजह से हजारों मकान खाली पड़े हैं. बहुत धीमी प्रक्रिया है. अभी तो वो मकान हैं,जब अलॉटमेंट डिपार्टमेंट वहां परिवार को बसाएगा, तभी तो वो मकान घर बनेंगे.सीनियर इंजीनियर, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड
तो फिर कौन है जिम्मेदार?
DUSIB: जिसके जिम्मे अब ये अलॉटमेंट हैं, उसने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें तो 2015 में रिलोकेशन का पूर्ण अधिकार मिला है.
शहरी विकास मंत्री- मनीष सिसोदिया: द क्विंट ने इस बाबत बात करने की कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला.
पूर्व शहरी विकास मंत्री- अजय माकन: द क्विंट ने उन्हें भी कॉल किया, लेकिन उनकी तरफ से भी इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
किस हालत में रहते हैं दिल्ली के गरीब?
- दिल्ली की 49 फीसदी आबादी झुग्गियों में रहती है.
- दिल्ली में ताजा आंकड़ों के मुताबिक 4 लाख 20 हजार झुग्गियां हैं.
- 20 फीसदी झुग्गी नालों के किनारे हैं, जहां मलेरिया और डेंगू होने का खतरा सबसे ज्यादा.
- एक-चौथाई झुग्गियों में बाथरूम की सुविधा नहीं है.
ऐसे में झुग्गियों में रहने वाले ‘शहरी गरीब’ बस यही मांग कर रहे हैं कि अगर उनके लिए घर बनाए हैं, तो उन्हें जल्द से जल्द वहां शिफ्ट कर दिया जाए. जिन्हें घर अलॉट हो गए हैं, उनकी भी यही गुहार है कि फ्लैट्स की चाबी उन्हें दे दी जाए.
सर, हमें तो लगता है कि अब हमें घर 2022 में ही मिलेगा या चुनाव से पहले अगर हम लकी हुए तो कोई पार्टी दे दे.सदानंद, गोल मार्केट झुग्गी के निवासी
दिल्ली सरकार और दिल्ला शहरी आश्रय सुधार बोर्ड को ये समझना होगा कि पक्के मकान इन गरीबों की जरूरत है. घोघा के 4000 फ्लैट्स तो पहले से ही जर्जर हालत में हैं. अगर समय रहते यहां गरीबों को न बसाया गया, तो ये फ्लैट्स भी खंडहर में तब्दील हो जाएंगे और गरीब फिर झुग्गियों में ही रहने को मजबूर हो जाएंगे.
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