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'उसे खतरों का अंदाजा था...': इजरायल में मारे गए केरल के व्यक्ति के परिजन का अंतहीन इंतजार

निबिन बारहवीं तक पढ़े थे और उनके पास ट्रेड की डिग्री भी थी. लेकिन परिवार की माली हालत की वजह से उन्हें युद्धगस्त इलाके में नौकरी के लिए जाना पड़ा.

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भारत
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"निबिन दिसंबर के बीच में काम के लिए इजरायल चले गए. बेशक, वह खतरों को जानते थे लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि घर के मुश्किल भरे दिन थे."

केरल के कोल्लम की मूल निवासी अम्मू अपने 31 साल के देवर पैट निबिन मैक्सवेल की मौत का जिक्र द क्विंट से करती हैं. पैट निबिन मैक्सवेल सोमवार, 4 मार्च को उत्तरी इजरायल के मार्गालियट में एक बगीचे के पास एक मिसाइल हमले में मारे गए थे.

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निबिन इजरायल-लेबनान सीमा के पास एक खेत में खेतिहर मजदूर के तौर पर काम करते थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी और उनकी पांच साल की बेटी है. पत्नी सात महीने की गर्भवती है.

केरल के इडुक्की के दो अन्य लोग 28 साल के पॉल मेल्विन और 31 साल के बुश जोसेफ जॉर्ज भी हमले में घायल हो गए. ये हमला कथित तौर पर लेबनान में हिजबुल्लाह की ओर से दागी गई एंटी-टैंक मिसाइल से किया गया था. घायलों का इजराइल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है.

अम्मू के पति और निबिन के बड़े भाई पैट निविन मैक्सवेल भी उनसे एक सप्ताह पहले दिसंबर 2023 में इजरायल गए थे. हालांकि वे इजरायल के किसी दूसरे हिस्से में काम कर रहे थे. दोनों ने जंग की शुरुआत के दो महीने बाद इजरायली सरकार की ओर से पेश किए गए कृषि वीजा के लिए आवेदन किया था.

इजरायल अपने देश से फिलिस्तीनी कामगारों को हटाते हुए भारतीय कामगारों को उनकी जगह दे रहा है. इसके तहत इजरायली सरकार ने कंस्ट्रक्शन, देखभाल और कृषि क्षेत्रों में श्रम के लिए भारत की ओर रुख किया था.

रिपोर्टों के अनुसार, अक्टूबर 2023 से गाजा पर इजरायल के युद्ध में फिलीस्तीनियों के मौत का आंकड़ा 30,000 को पार कर गया है. कथित तौर पर मारे गए लोगों में से 25,000 से ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं.

'कोरोना के दौरान उसकी नौकरी चली गई…'

निबिन अपनी पत्नी, बेटी, माता-पिता, बड़े भाई और अपने परिवार के साथ कोल्लम जिले के एक गांव वादी-थागास्सेरी में रहते थे. उनके छोटा भाई अबू धाबी में काम करते हैं.

टेलिफोन पर द क्विंट से बात करते हुए अम्मू कहती हैं कि उनके पति ने उन्हें सोमवार दोपहर इजराइल से फोन किया और मिसाइल हमले में निबिन के जख्मी होने की खबर दी. उसी रात, कुछ देर बाद ही, परिवार को पता चला कि उनका निधन हो गया.

अम्मू कहती हैं, "निबिन और मेरे पति दोनों कुछ साल पहले तक सप्लाई वीजा पर खाड़ी में थे लेकिन कोविड-19 के दौरान अपनी नौकरी खोने के बाद उन दोनों को घर लौटना पड़ा. उन्होंने यहां छोटी-मोटी नौकरियां करने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तभी उन्होंने फिर से विदेश जाने का फैसला किया."

निबिन बारहवीं तक पढ़े थे और उनके पास ट्रेड की डिग्री भी थी. अम्मू कहती हैं, "दोनों भाई इजरायल माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से गए थे. निबिन का एक बच्चा है और दूसरा आने वाला है. मुझे नहीं पता मैं इसे कैसे बयां करूं."

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अम्मू ने कहा कि घटना के बाद निबिन की मां को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. उन्होंने कहा, "खबर सुनने के बाद से वह बीमार पड़ गई हैं और अब अस्पताल में हैं. उन्हें गहरा सदमा लगा है."

उन्होंने क्विंट को बताया कि उनके पति कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद शनिवार, 9 मार्च को निबिन के शव को वापस केरल लेकर आएंगे.

भारत में इजरायली दूतावास ने 5 मार्च को एक्स पर पोस्ट में लिखा, "हम कल दोपहर मार्गालियट के उत्तरी गांव में एक बगीचे की खेती कर रहे शांतिपूर्ण कृषि श्रमिकों पर शिया आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह की ओर से किए गए कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले के कारण एक भारतीय नागरिक की मौत और दो अन्य के घायल होने से बहुत स्तब्ध और दुखी हैं."

इस बीच इजरायल में भारतीय दूतावास ने घटना के बाद एक एडवाइजरी जारी की है जिसमें कहा गया है, "मौजूदा सुरक्षा स्थिति और स्थानीय सुरक्षा एडवाइजरी के मद्देनजर इजरायल में सभी भारतीय नागरिक विशेष रूप से उत्तर और दक्षिण में सीमावर्ती क्षेत्रों में काम करने वाले या आने वाले लोगों को इज़राइल के भीतर सुरक्षित क्षेत्रों में जाने की सलाह दी जाती है. दूतावास हमारे सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इजरायली अधिकारियों के संपर्क में है."

इजरायल की ओर से गाजा पर जंग के ऐलान के बाद 8 अक्टूबर 2023 से हिजबुल्लाह हमास के समर्थन में इजरायल पर रॉकेट और मिसाइलें दाग रहा है.

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इजरायल क्यों जा रहे हैं भारतीय?

इंडियन एक्सप्रेस ने अज्ञात स्रोतों के हवाले से कहा है कि नवंबर 2023 में इजरायल ने कंस्ट्रक्शन, स्वास्थ्य सेवा और कृषि क्षेत्रों में रोजगार वीजा की पेशकश शुरू की और दिसंबर 2023 तक लगभग 800 भारतीय नागरिक इजरायल चले गए.

9 नवंबर को तत्कालीन विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत और इजरायल के बीच देखभाल करने वालों, निर्माण और कृषि श्रमिकों के लिए एक द्विपक्षीय ढांचा "एक दीर्घकालिक पहल है."

मई 2023 में दोनों देशों ने 42,000 भारतीय श्रमिकों को इजरायल में काम करने की इजाजत देने के लिए एक समझौता किया था.

हालांकि 15 जनवरी को विदेश मंत्रालय को लिखे एक पत्र में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने तर्क दिया था कि भारतीय नागरिकों को "जंग के इलाके" में भेजना उचित नहीं है.  

इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने कहा था कि यह घटनाक्रम " देश में रोजगार पैदा करने की विफलता को दर्शाता है."

क्विंट ने जनवरी में रिपोर्ट दी थी कि कैसे बेरोजगार भारतीय युवा इजरायल के वर्कफोर्स में शामिल होने के लिए हरियाणा के रोहतक और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कतार में खड़े थे.

"बेरोजगारी और गरीबी से हताश आम लोगों को इजरायल के साथ प्रधानमंत्री मोदी की मित्रता की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी."
AITUC ने कहा था
AITUC महासचिव अमरजीत कौर ने तब द क्विंट को बताया था, "हमारा पहला तर्क यह है कि वहां भेजे जा रहे श्रमिकों को कोई सुरक्षा का वादा नहीं किया जा रहा है और दूसरा यह है कि भारतीय श्रमिक इजरायल में फिलिस्तीनियों की जगह ले लेंगे. ऐसा करने से क्या भारत इजरायल की नरसंहार की राजनीति में भागीदार नहीं बनेगा?"

विशेषज्ञ शोधकर्ता और लंदन स्थित गैर-लाभकारी संगठन फेयरस्क्वेयर के प्रवासी श्रमिक अधिकारों के वकील उस्मान जावेद ने द क्विंट को बताया था कि भारतीय श्रमिकों को इजरायल भेजना देश की विदेश नीति का उल्लंघन होगा जो तब तक मांग कर रहा था एक युद्धविराम.

उस्मान जावेद कहते हैं, "युद्ध की वजह से इजरायल की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है. ठेकेदारों की हालत खस्ता है. अब जब इजरायल पर जंग रोकने के लिए आंतरिक दबाव बढ़ रहा है तो भारत उसे श्रमिक उपलब्ध कराकर सक्षम बना रहा है."

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