केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ को लिखा है कि जजों की नियुक्तियों पर फैसला करने वाले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम (Collegium system) में सरकार के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए. कानून मंत्री ने एक पत्र में कहा यह "पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही को बढ़ावा देगा." पत्र को लेकर राजनीति पार्टियों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया है. ऐसे में समझाते हैं कि आखिर ये पूरा विवाद क्या है?
NJAC पर सरकार का जोर: किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम प्रणाली को संविधान के लिए "विदेशी" कहा है और ऐसी किसी भी प्रणाली पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें सरकार को न्यायाधीशों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख है?: सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली का दृढ़ता से बचाव किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कॉलेजियम प्रणाली "लॉ ऑफ द लैंड" है जिसका "सख्ती से पालन" किया जाना चाहिए. यह कानून सिर्फ इसलिए खत्म नहीं होगा कि, "समाज के कुछ वर्गों ने कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ विचार व्यक्त किया है."
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल, केएम जोसेफ, एमआर शाह, अजय रस्तोगी और संजीव खन्ना शामिल हैं.
विपक्ष का रुख: आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट में सरकार के पत्र को "खतरनाक" बताया. उन्होंने ट्वीट किया, "यह बेहद खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल भी सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए."
जिसके जवाब में केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने लिखा कि, "मुझे आशा है कि आप अदालत के निर्देश का सम्मान करेंगे!"
कांग्रेस, तृणमूल और आप जैसे विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट का समर्थन किया है.
NJAC बनाम कॉलेजियम सिस्टम
NJAC क्या है? संविधान के (99वां संशोधन) अधिनियम ने एनजेएसी और एनजेएसी अधिनियम की स्थापना की थी. 2014 में संसद द्वारा कॉलेजियम प्रणाली की जगह जजों की नियुक्ति के लिए एक आयोग स्थापित करने के लिए इसे पारित किया गया था. इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका अनिवार्य रूप से बढ़ जाएगी.
NJAC में कौन-कौन होगा शामिल?: NJAC में पदेन अध्यक्ष के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश, पदेन सदस्यों के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, पदेन सदस्य के रूप में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री और नागरिक समाज के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे. इनमें से एक को CJI, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली एक समिति द्वारा नामित किया जाएगा और दूसरे को SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक समुदायों या महिलाओं से नामित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें रद्द करने के बाद अक्टूबर 2015 में कानूनों को निरस्त कर दिया गया था.
कॉलेजियम सिस्टम क्या है?: सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली का नेतृत्व CJI (भारत के मुख्य न्यायाधीश) करते हैं और इसमें अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं. एक उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और उस अदालत के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं. हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से ही की जाती है और कॉलेजियम द्वारा नाम तय किए जाने के बाद ही सरकार की भूमिका होती है.
सरकार कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ क्यों?: कॉलेजियम प्रणाली की जड़ें संविधान में नहीं हैं. इसके बजाय, यह सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के माध्यम से विकसित हुआ है.
इस प्रणाली में अगर किसी वकील को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया जाना है, तो सरकार की भूमिका इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) द्वारा जांच कराने तक ही सीमित है. सरकार आपत्तियां भी उठा सकती है और कॉलेजियम की पसंद के बारे में स्पष्टीकरण मांग सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम उन्हीं नामों को दोहराता है तो संविधान पीठ के फैसलों के तहत सरकार उन्हें पद पर नियुक्त करने के लिए बाध्य है.
(इनपुट्स - इंडियन एक्सप्रेस)
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