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RTI के दायरे में आए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस,कौन-कौन इससे बाहर?

जानिए - क्या है सूचना का अधिकार, अधिनियम-2005 ?

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चीफ जस्टिस का कार्यालय सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में आता है. कोर्ट ने कहा, "पारदर्शिता और जवाबदेही को साथ-साथ चलना चाहिए और चीफ जस्टिस का ऑफिस आरटीआई के दायरे में है. क्योंकि पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करती है."

कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सवाल उठता है कि आखिर RTI एक्ट के दायरे में कौन आता है और कौन सी सूचनाएं इस अधिनियम से बाहर हैं.

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RTI के दायरे में कौन-कौन आता है?

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद और राज्य विधानमंडल के साथ ही सीजेआई ऑफिस, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों और उनसे संबंधित पदों को सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है.

कौन सी सूचनाएं RTI के दायरे में नहीं आती हैं?

  • ऐसी कोई सूचना जिसके सार्वजनिक होने से भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो.
  • ऐसी सूचना, जिसके प्रकाशन को किसी न्यायालय या अधिकरण ने अभिव्यक्त रूप से निषिद्ध किया हो या जिसके प्रकटन से न्यायालय की अवमानना होती हो
  • सूचना, जिसके प्रकटन से संसद या किसी राज्य के विधान मंडल का विशेषाधिकार भंग होता हो.
  • सूचना, जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा शामिल है, जिसके प्रकटन से किसी व्यक्ति की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता हो
  • सूचना, जिसको प्रकट करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरा होता हो.
  • सूचना, जिससे अपराधियों की जांच, पकड़े जाने या अभियोजन की प्रक्रिया में अड़चन पड़ेगी
  • मंत्रिमंडल के कागज पत्र, जिसमें मंत्रि परिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श शामिल हैं
  • सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या हित से संबंध नहीं रखता है या जिससे व्यक्ति की एकांतता पर अनावश्यक अतिक्रमण होता हो.
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क्या है सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 ?

सूचना का अधिकार या राइट टू इन्फॉर्मेशन (RTI) एक्ट, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है. इसका मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाने, सरकार के कार्य में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना है. RTI को काफी हद तक भ्रष्टाचार कंट्रोल करने के हथियार के तौर पर भी देखा जाता है.

RTI एक्ट को पहली बार 15 जून 2005 को अधिनियमित किया गया और 12 अक्टूबर, 2005 को इसे पूरी तरह से लागू कर दिया गया.

इस कानून को इसलिए लाया गया था, ताकि देश के हर नागरिक को प्रशासन से जरूरी जानकारी मिल सके. इतना ही नहीं नागरिकों को मिला सूचना का अधिकार सरकार की जवाबदेही तय करता है.

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