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'बेटे ने ख्वाबों की कीमत चुकाई': कोटा में सुसाइड से जान गंवाने वाले स्टूडेंट के पिता

रंजीत सिंह उन 29 स्टूडेंट्स में से एक था, जिसकी 2023 में कोटा के कुख्यात कोचिंग फैक्ट्री में सुसाइड से मौत हो गई थी

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(ट्रिगर वॉर्निंग: इस स्टोरी में खुदकुशी से होने वाली मौत की चर्चा की गई है.)

रति भान सिंह उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रयागराज (Prayagraj) जिले के राजरूपपुर गांव के एक रियल एस्टेट प्रॉपर्टी डीलर हैं. वो 29 जनवरी 2023 को राजस्थान के कोटा जाने के लिए ट्रेन में चढ़ रहे थे. रति भान का 22 साल का बेटा रंजीत सिंह, अगस्त 2022 से एलन कैरियर इंस्टीट्यूट में राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा यानी NEET की तैयारी कर रहा था.

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रति भान सिंह ट्रेन में अकेले चढ़े थे, उनकी जेब में घर वापस आने के लिए दो टिकट थे. उनके पास अपने बेटे के लिए एक सरप्राइज था. वह न सिर्फ रणजीत से मिलने जा रहे था, बल्कि उसे वापस घर भी ले जाना चाहते थे. लेकिन सरप्राइज बेटा रंजीत नहीं, खुद रति भान सिंह हुए.

30 जनवरी की दोपहर, लगभग 02 से 2:30 बजे के बीच जब रति भान सिंह कोटा के कुन्हारी में रंजीत के हॉस्टल पहुंचे और उसके कमरे में घुसे, तो उन्होंने अपने बेटे की लाश देखी.

रंजीत उन 29 स्टूडेंट्स में से एक था, जिसकी 2023 में कोटा में खुदकुशी से मौत हो गई- कुख्यात कोचिंग फैक्ट्री में कम से कम आठ सालों में छात्रों की खुदकुशी से मौत के मामले सबसे ज्यादा 2023 में ही दर्ज किए गए.

रंजीत की मौत के लगभग एक साल गुजर जाने के बाद भी परिवार अपने बच्चे को खोने की त्रासदी से जूझ रहा है.

कानपुर से कोटा तक: मेडिकल ख्वाबों का पीछा

राजरूपपुर में जन्मा और पला-बढ़ा रंजीत एक मिलनसार परिवार से आता था. उसके माता-पिता ने कहा कि रंजीत के लिए उसका छोटा भाई आयुष (17 साल), उसकी मां रंजना और उसके पिता ही पूरी दुनिया थे.

हालांकि एक और ख्वाब था. रंजीत हमेशा से डॉक्टर बनना चाहता था. पिता रति भान सिंह को यह याद नहीं है कि रंजीत को कहां या किस चीज ने इसके लिए प्रेरित किया, लेकिन उन्होंने द क्विंट को बताया कि डॉक्टर बनना ही एकमात्र ऐसी चीज थी, जो रंजीत करना चाहता था. उसका कोई और प्लान नहीं था.

अगस्त 2022 में कोटा जाने से पहले, रंजीत ने दो साल तक कानपुर के न्यू लाइट इंस्टीट्यूट में तैयारी की थी. वह पहले भी तीन बार एग्जाम दे चुका था.

जब रंजीत ने पहली बार कोटा जाने की बात अपने परिवार के सामने रखी, तो उनके पिता को इस पर फैसला लेने में कुछ वक्त लग गया.

"मैंने उससे कहा कि वह इतनी दूर न जाए, कहीं नजदीक जाने का विकल्प चुने. मैंने उससे कहा कि वह कानपुर में ही रह सकता है लेकिन उसने कहा कि कोटा सबसे अच्छी जगह है. वह जाने को लेकर बहुत जिद्दी था. वह अपनी इच्छा से कोटा गया था."
पिता रति भान सिंह

द क्विंट के साथ कई बातचीत में, जब भी पिता से सवाल किया गया कि रंजीत कैसा था, उनका एक ही जवाब था... सीधा, मासूम और विनम्र.

रति भान सिंह कहते हैं कि उन्हें यकीन है कि पड़ोस में रहने वाले ज्यादातर छात्र रंजीत को नहीं जानते होंगे क्योंकि वह बहुत ही शांत लड़का था. वो आगे कहते हैं कि रंजीत हमेशा किताबें पढ़ता रहता था. अगर उसके पास कभी कुछ खाली वक्त होता, तो वह टेलीविजन देखता था.

यही वजह है कि रंजीत के अपने होमटाउन में केवल एक या दो दोस्त थे और कथित तौर पर उसके पिता के मुताबिक कानपुर और कोटा में उसका कोई दोस्त नहीं था.

कोटा में भी वो एक कमरे में अकेले रहता था. उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, पिता रति भान अपने बेटे की बॉडी देखने वाले पहले शख्स थे.

रति भान सिंह कहते हैं कि रंजीत परिवार में एकमात्र ऐसा लड़का था, जिसके ख्वाब बहुत बड़े थे.

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रैंक हासिल करने की अंधी दौड़

जब रंजीत कोटा के लिए रवाना हो रहा था, तो उसे यकीन था कि वह अगली कोशिश में NEET का एग्जाम क्वालिफाई कर लेगा.

फिर क्या गलत हुआ?: रति भान सिंह का आरोप है कि इसकी वजह कोचिंग संस्थान जिस तरह से काम करते हैं, वह है. खुदकुशी से मौत से पहले, रंजीत कुछ दिनों तक क्लास नहीं गया था.

कोचिंग के माहौल से वह परेशान हो गया था. वहां वे छात्रों को उनकी रैंक के आधार पर बांटते हैं. बेहतर रैंक वाले छात्रों को बेहतर शिक्षक मिलते हैं. अगर छात्र बराबर फीस दे रहे हैं, तो ऐसा क्यों किया गया? इससे वास्तव में छात्रों के मनोबल पर असर पड़ता है और उन पर दबाव भी पड़ता है. गलती कोचिंग संस्थानों की है. मैं कभी किसी को अपने बच्चों को कोटा भेजने की सलाह नहीं दूंगा.
पिता रति भान सिंह

27 सितंबर 2023 को, कोटा में छात्रों के खुदकुशी से मौत के मामलों की तादाद के बीच, अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली तात्कालिक राजस्थान सरकार ने छात्रों पर मानसिक दबाव को कम करने के लिए कोचिंग संस्थानों के लिए दिशानिर्देश जारी किए.

दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संस्थान, छात्रों को उनकी रैंक या उनके टेस्ट में मिले मार्क्स के आधार पर "विशेष बैच" में नहीं बांट सकते हैं.

रंजीत के परिवार के लिए दुख की बात है कि ये दिशानिर्देश आठ महीने देर से आए.

जब द क्विंट ने एलन करियर इंस्टीट्यूट से संपर्क किया, तो उन्होंने जवाब दिया, "NEET में, बैचों को बांटने (वर्गीकरण) की प्रथा को COVID से पहले ही बंद कर दिया गया है. यह सरकारी अधिकारियों को लिखित रूप में भी प्रस्तुत किया गया है. एडमिशन पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दिए जाते हैं. साल के बीच बैचों में कोई फेरबदल नहीं किया जाता है. हम सरकारी आदेशों का पूरी तरह से अनुपालन कर रहे हैं और कई सरकारी अथॉरिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.''

दूसरी तरफ पिता का कहना है कि रंजीत ने कभी शिकायत नहीं की. लेकिन कुछ मौकों पर उसने अपने पिता को बताया था कि रैंक के आधार पर इस अलगाव का उसपर कितना प्रभाव पड़ रहा है.

रति भान सिंह कहते हैं कि एक या दो बार उसने मेरे सामने कबूल किया, 'अब यहां पढ़ने का मतलब नहीं है.' लेकिन मैंने उससे कहा, 'अब गए हो तो ये साल कर लो, उसके बाद चले आना.' मैंने उससे कहा कि हम कोई रास्ता निकाल लेंगे.

अपने बेटे को सांत्वना देने के बाद भी, रति भान सिंह ने अपने बेटे को घर वापस लाने के लिए टिकट बुक करवा लिया था. लेकिन उस टिकट का प्रयोग नहीं हो सका.

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उसके आखिरी शब्द का क्या मतलब था?

रंजीत अक्सर अपने परिवार से बात करता था. आखिरी बार रति भान सिंह ने उससे सुसाइड से एक दिन पहले, 28 जनवरी 2023 को बात की थी. जब पिता ने उससे पूछा था कि क्या उसे कोई परेशानी हो रही है, तो रणजीत ने अपने आखिरी शब्द कहे थे. “नहीं, आप आ जाइए"

लेकिन रंजीत, अपनी वो बातें परिवार को नहीं बता सका, जो वो अपनी जिंदगी के आखिरी के वक्त में सोच रहा था. 22 वर्षीय रंजीत ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था.

जनवरी 2023 में PTI की एक रिपोर्ट में DSP शंकर लाल के हवाले से कहा गया था कि रंजीत के कमरे से बरामद 4-5 पेज के सुसाइड लेटर में उसने "अध्यात्म, डिप्रेशन और देवी-देवताओं के बारे में लिखा था."

जब द क्विंट ने अक्टूबर 2023 में उनसे पत्र के बारे में पूछा था, तो रतिभान सिंह ने केवल इतना कहा था- “उसने छोड़ा था लेटर, पर उसका कुछ मतलब हुआ नहीं, हमें नहीं समझ आया.

द क्विंट ने उस लेटर के लिए राजस्थान पुलिस को लिखा है.

रंजीत की मौत के बाद पोस्टमार्टम हुआ और पुलिस ने रूटीन जांच की. लेकिन उनके परिवार ने पुलिस के पास कोई शिकायत दर्ज नहीं करने का फैसला किया.

“वैसे भी इसका क्या फायदा होगा, जब मैंने अपना बच्चा पहले ही खो दिया था? हम सब उसे बहुत याद करते हैं, अब और क्या करने को रह गया है?”
पिता रतिभान सिंह

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