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भारत के ‘लाल’ जिनकी ‘बहादुरी’ ने 1965 वॉर में रखी थी लाज

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के अनुसार लालबहादुर शास्त्री ही भारत-पाक के बीच दरार पाटने में सक्षम थे.

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भारत
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भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भारतीय उपमहाद्वीप में शांति का भरोसा था, इसलिए उन्होंने ताशकंद में 51 साल पहले 11 जनवरी को पाकिस्तान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

लेकिन उसी दिन उनकी रहस्यमय परिस्थियों में मौत हो गई. आज आधी शताब्दी से ज्यादा दिन बीत जाने के बावजूद उनकी मौत की जांच नहीं हो पाई है. ये बातें वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने बताईं थीं. उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के साथ लंबे समय तक काम किया था. नायर जो कि शास्त्री के मीडिया सलाहकार भी थे, के अनुसार

शास्त्रीजी बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि के थे. उन्हें इस बात का पूरा भरोसा था कि पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध सुधर सकते हैं, लेकिन चीन के साथ नहीं.
कुलदीप नैयर, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के अनुसार लालबहादुर शास्त्री ही भारत-पाक के बीच  दरार पाटने में सक्षम थे.
(फोटो साभार: Flipkart)

उन्होंने कहा कि शास्त्रीजी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान को ताशकंद समझौते के पहले मसौदे में ‘हथियारों के सहारे के बिना’ लिखने को मजबूर किया था.

इस समझौते के तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि उनकी सेनाएं 5 अगस्त, 1965 की पहले की स्थिति पर लौट आएंगी. इसी दिन 1947 के बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच दूसरी बार लड़ाई शुरू हुई थी.

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अयूब खान झुकने को राजी थे, लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्री भुट्टो (जुल्फिकार अली) ने उन्हें धमकाया कि वे देश में उन्हें देख लेंगे. शास्त्रीजी की मौत के बाद भुट्टो के कारण पाकिस्तान ने जो इस समझौते से हासिल किया था, उसे रावलपिंडी (पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी) में गंवा दिया.
कुलदीप नैयर

नैयर, अयूब खान को याद करते हुए कहते हैं कि शास्त्रीजी की मौत के बाद जब अयूब खान उन्हें देखने आए थे, तो उनके पार्थिव शरीर की ओर इशारा कर कहा था,

यहां वो आदमी लेटा है, जो भारत और पाकिस्तान को करीब ला सकता था.
अयूब खान, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति

जब शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को भारत लाने के लिए विमान में रखा जा रहा था, तो अन्य तीन के साथ अयूब खान ने भी उनको कंधा दिया था.

शास्त्री जी की तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता को याद कर नैयर बताते हैं कि ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने अयूब खान को 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की मदद के लिए सेना भेजने को पत्र लिखा था.

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के अनुसार लालबहादुर शास्त्री ही भारत-पाक के बीच  दरार पाटने में सक्षम थे.
(फोटो: Twitter)

नैयर बताते हैं कि इस पत्र की कॉपी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भेजी गई, जिस पर उन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री से राय जाननी चाही.

इस पर शास्त्रीजी ने कहा कि इसे स्वीकार मत कीजिए. क्योंकि कल को पाकिस्तान अगर हमसे कश्मीर मांगता है (आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर एक मुद्दा है) तो हमारे सामने मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी.

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शास्त्रीजी ने प्रधानमंत्री का पद 24 मई, 1964 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद संभाला था. उस समय सबको पता था कि जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं. यह पूछने पर कि ताशकंद में शास्त्रीजी की मौत के बाद क्या माहौल था. नैयर ने बताया,

वहां यह आम धारणा थी कि शास्त्रीजी को जहर दे दिया गया है. हालांकि इस घटना को हुए लंबा वक्त गुजर चुका है, लेकिन फिर भी इसकी जांच होनी चाहिए.
कुलदीप नैयर

उन्होंने कहा कि सरकार ने कहा कि उसके पास इससे संबंधित कुछ तथ्य हैं. जो भी तथ्य हैं, उसे सार्वजनिक करना चाहिए.

भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य पर नैयर ने उम्मीद जाहिर करते हुए कहा कि कुछ तत्व हैं, जो नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरे, लेकिन ज्यादातर लोग चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरे.

(एजेॆसी इनपुट्स के साथ)

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