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लाल बहादुर शास्त्री की मौत की वो ‘गुत्थी’ जो अब भी अनसुलझी है...

11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ था. कहा गया कि उन्हें हार्ट अटैक आया था. लेकिन इस थ्योरी पर  सवाल उठाए जाते हैं.

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भारत
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वीडियो एडिटरः आशुतोष भारद्वाज

(ये आर्टिकल पहली बार 11 जनवरी 2020 को पब्लिश किया गया था, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि पर दोबारा पब्लिश किया गया है)

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कद और किरदार को इस बात से समझ सकते हैं कि उन्होंने चार लफ्जों में हिंदुस्तान की असली तस्वीर और तकदीर चमकाने का खांका खींच दिया था. ये चार लफ्ज थे जय जवान..जय किसान.

जब दुनिया को लगा था चीन से युद्ध के बाद टूटा हुआ भारत पाकिस्तान को जवाब नहीं दे पाएगा तो वो शास्त्री जी ही थे, जिन्होंने पड़ोसी की नापाक हरकतों का करारा जवाब दिया था.

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11 जनवरी 1966 को शास्त्री जी का निधन हुआ. कहा गया कि उन्हें हार्ट अटैक आया था. लेकिन इस थ्योरी पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं. कई सवाल उठे हैं. लेकिन आजतक सर्वमान्य जवाब नहीं आया है. शास्त्री जी का निधन इतना सस्पेंस भरा क्यों है, ये जानने के लिए आपको बताते हैं कि उस समय क्या हालात थे, और खासकर उनके निधन की रात क्या हुआ था?

11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री ने ली आखिरी सांस

भारत-पाकिस्तान 1965 युद्ध के बारे में तो आप जानते ही होंगे. जो भारत-चीन युद्ध के महज 3 साल बाद हुआ था..इस बार देश की कमान बतौर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में थी. ...अगर शास्त्री के इरादों के बारे में जानना है तो उनका ये भाषण यादगार था जिसमें उन्होंने कहा था,

तलवार की नोंक पर या एटम बम के डर से कोई हमारे देश को झुकाना चाहे, दबाना चाहे, ये हमारा देश दबने वाला नहीं है. एक सरकार के नाते हमारा क्या जवाब हो सकता है, सिवाय इसके कि हम हथियारों का जवाब हथियारों से दें.
लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व प्रधानमंत्री

खैर, भारत-पाक 1965 युद्ध में दोनों ही देश बाद में समझौते के लिए तैयार हो गए. जनवरी 1966 को सोवियत रूस ने भारत-पाक में समझौते के इरादे से ताशकंद में एक सम्मलेन बुलाया. पाकिस्तान की तरफ से जनरल अयूब खान और शास्त्री ने ताशकंद समझौते पर दस्तखत किए. इसके मुताबिक दोनों पक्ष युद्ध से पहले की स्थिति में लौटने को तैयार हो गए. ताशकंद सम्मेलन खत्म तो हुआ, लेकिन देश के लिए गम की बहुत बड़ी खबर के साथ. 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही लालबहादुर शास्त्री ने आखिरी सांस ली.

कुलदीप नैयर की किताब में उस 'रात का' पूरा जिक्र?

शास्त्री जी के प्रेस सचिव और उनके करीबी रहे मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी किताब बियॉन्ड द लाइंस में उस रात का पूरा ब्योरा बताते हैं. नैयर शास्त्री के मौत के वक्त ताशकंद में ही थे.

कुलदीप नैयर लिखते हैं,

उस रात न जाने क्यों मुझे शास्त्री की मौत का पूर्वाभास हो गया था. किसी ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी तो मैं शास्त्री की मौत का ही सपना देख रहा था. मैं हड़बड़ाकर उठा और दरवाजे की तरफ लपका. बाहर कॉरिडोर में खड़ी एक महिला ने मुझे बताया, “आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं.”
बियॉन्ड द लाइंस, मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब से

शास्त्री जी के निधन के वक्त उनके कमरे की हालत के बारे में नैयर कुछ इस तरह बताते हैं

शास्त्री जी का कमरा एक बड़ा कमरा था.उतने ही विशाल पलंग पर शास्त्री की निर्जीव देह दिख रही थी. पास ही कालीन पर बड़ी तरतीब से उनके स्लीपर पड़े हुए थे. उन्होनें इन्हें नहीं पहना था. कमरे के एक कोने में पड़ी ड्रेसिंग टेबल पर एक थरमस लुढ़का पड़ा था. ऐसा लगता था कि शास्त्री जी ने इसे खोलने की कोशिश की थी. कमरे में कोई घंटी नहीं थी.
बियॉन्ड द लाइंस, मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब से

ये सब रात करीब 2 बजे की बात है.दुनिया को यही बताया गया कि शास्त्री की जी मौत हार्ट अटैक से हुई थी.

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कमरे में न घंटी, न फोन!

शास्त्रीजी की मौत के रहस्य में एक घंटी का भी जिक्र होता है..शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री भी एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहते दिखे थे कि लाल बहादुर शास्त्री के कमरे में न तो घंटी थी, न टेलीफोन था..डॉक्टर का कमरा भी दूर था...अनिल शास्त्री का कहना है कि ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री को रहने को लेकर लापरवाही बरती गई. शास्त्रीजी का थर्मस भी साथ में नहीं आया. उनकी बाकी हर चीज साथ में आई जैसे टोपी, शेविंग कीट लेकिन थर्मस उनके साथ नहीं आया. इस पर भी सवाल उठते हैं.

शरीर पर चीरे-नीले रंग का रहस्य

मौत पर कुछ और सवाल उठते हैं, जैसे कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं, कि जब वो ताशकंद से वापस लौटे तो शास्त्रीजी की पत्नी ललिता शास्त्री ने पूछा कि लाल बहादुर शास्त्री का शरीर नीला क्यों पड़ गया था...नैयर ने कहा था अगर शरीर पर लेप किया जाता है तो वो नीला पड़ जाता है. इसके बाद भी ललिता शास्त्री के सवाल कम नहीं हुए उन्होंने फिर पूछा कि शरीर पर चीरों के निशान कैसे हैं..नैयर लिखते हैं कि ये सुनकर वो चौंक गए क्योंकि ताशकंद या दिल्ली में शास्त्री के शरीर का पोस्टमार्टम तो किया ही नहीं गया था.

लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री भी कहते हैं कि उनका चेहरा नीला था और माथे पर दाग था. अनिल बताते हैं कि उस वक्त उनकी मां ने कुछ डाक्टरों से बातचीत की थी और उनका भी कहना था कि हार्ट अटैक के मामले में दाग नहीं होना चाहिए.अनिल शास्त्री का कहना है कि इन सब चीजों से संदेह तो होना ही था.

खाना किसी और ने क्यों बनाया?

जो संदेह लगातार उठ रहे थे वो आरोप तब बने जब 2 अक्टूबर 1970 को शास्त्रीजी के जन्मदिन के मौके पर, ललिता शास्त्री ने खुलेआम अपने पति की मौत की जांच कराने की मांग कर दी...कुलदीप नैयर लिखते हैं कि शास्त्रीजी के परिवार को शायद ये बात भी नहीं जम रही थी कि शास्त्री का खाना उनके निजी सेवक रामनाथ की बजाय टी.एन.कौल के बावर्ची जां मुहम्मदी ने क्यों बनाया था.

हालांकि, कुलदीप नैयर ये साफ करते हैं कि उन्हें ये आरोप थोड़ा अजीब लगा था क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री जब 1965 में मास्को गए थे तब भी उनका खाना जां मुहम्मदी ही बना रहे थे.

क्या भारी दबाव में थे लाल बहादुर शास्त्री?

बहरहाल,ये भी कहा जाता रहा है कि निधन से ठीक पहले हुए ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री भारी दबाव में थे. इस दबाव का एक इशारा कुलदीप नैयर की किताब से भी मिलता है - वो लिखते हैं कि ताशकंद समझौते के बाद शास्त्रीजी ने इस पर कैसे रियक्शन आ रहा है ये जानना भी चाहा था. तब उनके निजी सेक्रेटरी वेंकटरमन ने बताया था कि दिल्ली में ताशंकद समझौते की अनुकूल प्रतिक्रिया है लेकिन खुद शास्त्री जी के घर के लोग खुश नहीं थे...

प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुरेंद्रनाथ द्विवेदी और जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी ने हाजी पीर और टिथवाल से भारतीय सेनाओं को पीछे हटाने की आलोचना की थी.

खैर,शास्त्रीजी घर की नाराजगी की बात को लेकर परेशान थे. ऐसा नैयर की किताब से झलकता है.उन्होंने अपने घर पर फोन भी मिलाया. बड़ी बेटी से बात हुई लेकिन पत्नी ललिता शास्त्री से बात नहीं हो सकी. वो उनसे नाराज बताई जा रही थीं.

कुल मिलाकर ये भी दबाव था जो शास्त्री जी उस रात झेल रहे थे.

इतनी बातों के बावजूद अब भी कुछ साफ-साफ हम नहीं कह सकते.आज भी शास्त्री जी की मौत पर कयास तो लगाए जा रहे हैं.हाल ही में एक फिल्म भी आ गई थी.नाम था-द ताशकंद फाइल्स, लेकिन अफसोस इस फिल्म में एक खास चश्मे से तथ्यों को देखा गया. लेकिन शास्त्री जी की मौत के इतने सालों बाद भी उनकी मौत कैसे हुई ये एक रहस्य ही है.

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